बरपटिया जनजाति
ज्येष्ठरा/बरपटिया जनजाति उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी ब्लॉक के मूल निवासी है जिन्हें ज्येष्ठरा भी कहा जाता है। 'ज्येष्ठरा' का अर्थ होता है ज्येष्ठ या श्रेष्ठ अर्थात् जनजाति में श्रेष्ठ तथा 'बरपटिया' का अर्थ होता है बारह पट्टी का ऊनी कोट पहनने वाले या बारह गाँव के निवासी।
२०१५ में राज्य के मुख्य मन्त्री हरीश रावत से एक दौरे में भेंट के दौरान इन लोगों ने अपने क्षेत्र में बुनियादी सेवाओं की कमी को दूर करने की माँग रखी थी।[१]
विवरण
उत्तराखण्ड राज्य के पिथौरागढ जिले में ज्येष्ठरा/बरपटिया जनजाति मुनस्यारी तहसील के बारह गाँवों में निवास करती है उपजाति के नाम पर है ज्येष्ठरा जनजाति के लोग अन्य जनजाति से वर्तमान समय में पिछड़े हुए है जिस कारण इनके बारे में अभी तक अधिक जानकारी किसी भी पुस्तक में नहीं है जिस कारण बहुत कम ही लोग इस जनजाति के बारे में जानते है इस जनजाति का नाम बरपटिया होने के पीछे भी एक कारण है यह लोग पुराने समय में बारह पट्टी वाली एक विशेष कोट पहना करते थे जिसे ये अपनी आम भाषा में बुखोल कहते थे तथा उस कोट के जैब में ये जौ रखा करते थे यह जौ रखने का कारण था तिब्बत व्यापार क्यों कि उन दिनों तिब्बत में व्यापार के लिए बहुत लोग अलग- अलग जगह से आया करते थे जिस कारण अपनी अलग पहचान के लिए ये कोट के जैब में जौ रखा करते थे जिससे तिब्बत के इनके मित्र व्यापारी इन्हें पहचान लेते थे की मुनस्यारी के ज्येष्ठरा व्यापारी यहाँ पहुँच चुके है इस प्रकार जेष्ठरा जनजाति के लोग मुनस्यारी के मूल निवासी है जो उस समय मुनस्यारी क्षेत्र में राज किया करते थे तथा एक समय में यह जनजाति एक शाही जनजाति हुआ करती थी जो की अब अपनी पहचान व अस्तित्व के लिए संर्घष कर रही है।
ज्येष्ठरा जनजाति का वर्तमान समय में पिछड़ने का कारण उनका अतीत में लिया गया फैसला रहा है सन् 1962 में भारत व चीन का युद्ध हुआ जिससे सम्पूर्ण भारत प्रभावित हुआ और ज्येष्ठरा/बरपटिया जनजाति पर भी इसका प्रभाव पडा तिब्बत व्यापर बन्द हो गया जिससे इस जनजाति को बहुत परेशानी का सामना करना पडा सरकार द्वारा इस सीमान्त क्षेत्र में रहने वाली सभी जनजाति के कल्याण के लिए सन् 1967 में आरक्षण को लागू किया गया अन्य जनजाति के लोग कुछ पढे लिखे थे अतः उन्होंने इसका लाभ प्राप्त करना आरम्भ कर दिया ज्येष्ठरा जनजाति में पढ़े लिखे लोग कम थे जिस कारण वह उसका लाभ न ले सके उन्हें इस लाभ के बारे में जानकारी ही नहीं थी आगे चल कर कुछ जानकारी प्राप्त हुई परन्तु उस समय ज्येष्ठरा जनजाति के लोग नौकरी करने को अपने मान सम्मान के प्रतिकूल समझा करते थे तथा पढने में रुचि कम रखते थे जिस कारण बरपटिया जनजाति समय के साथ-साथ अन्य जनजाति यों से पिछड़ने लगी आज वह इतना पिछड़ चुकि है कि उसे अपने पहचान व अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड रहा है।
वेशभूषा
बरपटिया जनजाति की महिला उस समय निम्नलिखित प्रकार के आभूषणों को पहना करते थे-
- चनरहार
- सुतु
- तिलर
- त्वार
- टकॉल
- पुलि
- कंठी माला
- धोलमाल
- मुनरे
- नथ व बिड
- अतरदान
- धागुल
- मुरकी
- गलोबन्द
बरपटिया जनजाति की महिला नाक में नथ व बिड पहना करती थी जो सोने के बने होते है तथा लडकीयां हल्के मुरकी कान में पहना करती थी जो या तो सोने के या फिर चांदी से बने होते थे व महिला कान में मुनरे पहना करती थी जो सोने के बने होते है, गले में ग्लोबन्द जो सोने का बना होता है व धोलमाल जिसे सफेद माला कहते है जो मोती के माला की तरह होती है तथा कंठी माला जो चांदी के बने होते है व टकॉल माला जो विक्टोरिया डॉलर का बना होता है पहना करती थी इसी तरह गले में पहनने वाले मालों में चनरहार, सुतु, तिलर, त्वार होते है जो चांदी के बने होते है, चांदी से बनी हुई पुलि जिसे बरपटिया जनजाति की महिला पांव के अंगुली में पहना करती थी धागुल एक प्रकार की चूडी होती है जो चांदी से बनी होती है इसे बरपटिया जनजाति की महिला हाथों में पहना करती थी, अतरदान भी चांदी का बना होता है इस आभूषण को भी बरपटिया जनजाति की महिला पहना करती थी इस आभूषण से एक चांदी का छोटा सा डब्बा जूडा होता है इस प्रकार बरपटिया जनजाति की महिला पूरी तरह अपना पारम्परिक पहिनावें के साथ ये सभी आभूषणों को पहना करती थी परन्तु वर्तमान समय में ये सभी आभूषण देखने को कम मिलते है इनकी जगह अब नये आधुनिक आभूषणों ने ले लिया है। बरपटिया जनजाति की महिला वस्त्रों में घागुर व कामुल तथा आंगुर, खोपी आदि को पहना करती है तथा पुरुष बुखोल, पगडी, ऊनी पायजामा आदि पहना करते थे।
सन्दर्भ
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