बुद्धि

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बुद्धि (Intelligence) वह मानसिक शक्ति है जो वस्तुओं एवं तथ्यों को समझने, उनमें आपसी सम्बन्ध खोजने तथा तर्कपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने में सहायक होती है। यह 'भावना' और अन्तःप्रज्ञा (Intuition/इंट्युसन) से अलग है। बुद्धि ही मनुष्य को नवीन परिस्थितियों को ठीक से समझने और उसके साथ अनुकूलित (adapt) होने में सहायता करती है। बुद्धि को 'सूचना के प्रसंस्करण की योग्यता' की तरह भी समझा जा सकता है।

प्रस्तावना

प्राचीन काल से ही बुद्धि ज्ञानात्मक क्रियाओं में चर्चा का विषय रहा है। कहा जाता है कि, 'बुद्धिर्यस्य बलं तस्य' अर्थात् जिसमें बुद्धि है वही बलवान है। बुद्धि के कारण ही मानव अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ माना जाता है। मनोविज्ञान के क्षेत्र में भी बुद्धि चर्चा का विषय रहा है। हजारों वर्ष पूर्व से ही व्यक्तियों को बुद्धि के आधार पर अलग-अलग वर्गों में बांटा गया। कुछ व्यक्ति बुद्धिमान कहलाते हैं, कुछ कम बुद्धि के, कुछ मूढ बुद्धि के तो कुछ जड़ बुद्धि कहलाते हैं। परन्तु बुद्धि के स्वरूप को समझना बड़ा कठिन है।

बुद्धि के स्वरूप पर प्राचीन काल से ही मतभेद चले आ रहे हैं तथा आज भी मनोवैज्ञानिकों तथा शिक्षाविदों के लिए भी बुद्धि वाद-विवाद का विषय बना हुआ है। 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से भी बुद्धि के स्वरूप को समझने हेतु मनोवैज्ञानिकों ने प्रयास प्रारम्भ किए परन्तु वे भी इसमें सफल नहीं हुए तथा बुद्धि की सर्वसम्मत परिभाषा न दे सके। वर्तमान में भी बुद्धि के स्वरूप के सम्बंध में मनोवैज्ञानिकों के विचारों में असमानता है। अलग-अलग मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि के स्वरूप को अलग-अलग ढंग से पारिभाषित किया।

बुद्धि की परिभाषा

मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि की परिभाषाओं को तीन वर्गों में रखा है-

  1. बुद्धि सामान्य योग्यता है।
  2. बुद्धि दो या तीन योग्यताओं का योग है।
  3. बुद्धि समस्त विशिष्ट योग्यताओं का योग है।

इन तीन वर्गों के अन्तर्गत बुद्धि को जिस तरह पारिभाषित किया गया उनका उल्लेख इस प्रकार है-

बुद्धि सामान्य योग्यता

इस प्रकार की विचारधारा को मानने वाले मनोवैज्ञानिक टर्मन, एम्बिगास, स्टाऊट, बर्ट गॉल्टन स्टर्न आदि हैं। इन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बुद्धि व्यक्ति की सामान्य योग्यता है, जो उसकी हर क्रिया में पायी जाती है। इन मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि की परिभाषा इस प्रकार प्रस्तुत की है-

  • टर्मन (Termn) के अनुसार अमूर्त वस्तुओं के सम्बंध में विचार करने की योग्यता ही बुद्धि है।
(Intelligence is the ability to carry out abstract thinking)

अतः टर्मन के अनुसार बुद्धि समस्या को हल करने की योग्यता है।

  • एबिंगास (Ebbinghous) के अनुसार, बुद्धि विभिन्न भागों को मिलाने की शक्ति है।
(Intelligence is the power of combining parts.)
  • गाल्टन (Galton) के अनुसार, बुद्धि विभेद करने एवं चयन करने की शक्ति है।
(Intelligence is the power of discrimination and selection.)
  • स्टर्न (Stern) के मतानुसार, नवीन परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता ही बुद्धि है।
(Intelligence is the ability to adjust oneself to a new situation.)[१]

बुद्धि दो या तीन योग्यताओं का योग है

इस प्रकार की विचारधारा को मानने वालों में स्टेनफोर्ड बिने का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। बिने (Binet) के अनुसार,

'बुद्धि तर्क, निर्णय एवं आत्म आलोचन की योग्यता एवं क्षमता है।
(Intelligence is the ability and capacity to reason well to judge well and to be self-critical.)[२]

बुद्धि समस्त विशिष्ट योग्यताओं का योग है

बुद्धि के इस वर्ग की परिभाषाओं के अन्तर्गत मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रकार की विशिष्ट योग्यताओं के योग को बुद्धि की संज्ञा दी है। इन विचारों को मानने वाले थार्नडाइक, थर्स्टन, थॉमसन, वेस्लर तथा स्टोडार्ड हैं।

उत्तम क्रिया करने तथा नई परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता को बुद्धि कहते हैं
(Intelligence is the ability to make good responses and is demonstrated by the capacity to deal affectivity with new

situations.)

  • स्टोडार्ड (Stoddard) के मतानुसार,
बुद्धि (क) कठिनता (ख) जटिलता (ग) अमूर्तता (घ) आर्थिकता (ङ) उद्देश्य प्राप्यता (च) सामाजिक मूल्य तथा (छ) मौलिकता से सम्बंधित समस्याओं को समझने की योग्यता है।
(Intelligence is the ability to understand problems that are characterised by (a) difficulty (b) complexity (c) abstractness (d)

economy (e) adaptations to a goal (f) social value and (g) commergence of originals under such conditions that demand a concentration of energy and resistance to emotional forces.)

बुद्धि के सिद्धान्त

बुद्धि के स्वरूप एवं बुद्धि के सिद्धान्त (Theories of Intelligence) - दोनों ही बुद्धि के विषय के बारे में विचार प्रकट करते हैं परन्तु फिर भी दोनों में भिन्नता दृष्टिगत होती है। बुद्धि के सिद्धान्त उसकी संरचना को स्पष्ट करते हैं जबकि स्वरूप उसके कार्यों पर प्रकाश डालते हैं।

गत शताब्दी के प्रथम दशक से ही विभिन्न देशों के मनोवैज्ञानिकों में इस बात की रूचि बढ़ी की बुद्धि की संरचना कैसी है तथा इसमें किन-किन कारकों का समावेश है। इन्हीं प्रश्नों के परिणाम स्वरूप विभिन्न कारकों के आधार पर बुद्धि की संरचना की व्याख्या होने लगी। अमेरिका के थार्सटन, थार्नडाईक, थॉमसन आदि मनोवैज्ञानिकों ने कारकों (factors) के आधार पर 'बुद्धि के स्वरूप' विषय में अपने-अपने विचार व्यक्त किये। इसी तरह फ्रांस में अल्फ्रेड बिने, ब्रिटेन में स्पीयरमेन ने भी बुद्धि के स्वरूप के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किये।

बिने का एक-कारक सिद्धान्त

एक-कारक सिद्धान्त (Uni-factor Theory) का प्रतिपादन फ्रांस के मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड बिने (Alfred Binet) ने किया तथा अमेरिका के मनोवैज्ञानिक टर्मन तथा जर्मनी के मनोवैज्ञानिक एंबिगास ने इसका समर्थन किया। इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि वह शक्ति है जो समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करती है। इस सिद्धान्त के अनुयाइयों ने बुद्धि को समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करने वाली एक शक्ति के रूप में माना है। उन्होंने यह भी माना है कि बुद्धि समग्र रूप वाली होती है और व्यक्ति को एक विशेष कार्य करने में अग्रसित करती है। यह एक एकत्व का खंड है जिसका विभाजन नहीं किया जा सकता है। इस सिद्धान्त के अनुसार यदि व्यक्ति किसी एक विशेष क्षेत्र में निपुण है तो वह अन्य क्षेत्रों में भी निपुण रहेगा। इसी एक कारकीय सिद्धान्त को ध्यान में रखते हुए बिने ने बुद्धि को व्याख्या-निर्णय की योग्यता माना है। टर्मन ने इसे विचार करने की योग्यता माना है तथा स्टर्न ने इसे नवीन परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता के रूप में माना है।

द्वितत्व सिद्धान्त

द्वितत्व सिद्धान्त (Bi-factor Theory) के प्रवर्तक ब्रिटेन के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक स्पीयर मेन हैं। उन्होंने अपने प्रयोगात्मक अध्ययनों तथा अनुभवों के आधार पर बुद्धि के इस द्वि-तत्व सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उनके मतानुसार बुद्धि दो शक्तियों के रूप में है या बुद्धि की संरचना में दो कारक हैं। इनमें से एक को उन्होंने 'सामान्य बुद्धि' (General or G-factor) तथा दूसरे कारक को 'विशिष्ट बुद्धि' (Specific S- factor) कहा है। सामान्य कारक से उनका तात्पर्य यह है कि सभी व्यक्तियों में कार्य करने की एक सामान्य योग्यता होती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति कुछ सीमा तक प्रत्येक कार्य कर सकता है। ये कार्य उसकी सामान्य बुद्धि के कारण ही होते हैं। सामान्य कारक व्यक्ति की सम्पूर्ण मानसिक एवं बौद्धिक क्रियाओं में पाया जाता है परन्तु यह विभिन्न मात्राओं में होता है। बुद्धि का यह सामान्य कारक जन्मजात होता है तथा व्यक्तियों को सफलता की ओर इंगित करता है।

व्यक्ति की विशेष क्रियाएं बुद्धि के एक विशेष कारक द्वारा होती है। यह कारक बुद्धि का विशिष्ट कारक (specific factor) कहलाता है। एक प्रकार की विशिष्ट क्रिया में बुद्धि का एक विशिष्ट कारक कार्य करता है तो दूसरी क्रिया में दूसरा विशिष्ट कारक। अतः भिन्न-भिन्न प्रकार की विशिष्ट क्रियाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के विशिष्ट कारकों की आवश्यकता होती है। ये विशिष्ट कारक भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। इसी कारण वैयक्तिक भिन्नताएं पाई जाती हैं।

बुद्धि के सामान्य कारक जन्मजात होते हैं जबकि विशिष्ट कारक अधिकांशतः अर्जित होते हैं।

बुद्धि के इस दो-कारक सिद्धान्त के अनुसार सभी प्रकार की मानसिक क्रियाओं में बुद्धि के सामान्य कारक कार्य करते हैं जबकि विशिष्ट मानसिक क्रियाओं में विशिष्ट कारकों को स्वतंत्र रूप से काम में लिया जाता है। व्यक्ति के एक ही क्रिया में एक या कई विशिष्ट कारकों की आवश्यकता होती है। परन्तु प्रत्येक मानसिक क्रिया में उस क्रिया से संबंधित विशिष्ट कारक के साथ-साथ सामान्य कारक भी आवश्यक होते हैं। जैसे- सामान्य विज्ञान, सामाजिक अध्ययन, दर्शन एवं शास्त्र अध्ययन जैसे विषयों को जानने और समझने के लिए सामान्य कारक महत्वपूर्ण समझे जाते हैं वहीं यांत्रिक, हस्तकला, कला, संगीत कला जैसे विशिष्ट विषयोंं को जानने ओर समझने के लिए विशिष्ट कारकों की प्रमुख रूप से आवश्यकता होती है। इससे स्पष्ट है कि किसी विशेष विषय या कला को सीखने के लिए दोनों कारकों का होना अत्यन्त अनिवार्य है।

त्रिकारक बुद्धि सिद्धान्त

स्पीयरमेन ने सन् 1904 में अपने पूर्व बुद्धि के द्विकारक सिद्धान्त में संशोधन करते हुए एक कारक और जोड़कर बुद्धि के त्रिकारक सिद्धान्त (Three factors theory of Intelligence) का प्रतिपादन किया। बुद्धि के जिस तीसरे कारक को उन्होंने अपने सिद्धान्त में जोड़ा उसे उन्होंने 'समूह कारक' (ग्रुप फेक्टर) कहा। अतः बुद्धि के इस सिद्धान्त में तीन कारक-

  1. सामान्य कारक
  2. विशिष्ट कारक
  3. समूह कारक

सम्मिलित किये गये हैं।

स्पीयरमेन के विचार में सामान्य तथा विशिष्ट कारकों के अतिरिक्त समूह कारक भी समस्त मानसिक क्रियाओं में साथ रहता है। कुछ विशेष योग्यताएं जैसे यांत्रिक योग्यता, आंकिक योग्यता, शाब्दिक योग्यता, संगीत योग्यता, स्मृति योग्यता, तार्किक योग्यता तथा बौद्धिक योग्यता आदि के संचालन में समूह कारक भी विशेष भूमिका निभाते हैं। समूह कारक स्वयं अपने आप में कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रखता बल्कि विभिन्न विशिष्ट कारकों तथा सामान्य कारक के मिश्रण से यह अपना समूह बनाता है। इसीलिए इसे समूह कारक कहा गया है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस सिद्धान्त में किसी प्रकार की नवीनता नहीं है। थार्नडाइक जैसे मनोवैज्ञानिकों ने इस सिद्धान्त की आलोचना करते हुए कहा है कि समूह कारक कोई नवीन कारक नहीं है अपितु यह सामान्य एवं विशिष्ट कारकों का मिश्रण मात्र है।

थार्नडाइक का बहुकारक बुद्धि सिद्धान्त

थार्नडाइक ने अपने सिद्धान्त में बुद्धि को विभिन्न कारकों का मिश्रण माना है। जिसमें कई योग्यताएं निहित होती हैं। उनके अनुसार किसी भी मानसिक कार्य के लिए, विभिन्न कारक एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। थार्नडाइक ने पूर्व सिद्धान्तों में प्रस्तुत 'सामान्य कारकों' की आलोचना की और अपने सिद्धान्त में सामान्य कारकों की जगह मूल कारकों (Primary factors) तथा सर्वनिष्ठ कारकों (कॉमन फैक्टर्स) का उल्लेख किया। मूल कारकों में मूल मानसिक योग्यताओं को सम्मिलित किया है। ये योग्यताएं जैसे- शाब्दिक योग्यता, आंकिक योग्यता, यांत्रिक योग्यता, स्मृति योग्यता, तार्किक योग्यता तथा भाषण देने की योग्यता आदि हैं। उनके अनुसार ये योग्यताएं व्यक्ति के समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करती है।

थार्नडाइक इस बात को भी मानते हैं कि हर व्यक्ति में कोई न कोई विशिष्ट योग्यता अवश्य पायी जाती है। परन्तु उनका यह भी मानना है कि व्यक्ति की एक विषय की योग्यता से दूसरे विषय में योग्यता का अनुमान लगाना कठिन है। जैसे कि एक व्यक्ति यांत्रिक कला में प्रवीण है तो यह आवश्यक नहीं कि वह संगीत में भी निपुण होगा। उनके अनुसार जब दो मानसिक क्रियाओं के प्रतिपादन में यदि धनात्मक सहसंबंध पाया जाता है तो उसका अर्थ व्यक्ति में सर्वनिष्ट कारक भी हैं। ये उभयनिष्ठ कारक कितनी मात्रा में हैं यह सहसंबंध की मात्रा से ज्ञात हो सकता है।

थार्नडाइक ने बुद्धि को तीन प्रकार का बताया है ।

1-मूर्त बुद्धि- जैसे राजगीर इंजीनियर
2-अमूर्त बुद्धि-डाक्टर चित्रकार मनोवैज्ञानिक
3-सामाजिक बुद्धि- नेता समाजसेवी

थर्स्टन का समूह कारक बुद्धि सिद्धान्त

थर्स्टन (Thurston) के समूह कारक बुद्धि सिद्धान्त (Group factors Intelligence Theory) के अनुसार बुद्धि न तो सामान्य कारकों का प्रदर्शन है, न ही विभिन्न विशिष्ट कारकों का, अपितु इसमें कुछ ऐसी निश्चित मानसिक क्रियाएं होती हैं जो सामान्य रूप से मूल कारकों में सम्मिलित होती है। ये मानसिक क्रियाएं समूह का निर्माण करती हैं जो मनोवैज्ञानिक एवं क्रियात्मक एकता प्रदान करते हैं। थर्स्टन ने अपने सिद्धान्त को कारक विश्लेषण के आधार पर प्रस्तुत किया। उनके अनुसार बुद्धि की संरचना कुछ मौलिक कारकों के समूह से होती है। दो या अधिक मूल कारक मिलकर एक समूह का निर्माण कर लेते हैं जो व्यक्ति के किसी क्षेत्र में उसकी बुद्धि का प्रदर्शन करते हैं। इन मौलिक कारकों में उन्होंने आंकिक योग्यता, प्रत्यक्षीकरण की योग्यता (Perceptual ability), शाब्दिक योग्यता (Verbal ability), दैशिक योग्यता (Spatial ability), शब्द प्रवाह (Word fluency), तर्क शक्ति और स्मृति शक्ति (mental power) को मुख्य माना।

थर्स्टन ने यह स्पष्ट किया कि बुद्धि कई प्रकार की योग्यताओं का मिश्रण है जो विभिन्न समूहों में पाई जाती है। उनके अनुसार मानसिक योग्यताएं क्रियात्मक रूप से स्वतंत्र है फिर भी जब ये समूह में कार्य करती है तो उनमें परस्पर संबंध या समानता पाई जाती है। कुछ विशिष्ट योग्यताएं एक ही समूह की होती हैं और उनमें आपस में सह-संबंध पाया जाता है। जैसे विज्ञान विषयों के समूह में भौतिक, रसायन, गणित तथा जीव-विज्ञान भौतिकी एवं रसायन आदि। इसी प्रकार संगीत कला को प्रदर्शित करने के लिए तबला, हारमोनियम, सितार आदि बजाने में परस्पर सह-संबंध रहता है।

थॉमसन का प्रतिदर्श सिद्धान्त

थॉमसन (Thomson) ने बुद्धि के प्रतिदर्श सिद्धान्त (Sampling Theory of Intelligence) को प्रस्तुत किया। उनके मतानुसार व्यक्ति का प्रत्येक कार्य निश्चित योग्यताओं का प्रतिदर्श होता है। किसी भी विशेष कार्य को करने में व्यक्ति अपनी समस्त मानसिक योग्यताओं में से कुछ का प्रतिदर्श के रूप में चुनाव कर लेता है। इस सिद्धान्त में उन्होंने सामान्य कारकों (G-factors) की व्यावहारिकता को महत्व दिया है। थॉमसन के अनुसार व्यक्ति का बौद्धिक व्यवहार अनेक स्वतंत्र योग्यताओं पर निर्भर करता है परन्तु परीक्षा करते समय उनका प्रतिदर्श ही सामने आता है।

कैटल का बुद्धि सिद्धान्त

रेमण्ड वी. केटल (1971) ने दो प्रकार की सामान्य बुद्धि का वर्णन किया है। ये हैं फ्लूड (Fluid) तथा क्रिस्टलाईज्ड (Crystallized)। उनके अनुसार बुद्धि की फ्लूड सामान्य योग्यता वंशानुक्रम कारकों पर निर्भर करती है जबकि क्रिस्टलाईज्ड योग्यता अर्जित कारकों के रूप में होती है। फ्लूड सामान्य योग्यता मुख्य रूप से संस्कृति युक्त, गति-स्थितियों तथा नई स्थितियों के अनुकूलता वाले परीक्षणों में पाई जाती है। क्रिस्टलाईज्ड सामान्य योग्यता अर्जित सांस्कृतिक उपलब्धियों, कौशलताओं तथा नई स्थिति से सम्बंधित वाले परीक्षणों में एक कारक के रूप में मापी जाती है। फ्लूड सामान्य योग्यता (gf) को शरीर की वंशानुक्रम विभक्ता के रूप में लिया जा सकता है जो जैवरासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा संचालित होती है। जबकि क्रिस्टलाईज्ड सामान्य योग्यता (gc) सामाजिक अधिगम एवं पर्यावरण प्रभावों से संचालित होती है। केटल के अनुसार फ्लुड सामान्य बुद्धि वंशानुक्रम से सम्बिंधत है तथा जन्मजात होती है जबकि क्रिस्टलाईज्ड सामान्य बुद्धि अर्जित है।

बर्ट तथा वर्नन का पदानुक्रमित बुद्धि सिद्धान्त

बर्ट एवं वर्नन (Burt and Vernon's 1965) ने पदानुक्रमित बुद्धि सिद्धान्त (Hirarchical Theory of Intelligence) का प्रतिपादन किया। बुद्धि सिद्धान्तों के क्षेत्र में यह नवीन सिद्धान्त माना जाता है। इस सिद्धान्त में बर्ट एवं वर्नन ने मानसिक योग्यताओं को क्रमिक महत्व प्रदान किया है। उन्होंने मानसिक योग्यताओं को चार स्तरों पर विभिक्त किया-

  • (१) सामान्य मानसिक योग्यता
  • (2) मुख्य समूह कारक
  • (3) लघु समूह कारक
  • (4) विशिष्ट मानसिक योग्यता

सामान्य मानसिक योग्यताओं में भी योग्यताओं को उन्होंने स्तरों के आधार पर दो वर्गां में विभाजित किया। पहले वर्ग में उन्होंने क्रियात्मक (Practical), यांत्रिक (Machenical) एवं शारीरिक योग्यताओं को रखा है। इस मुख्य वर्ग को उन्होंने k.m. नाम दिया। योग्यताओं के दूसरे समूह में उन्होंने शाब्दिक (Verbal), आंकिक तथा शैक्षिक योग्यताओं को रखा है और इस समूह को उन्होंने v.ed. नाम दिया है। अंतिम स्तर पर उन्होंने विशिष्ट मानसिक योग्यताओं को रखा जिनका सम्बंध विभिन्न ज्ञानात्मक क्रियाओं से है।

इस सिद्धान्त की नवीनता एवं अपनी विशेष योग्यताओं के कारण कई मनोवैज्ञानिकों का ध्यान इसकी ओर आकर्षित हुआ है।

गिलफोर्ड का त्रि-आयाम बुद्धि सिद्धान्त

गिलफोर्ड (Guilford 1959, 1961, 1967) तथा उसके सहयोगियों ने तीन मानसिक योग्यताओं के आधार पर बुद्धि संरचना की व्याख्या प्रस्तुत की। गिलफोर्ड का यह बुद्धि संरचना सिद्धान्त त्रि-विमीय बौद्धिक मॉडल (Three Dimentional model) कहलाता है। उन्होंने बुद्धि कारकों को तीन श्रेणियों में बांटा है, अर्थात् मानसिक योग्यताओं को तीन विमाओं (डाइमेंशन्स) में बांटा है। ये हैं-

  • संक्रिया (Operation)
  • विषय-वस्तु (Contents)
  • उत्पाद (Products)

कारक विश्लेषण (Factor Analysis) से बुद्धि की ये तीनों विमाएं पर्याप्त रूप से भिन्न है। 5×4×6=120 तत्वों में वर्गीकृत किया गया है

गार्डनर बहुबुद्धि सिद्धान्त

इन सबके अलावा बुद्धि का एक सिद्धान्त है जिसे 'हॉवर्ड गार्डनर' ने प्रतिपादित किया, इसे बहुबुद्धि सिद्धान्त कहा जाता है। इसके अनुसार हर इंसान मे अलग प्रकार की बुद्धि होती है,जैसे कोई संगीत मे पारंगत हो सकता है तो कोई अभिनय मे तो कोई लेखन मे,कोई तार्किक क्षमता मे आदि। इन्होंने बुद्धि के इस सिद्धान्त को समझाने के लिए इसे नौ क्षेत्रों मे विभाजित किया है जो इस प्रकार हैं- 1-भाषागत

2-तार्किक-गणितीय

3-देशिक

4-संगीतात्मक

5-शारीरिक-गतिसंवेदी

6-अंतर्वैयक्तिक

7-अन्तः व्यक्ति

8-प्रकृतिवादी

9-अस्तित्ववादी

गार्डनर ने अपनी पुस्तक "फ्रेम्स ऑफ माइंड : द थ्योरी ऑफ मल्टीपल इंटेलिजेंस" मे इसे काफी अच्छे से विस्तारपूर्वक बताया है।

सन्दर्भ

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इन्हें भी देखें