बाबर देवा

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बाबर देवा (१८८५ - १९२४) एक कुख्यात एवं बदनाम डकैत था जिसका जन्म गुजरात मे आणंद जिले के बोरसद तालुका मे गोरेलगांव के एक कोली परिवार में हुआ था। उसने गुजरात में काफ़ी हत्याएं की थी लेकिन धोखा मिलने पर उसने अपनी परिवार के सदस्यों को भी मार डाला था जिसके फलस्वरूप वह पूरे गुजरात के साथ-साथ गुजरात से सटे हुए क्षेत्रों मे भी मशहूर हो गया।[१] बाबर देव के पिताजी भी लुटेरे थे। बाबर का जन्म १८८५ मे हुआ था। उसने अपनी जिंदगी का पहला ख़ून अपने गांव के पटेल (मुखिया) का किया था जो जाती से पाटीदार था।[२]

डाकू बाबर देवा पाटणवाडिया
जन्म बाबरदेव
१८८५
गोरेलगांव, बोरसद तालुका, आणंद जिला, सौराष्ट्र, गुजरात
मृत्यु १९२४
मृत्यु का कारण बड़ौदा जेल में फांसी
राष्ट्रीयता भारतीय
व्यवसाय डकैती
प्रसिद्धि कारण २५ से ज्यादा हत्याएं
धार्मिक मान्यता हिन्दू कोली

बाबर देवा को एक नायक की तरहा देखा जाता है वह एक समाजसेवी से मिला जिसके बाद उसने लोगों को मारने और लूटने की बजाय अंग्रेजी अफसरों और खजाने को लुटने का प्रण किया।[३] बाबर देवा ने महात्मा गांधी के आंदोलन मे भी साथ दिया था।[४] बाबर देवा ने २२ से ज्यादा हत्याएं की थी और जब उसे पता चला की उसकी घरवाली ब्रिटिश सरकार के समर्थन मे है तो उसे भी मार डाला फीर कचछ समय पश्चात इसी कारण से अपने बहन को भी मार डाला था। बाबर देव ने कफी लोगों की नाक भी काट डाली क्योंकि उन्होंने बाबर की जानकारी ब्रिटिश सरकार को दी थी।[५]

बाबर ने सात वर्ष तक अपना खोप बनाए रखा था और सरकार उसे कभी पकड़ नही पाई थी। सेना हर बार बाबर को पकड़ने मे असमर्थ हो जाती थी।[६] लेकिन एक बार बाबर ने पेटलाद तालुका के कानियागांव मे एक पाटीदार के घर पर डांका डाला था उसी दौरान वह बड़ौदा रियासत की पुलिस ने पकड़ लिया और पेटलाद की जेल मे बंद कर दिया गया। १९१९ मे बाबर पेटलाद की जेल से भाग निकला और दो बड़ी डकैतियां डाली और लोगों को भी मार डाला था। १९२० मे मे उसने बड़ी गेंग बनाकर १५ बड़ी डकैतियां डाली और इसी वर्ष ही बाबर ने अपनी बहन को भी मार डाला था।[७]

बदलाव

१९२२ मे बाबर ने अपने आप मे बदलाव किया और एक समाज सुधारक को अपना साथी बना लिया जो हिन्दू धर्म और गरीबों के लिए काम करता था। धीरे-धीरे बाबर भी गरीबों के लिए काम करने लगा यूं जैसे कोई मसीहा। उसने कभी किसी गरीब, महीला और बच्चों को परेशान नही किया। बाबर ने गरीब किसानों को शादी के लिए और कूंए खुदवाने के लिए पैसे दिए जिसके बाद लोग उसे मसीहा की तरह देखने लगे।[७]

वर्ष १९२३ के मध्य मे बाबर ने एक त्योहार पर गांव मे भंडारा करवाया, गायों खाना खिलाया और बच्चों को मिठाईयां बांटी। इतना ही नही बाबर जागीरदारों को रक्षा भी प्रदान करता था। वर्ष १९२३ के अंत मे बाबर की मृत्यु हो गई।[७]

संदर्भ

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