बच्चों में मिर्गी

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मिर्गी किसी भी आयु के व्यक्ति को हो सकती है। बच्चों में मिर्गी से सम्बन्धित कुछ मुद्दे हैं जो उनके बचपन को प्रभावित कर सकते हैं। कुछ प्रकार की मिर्गी बचपन बीतने के बाद समाप्त हो जातीं हैं। लगभग 70% बच्चे जिनको बचपन में मिर्गी थी, बड़े होने पर इससे छुटकारा पा जाते हैं। कुछ मिर्गी के ऐसे भी दौरे हैं जैसे फेब्राइल दौरा (febrile seizures) जो बचपन में केवल एक बार आते हैं और बाद में कभी नहीं।

परिचय

मनुष्य की समस्त गतिविधियाँ मस्तिष्क के द्वारा नियंत्रित एवं संचालित होती है। मस्तिष्क एवं शरीर की कोशिकाओं के मध्य विद्युत तरंगों का प्रवाह होता है। इसी के कारण हम विभिन्न कार्य कर पाते हैं। मस्तिष्क की कोशिकाएँ बिजली के स्विच जैसा काम करती हैं, जो अपने आप जरूरत के अनुरूप विद्युत प्रवाहों का संचालन करती है। कभी-कभी इस विद्युत प्रवाह के स्वचालन में गड़बड़ी हो जाती है और थोड़ी देर के लिए विद्युत तरंगों का प्रवाह बहुत अधिक हो जाता है, मानो मस्तिष्क में बिजली का तूफान आ गया हो। इस गड़बड़ी के कारण व्यक्ति का सम्पर्क अपने आस-पास के वातावरण से जैसे टूट सा जाता है, उसके शरीर एवं चेतना में परिवर्तन दिखाई देने लगते हैं जेसे-बेहोशी या झटके का आना, उसके व्यवहार और क्रियाकलापों में परिवर्तन या शरीर के किसी एक हिस्से में जैसे मुंह या उंगलियों में खिंचाव आना इत्यादि।

यों तो मिर्गी जीवन के किसी भी काल में हो सकती है, परन्तु यह बीमारी अधिकतर लोगों में बचपन अथवा किशोरावस्था में पहली बार शुरू होती है। क्योकि जीवन की यह अवस्था बच्चे के सम्पूर्ण विकास के लिए अत्याधिक महत्वपूर्ण है अतः यह जरूरी है कि इसकी पहचान एवं रोकथाम के उपाय तुरन्त किये जाएं। समुचित उपचार के अभाव में मिर्गी का रोग बच्चों में कई तरह की समस्याओं को जन्म दे सकता है जैसे-शैक्षणिक, भावात्मक एवं व्यवहारात्मक परेशानियाँ। मिर्गी के बारे में एक आम गलत धारणा यह है कि इसमें मरीज को हमेशा बेहोशी के झटके एवं खिंचाव आते हैं।

प्रकार

बच्चों में पाई जाने वाली मिर्गी कई प्रकार की हो सकती है, जन्हें प्रायः पहचाना नहीं जाता है। पहचानने में परेशानी की कई कारण हैं, जैसे :

  • (१) बच्चे में अभिव्यक्ति की असमर्थता
  • (२) अभिभावकों में जानकारी का आभाव
  • (३) मिर्गी के कुछ दौरों का क्षणिक एवं सूक्ष्म स्वरूप एवं
  • (४) मिर्गी के सम्बन्ध में प्रचलित गलत धारणाएँ

कुछ उदाहरण : एक बच्चे में दो महीने की आयु में एक तरफ के हाँथ-पांव में कुछ क्षणों के लिए खिंचाव आता था। चूंकि यह बहुत थोड़े समय (कुछ सेकेण्डों) के लिए रहता था और बच्चे को जब तक माँ गोद में लेती थी तब तक समाप्त हो जाता था, वे समझते रहे बच्चा किसी कारणवश डर रहा है। पर वही बच्चा आठ महीने की उम्र तक गर्दन भी नहीं संभाल पाया तो उसे चिकित्सक के पास ले जाया गया और चिकित्सक ने मिर्गी पहचान कर उसकी दवा शुरू की। अतः हम देख सकते हैं कि जानकारी के अभाव में, मिर्गी का इलाज समय से न शुरू कर पाने के कारण बच्चे का विकास किस तरह प्रभावित हो गया।

एक दूसरा उदाहरण, एक आठ साल के बच्चे का है, जो कुछ समय पहले तक पढ़ाई इत्यादि में बहुत होशियार था। कुछ दिनों से यह देखा जाने लगा कि वह कुछ क्षणों के लिए अपने वातावरण से कट सा जाता जैसे बोलते-बोलते बीच में हठात् बिना वजह रूक जाना और फिर कुछ देर बाद वहीं से बात शुरू करना जहाँ से वह रूक गया था। इस दौरान उसकी आँखे एकटक रहती थीं और मुंह खुला रहता था। ऐसे दौरे उसे दिन में अनेकों बार पड़ते थे। पढ़ाई में उसकी कमजोरी को बच्चे का ध्यान नहीं देना समझा गया और बच्चे को अक्सर डाँट-फटकार पड़ती रही। यह सिलसिला उस समय तक चला जब तक कि उसकी माँ ने दूरदर्शन पर मिर्गी के लक्षण के बारे में कार्यक्रम नहीं देख लिया। इलाज करवाने से अब यही बच्चा पहले की तरह फिर पढ़ाई में ध्यान लगा पा रहा है।

इन दो उदाहरणों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि मिर्गी के दौरों को पहचानने के लिए अभिभावकों को सही जानकारी की जरूरत है। सामान्यतः बच्चों में मिर्गी के दौरे निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:[१]

सामान्यीकृत तानी अवमोटन मिर्गी (Generalized Tonic Clonic Epilepsy)

इसे 'बड़ी मिर्गी' भी कह सकते हैं। इसमें बच्चा एका-एक बेहोश हो जाता है और शुरू में शरीर की तमाम मांसपेशियाँ अकड़ जाती हैं जिसके चलते उसके मुंह से चीख जैसी आवाज निकलती है, कभी-कभी जीभ कट जाती है, पेशाब आ जाता है और बच्चा जमीन पर गिर जाता है। इसके बाद पूरे शरीर में मिर्गी के झटके या खिंचाव आने लगते हैं, और मुंह से झाग निकलता है। यह दौरा आम तौर से एक-दो मिनट तक रहता है फिर बच्चे को थोड़ी देर तक बेहोशी सी छाई रहती है, या वह सो जाता है उसे इस दौरान थकान लगती है सिर या शरीर में दर्द होता है और कमजोरी लगती है।

खोयी मिर्गी (Absence Epilepsy)

इस प्रकार की मिर्गी के दौरान कुछ सेकेण्डों में लिये बच्चे की नजर स्थिर हो जाती है, जैसे कि कहीं खो सा गया है। साथ में आंखों की पलकें तेजी से झपकने लगती हैं, पुतलियाँ एक तरफ उठ जाती है और मुंह की तरफ देखने से लगता है जैसे वह कुछ चबा रहा है। यदि बच्चे के हाँथ में कोई चीज है तो वह गिर सकती है। उस दौरान बच्चे से कुछ पूछने पर वह उसका जवाब नहीं दे सकता है, पर दौरा खत्म होते ही वह एकदम सामान्य हो जाता है। अक्सर ये दौरे दिन में कई बार पड़ सकते है। यह जरूरी है कि जिन बच्चें को ऐसा होता है उन्हें उनके माता-पिता ध्यानपूर्वक निरीक्षण करें और जितनी बार भी ऐसे दौरे आते हों उसका नियमित रिकार्ड रख डॉक्टर को बतलायें।

पेशी अवमोटनी मिर्गी (Myoclonic Epilepsy)

इस दौरान मांसपेशियों में खिंचाव अचानक कुछ क्षणों के लिए होता है। यह खिंचाव हल्का भी हो सकता है और जोर से भी हो सकता है। यह शरीर के किसी एक हिस्से में ही सीमित रह सकता है या इतना जबर्दस्त भी हो सकता है कि बच्चा अचानक से झटका खाकर गिर जाये। यह आमतौर से सुबह में सोकर उठने के बाद होता है और चीजें हाथों से छूट कर जैसे टूथ ब्रश आदि गिरने लगते हैं।

आतानी मिर्गी या ड्राप अटैक (Atonic or Drop Attacks)

माँस पेशियों के टोन (तनाव) में अचानक कमी के कारण बच्चा गिर जाता है। कुछ सेकेण्डों से एक मिनट के अन्दर ही वह फिर सामान्य हो कर चलने-फिरने लगता है। यदि किसी बच्चे को इस तरह के दौरे बहुत अधिक आते हों तो यह जरूरी है कि उसके सिर को सुरक्षित रखने के लिये बच्चे को कुछ (हेलमेट आदि) पहनाया जाये। अक्सर ऐसे दौरों को शारीरिक कमजोरी का एक लक्षण मान कर ध्यान नहीं दिया जाता है।

सरल आंशिक मिर्गी ( Simple Partial Epilepsy)

इसके दौरान शरीर के किसी एक हिस्से जैसे उंगली, अंगूठा या किसी भी भाग में झटके आते हैं। बच्चा जगा रहता है और उसे इसका एहसास भी रहता है, पर चाह कर भी वह इसे रोक नहीं सकता। यदि यह ज्यादा देर तक रह जाये तो शरीर के अन्य भागों में फैलकर बड़ी मिर्गी का रूप भी ले सकता है। एक अन्य तरह की सरल आम्शिक मिर्गी में झटके नहीं लगेगें और बाहर से देखने वाले को जल्दी से पता भी नहीं चल पाता है, पर बच्चा यदि व्यक्त करने लायक उम्र का हो तो वह शिकायत कर सकता है कि जैसे वह कुछ ऐसा देख या सुन पा रहा है जो दूसरों को दिखाई या सुनाई न देता हो। उसे अचानक भय भी लग सकता है, गुस्सा आ सकता है या बिना वजह खुश नजर आने लगता है। कभी-कभी कोई बच्चा अजीब सी महक की शिकायत कर सकता है तो दूसरों को पेट में अजीब सा महसूस हो सकता है, उल्टी करने जैसा लग सकता है। बच्चा कुछ विभ्रमित सा लग सकता है और थोड़ी देर बाद सोना चाह सकता है। उसे दोरे के दौरान जो हो रहा है उसकी याददाश्त नहीं रहती है। प्रायः इन दौरों को भी बच्चे की बदमाशी समझ कर ध्यान नहीं दिया जाता है।

शिशु ऐंठन (Infantile Spasm)

तीन महीने से तीन वर्ष के बच्चों में यह अक्सर देखने को मिलता है। अक्सर इस दौरान यदि बच्चा बैठा है तो उसका सिर आगे की तरफ झूक जायेगा, और दोनों हाथ आगे की तरफ निकल जाते हैं लगेगा जैसे वह सलाम कर रहा है। यदि सोया है तो घुटने अचानक ऊपर की तरफ मुड़ जाते हैं हाथ और सिर आगे की तरफ झुक जाते हैं। अक्सर ऐसे दौरे एक बार शुरू होने पर कुछ-कुछ अन्तराल पर बार-बार होते रहते हैं। और यह जरूरी हो जाता है कि चिकित्सक की सलाह तुरन्त ली जाये।

यह जरूरी है कि जब भी अभिभावक को जरा भी शक हो तो किसी सक्षम चिकित्सक से जरूर सलाह करें। कई बार चिकित्सकों के लिये भी निश्चित कर पाना सम्भव नहीं होता क्योंकि वे बच्चे को हर समय नहीं देख पाते हैं। अतः यदि आपको लगता है कि उल्लिखित लक्षणादि बच्चे में बार-बार दिखाई दे रहे हैं तो आप उसे विस्तार से नोट करें और अपने डॉक्टर को बतलाएं। यह बात इसलिए भी जरूरी है कि मिर्गी के अलग-अलग प्रकार की अलग-अलग दवा होती है, और चिकित्सक मिर्गी का प्रकार उसी समय जान जायेगा जब आप उसकी सही जानकारी देंगे।

सन्दर्भ

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