बघेल वंश

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बघेेेल (वाघेला/बाघेल) वंंश जो चालुक्य/सोलंकी वंश की ही शाखा एक भारतीय राजपूत राजवंश है। जिन्होंने दक्षिण भारत के चालुक्य राजवंश के क्षत्रियों की एक शाखा के रूप में गुजरात पहुंच कर 960 ई० में अन्हिलवाड़ा में सोलंकियों की राज्य सत्ता स्थापित की थी। रीवा स्टेट गजेटियर में ये उल्लेख किया गया है, कि बघेलखंड की रीवा रियासत के नरेश सोलंकी अर्थात चाालुक्य क्षत्रिय की बघेेेल शाखा के राजपूूत है।

बघेल राजपूत वंश की स्थापना राजा व्याघ्रदेव (बाघराव) ने की थी। जो गुजरात के सोलंकी राजवंश के वीरधवल के पुत्र थे।

यही व्याघ्र देव गुजरात से चलकर सन 1233 -34 ई० में कुछ परिहार राजपूतों के साथ अनेक तीर्थों का भ्रमण व सामाजिक परिस्थितियों का अध्ययन करतेेेे हुए चित्रकूट पहुंचे तब चित्रकूट के आसपास के क्षेत्र और मध्यप्रदेश के कुछ खण्ड में रीवा राज्य की स्थापना की।राजा व्याघ्रदेव ने सोलंकी से बघेल और परिहार से वरग्राही वंंश की स्थापना की।

बघेलखंड में "बघेल राज्य" स्थापित होने के पूर्व गुजरात में बघेलों की सार्वभौम्य राज्य सत्ता स्थापित हो चुकी थी, जिनकी राजधानी अन्हिलवाड़ा थी। बघेलों के इस क्षेत्र में आने से पूर्व इनके पूर्वज चालुक्यों एवं सोलंकियों का दक्षिण भारत और गुजरात के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

दक्षिण भारत में चालुक्य छठी शताब्दी का प्रसिद्ध प्राचीन राजवंश रहा। इनकी राजधानी बादामी(वातापि) थी। अपने विस्तार के चरम समय में(7वीं सदी) यह वर्तमान समय के संपूर्ण कर्नाटक, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिणी मध्यप्रदेश, तटीय दक्षिणी गुजरात एवं पश्चिमी आन्ध्र प्रदेश तक फैला हुआ था।

यह किवदंती है कि चालुक्यों का मूलवास स्थान अयोध्या है। जो कि सूर्यवंशी कुल के वंशज विजयादित्य के यँहा दक्षिण में आने के बाद पल्लवो से युद्ध में हार जाने के पश्चात मृत्यु हो गयी। परंतु उसके पुत्र विष्णुवर्धन ने कदंबों और गंगों को पराजित किया, और अपने राज्य की स्थापना ।

पृथ्वीराज रासो के रचनाकार चंदबरदाई जो कि पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि थे,जिन्होंने क्षत्रिय वंशावली बनाई जिसमें 36 क्षत्रीय कुलों की वंशावलियों के बारे में बताया,जिसमें 10 सूर्यवंशी,10 चन्द्रवंशी, 4 अग्निवंशी, 12 ऋषिवंश में रखे।

अग्निवंश के बारे में लिखते हैं कि जब धरती से क्षत्रिय समाप्त हो गए थे ।तब राक्षसों का उपद्रव बढ़ने लगा था जिस वजह से गुरु वशिष्ठ ने आबू पर्वत पर अग्नि कुंड की स्थापना की, जिसमें से चार क्षत्रियों की उत्पत्ति होती है, जोकि परिहार या प्रतिहार, परमार ,चौहान या चाहमान और चालुक्य या सोलंकी थे ।

शासकों की सूची

राजा शक्तिवान देव, आर. 1495-1500, बंधोगढ़ के राजा 1.राजा वीर सिंह देव, r.1500-1540

2.राजा वीरभान सिंह, r.1540–1555; कालिंजर किले की घेराबंदी के दौरान चंदेला राजपूतों के साथ शेरशाह के खिलाफ लड़ाई लड़ी

3.राजा रामचंद्र सिंह, r.1555–1592

4.राजा दुर्योधन सिंह (बीरभद्र सिंह), r.1593-1618 (अपदस्थ); उनके प्रवेश ने अशांति को जन्म दिया। अकबर ने आठ महीने की घेराबंदी के बाद 1597 में बंदोगढ़ किले में हस्तक्षेप किया, कब्जा कर लिया और उसे नष्ट कर दिया। राजा विक्रमादित्य, r.1618-1630। उन्होंने १६१८ में रीवा शहर की स्थापना की (जिसका शायद मतलब है कि उन्होंने वहां महलों और अन्य इमारतों का निर्माण किया क्योंकि यह स्थान १५५४ में पहले से ही महत्वपूर्ण हो गया था जब यह सम्राट शेरशाह सूरी के पुत्र जलाल खान के पास था )।

5.राजा अमर सिंह द्वितीय, r.1630-1643

6.राजा अनूप सिंह, r.1643-1660

7.राजा भाओ सिंह, आर.१६६०-१६९०। उन्होंने दो बार शादी की लेकिन निःसंतान मर गए।

8.राजा अनिरुद्ध सिंह, r.1690-1700, राजा अनूप सिंह के एक पोते, उन्हें उनके निःसंतान चाचा, राजा भाओ सिंह द्वारा गोद लिया गया था। राजा अवधूत सिंह, r.1700-1755। राज्य को पन्ना के हिरदे शाह ने बर्खास्त कर दिया था , c. 1731, जिसके कारण राजा अवध (अवध) में प्रतापगढ़ भाग गए ।

9.राजा अजीत सिंह, r.1755-1809। राजा जय सिंह, बी.1765, आर.1809-1835। १८१२ में, पिंडारियों के एक निकाय ने रीवा क्षेत्र से मिर्जापुर पर छापा मारा, जिसके लिए जय सिंह को ब्रिटिश सरकार की सुरक्षा को स्वीकार करते हुए एक संधि में शामिल होने के लिए बुलाया गया था, और पड़ोसी प्रमुखों के साथ सभी विवादों को उनकी मध्यस्थता में भेजने और ब्रिटिश सैनिकों को अनुमति देने के लिए सहमत हुए उसके प्रदेशों में।

10.राजा विश्वनाथ सिंह, बी.1789, आर.1835-1854।

11.राजा रघुराज सिंह जू देव बहादुर, बी.१८३१, आर.१८५४-१८५७ राजा के रूप में फिर मजाराजा १८५७-१८८० के रूप में। उन्होंने 1857 के विद्रोह में पड़ोसी मंडला और जबलपुर जिलों में विद्रोह को दबाने में अंग्रेजों की मदद की । इस सेवा के लिए सोहागपुर (शहडोल) और अमरकंटक परगना को उनके शासन में बहाल कर दिया गया था ( सदी की शुरुआत में मराठों द्वारा कब्जा कर लिया गया था), और उन्हें 5 फरवरी 1880 को उनकी मृत्यु तक शासन करते हुए रीवा का पहला मजाराजा बनाया गया था।

12.महाराजा वेंकटरमण रामानुज प्रसाद सिंह जू देव, बी.१८७६, आर.१८८०-१९१८।

13.महाराजा गुलाब सिंह जू देव, बी.१९०३, आर.१९१८-१९४६ (अपदस्थ)। रतलाम

14.महाराजा सज्जन सिंह, b.1880, r.1918-1919, 1922-1923। फिलिप बैनरमैन वारबर्टन (अंतरिम), b.1878, r.1919। दीवान बहादुर बृजमोहन नाथ जुत्शी (रीजेंट, रीजेंसी काउंसिल के अध्यक्ष), b.1877, r.1920-1922। इलियट जेम्स डॉवेल कॉल्विन (अंतरिम), b.1885, r.1922।

15.महाराजा मार्तंड सिंह जू देव, b.1923, r.1946-1995।

संबंध

सन्दर्भ

{{1.रीवा स्टेट गजेटियर,भोपाल,पृष्ठ 10

2.^रीवा राज्य का इतिहास डॉ.एस.अखिलेश,पृष्ठ 39-60

3.^The History of India, as Told by Its Own Historians - Henry Miers Elliot ,Vol.4,page.363

4.^हिन्दी विश्वकोष,रेवा का इतिहास

5.^अग्निहोत्री,गुरु रामप्यारे,रीवा राज्य का इतिहास,म.प्र. शासन,साहित्य परिषद,भोपाल,वर्ष 1972,पृष्ठ.29

6.^"प्रकाश" रीवा साप्ताहिक पत्र,असाधरण अंक,दिनांक 2.09.1946 }


इन्हें भी देखें

रीवा रियासत

चालुक्य राजवंश

सोलंकी वंश

रीवा

रीवा स्टेट