बन्दी छोड़ दिवस

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गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर किले से जहाँगीर के आदेश पर रिहा किया गया

बन्दी छोड़ दिवस सिख त्योहार है जो कि दीपावली के दिन पड़ता है। दीपावली त्यौहार सिख समुदाय द्वारा ऐतिहासिक रूप से मनाया जाता है। गुरु अमर दास ने इसे सिख उत्सव माना है। 20वीं सदी से सिख धार्मिक नेताओं द्वारा दिवाली को बन्दी छोड़ दिवस कहा जाने लगा। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा इसे मान लिया गया। इस नाम का सम्बद्ध गुरु हरगोबिन्द की रिहाई से है जिन्हें जहाँगीर द्वारा स्वतंत्र किया गया था। बन्दी छोड़ दिवस को दिवाली के समान ही मनाया जाता है, जिसमें घरों और गुरुद्वारों को रोशन किया जाता है, उपहार देना और परिवार के साथ समय बिताना होता है।

विवरण

बन्दी छोड़ दिवस तब मनाया गया जब गुरु हरगोबिंद साहिब जी को ग्वालियर जेल से रिहा किया गया। नगर कीर्तन (एक सड़क जुलूस) और एक अखण्ड पाठ (गुरु ग्रंथ साहिब का निरंतर पठन) के अलावा, बंदी छोड़ दिवस आतिशबाजी के प्रदर्शन के साथ मनाया जाता है। श्री हरमंदिर साहिब के साथ-साथ पूरे परिसर को हजारों झिलमिलाती रोशनियों से सजाया जाता है। गुरुद्वारा निरंतर कीर्तन गायन और विशेष संगीतकारों का आयोजन करता है। सिख इस अवसर को गुरुद्वारों की यात्रा करने और अपने परिवार के साथ समय बिताने के लिए एक महत्वपूर्ण समय मानते हैं।[१]

सन्दर्भ

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