बग्वाळ
‘बग्वाल’ या ‘इगास’ या ‘इगास बग्वाल’ सामान्यतः दीपावली के गढ़वाली/कुमाऊँनी पर्यायवाची हैं।
मान्यता है कि भगवान राम के अयोध्या पहुँचने का समाचार सुदूर पहाड़ों में उस पावन दिन के ठीक 11 दिन बाद पहुंच पाया था, जिस कारण यहाँ दीपावली का उत्सव परंपरागत दीपावली से 11 दिन बाद एकादसी (इगास) को मनाया जाता है।
उत्तराखंड में ‘इगास बग्वाल’ का एक मुख्य आकर्षण भैला या भैलू या भैलों [चीड़ की लकड़ियों (विषेशरूप से उसके ज्वलनशील हिस्से अर्थात छिल्लू) के एक छोटे से गट्ठर को रस्सी से अच्छी तरह से बांधा जाता है, और उसे मशाल की तरह जलाकर सिर के ऊपर से घुमाया जाता है और इसके साथ कई करतब दिखाये जाते हैं] खेलने की परंपरा भी है।
कदाचिद, तत्कालीन समय में आधुनिक मोमबत्तियाँ, दिये और पटाखों की उपलब्धता न होने के कारण भैला या भैलू या भैलों खेलकर प्रकाश और उल्लास का यह उत्सव मनाया गया। प्रत्येक परिवार में जितने भी जीवित सदस्य (उपस्थित या अनुपस्थित) होते हैं सामान्यतः उनके सबके नाम के भैलों बनाए जाते हैं।