बुँखाल-कालिंका
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य़ह मंदिर उत्तराखंड क़े पौड़ी जिले कि थलीसैंण तहसील में स्थित है। यंहा प्रतिवर्ष मेला लगता है़। 2014से पूर्व यंहा बड़ी संख्या में पशुओ कि बली दी जाती थी जिसे वर्तमान में रोक दिया गया है़।
स्थानीय प्रचलित कथाओं क़े अनुसार सन 1800क़े करीब चोपड़ा गांव क़े एक लुहार कि बेटी जंगल में मवेशी चराने गयी थी जंहा उसके साथियों ने उसे गड्डे में छुपा दिया औऱ उसके बाद वे उसे भूल गऐ। कई दिन बीत जानें पर जब कन्या का पता नही चला तो एक दिन वह कन्या रौंद रूप में अपने माँ क़े सपने में आयी औऱ अपने मंदिर बनाने कि मांग कि। स्थानीय लोगों ने मिलकर उस कन्या का मंदिर बनवाया औऱ आगे चलकर यहि बुंखाल कालिंका क़े रूप में प्रसिद्ध हों गयी।
1803 मेंजब गोरखों ने गढ़वाल पर कब्जा़ किया तो स्थानीय लोगों पर उन्होने कई तरह क़े अत्याचार किये। बुँखाल क्षेत्र में कन्या से देवी बनी य़ह देवी गोरखों क़े आने कि सूचना आवाज लगाकर स्थानीय लोगों को सचेत कर देती थी। लोगों के बचाव करने से
से देवी क़े भक्तों कि संख्या लगातार बढ़ती रहीं। मंदिर में पूजा कि जिम्मेदारी गोदा क़े गोदियालों कि है़। जितने गांव देवी क़े भक्त है़ उन सभी गांवों से देवी कि डोली जात्रा मेले क़े समय निकलती है़।