फ्रांस की क्रांति (१८४८)

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१८४८ की फ्रांस की क्रांति
१९४८ की क्रांति का भाग
Philippoteaux - Lamartine in front of the Town Hall of Paris rejects the red flag.jpg
२५ फरवरी १९४८ को लामरतीन (Lamartine) ने पेरिस के टाउन हाल के सामने लाल ध्वज को अस्वीकार कर दिया।
तिथि 22 फरवरी – 2 दिसम्बर 1848
स्थान पेरिस, फ्रांस
परिणाम
योद्धा
साँचा:flagicon Kingdom of France

Supported by:
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साँचा:flagicon image Republicans
साँचा:flagicon image Socialists
सेनानायक
साँचा:flagicon Louis Philippe I
साँचा:flagicon Thomas Bugeaud
साँचा:flagicon image Napoleon Bonaparte
साँचा:flagicon image Alphonse de Lamartine
शक्ति/क्षमता
70,000 men
मृत्यु एवं हानि
350 मृत
500 से अधिक घायल
नेशनल गार्ड, सेना और लोगों के बीच में मध्यस्थता करने लगा।
फ्रांस का अन्तिम राजा - लुई फिलिप का चित्र

सन १८४८ में पूरे यूरोप में क्रान्ति की तरंग छायी हुई थी। १८४८ की फ्रांस की क्रान्ति के फलस्वरूप ओर्लियन राजतन्त्र (१८३०-४८) का अन्त हुआ तथा द्वितीय फ्रांसीसी गणतंत्र की स्थापना हुई।

क्रांति के कारण

उच्च बुर्ज़ुआ वर्ग की प्रधानता

लुई फिलिप ने सिंहासन पर बैठने पर जनता को एक उदार संविधान दिया था। फिर भी इससे जनता का अधिक भला नहीं हुआ। मत का आधार धन होने के कारण प्रतिनिधि सभा में सदैव बुर्जुआ वर्ग के लोगों की प्रधानता बनी रही, जन साधारण की पहुंच नहीं थी। अतः बुर्ज़ुआ वर्ग के लोग अपने हितों का ध्यान रखते हुए ही कानून बनाया करते थे। इस प्रकार लुई फिलिप के शासन से जनता को कोई लाभ नहीं हुआ। वस्तुतः 1830 की क्रांति से उनको कोई लाभ नहीं हुआ। इससे वे लुई फिलिप को घृणा की दृष्टि से देखने लगे।

जेक्स ड्रोज के अनुसार "1848 का सामाजिक संघर्ष एक त्रिपक्षीय वर्ग संघर्ष था जिसमे मध्यम वर्ग के दो भाग उच्च बुर्जुआ और निम्न बुर्जुआ एवं निम्न वर्ग शामिल था।"

समाजवादी विचारधारा

फ्रैडरिक बास्तियात, उस समय के सबसे लोकप्रिय राजनैतिक लेखकों में उसकी गिनती होती थी। उसने भी क्रांति में भाग लिया।
लुई ब्लां - द्वितीय रिपब्लिक में श्रमिकों के दो प्रतिनिधियों में से एक था।

1848 की फ्रांसीसी क्रांति की पृष्ठभूमि समाजवादियों ने तैयार की। लुई ब्लां जैसे समाजवादी विचारकों ने मजदूरों के हितों का प्रतिपादन किया उसने सरकार की आर्थिक नीति की आलोचना की। फिलिप की सरकार को पूंजीपतियों की सरकार घोषित किया। उसने एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त दिया कि प्रत्येक व्यक्ति को काम पाने का अधिकार है और राज्य का कर्तव्य है कि वह उसे काम दे। इस तरह लुई ब्लां के समाजवादी विचारों ने जनता को लुई फिलिप का शासन उखाड़ फेंकने की प्रेरणा दी।

लुई फिलिप की विदेश नीति

लुई फिलिप की विदेश नीति बहुत दुर्बल थी। बेल्जियम तथा पूर्वी समस्या के मामले में उसे इंग्लैण्ड से पराजित होना पड़ा था जिससे फ्रांस की अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को आघात पहुंचा था। फ्रांस की जनता इन असफलताओं से बहुत असंतुष्ट थी।

गीजो मंत्रिमंडल की प्रतिक्रियावादी नीति

गीजों के मंत्रिमंडल (1840-48) ने 1848 की क्रांति को लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह श्रमिकों की दशा में सुधार लाने का विरोधी था और इसलिए उनके लिए कानून बनाना नहीं चाहता था। उसने राजा को किसी भी तरह परिवर्तन न करने की सलाह दी। फलतः जनता में असंतोष व्याप्त हो गया अतः जनता ने 24 फरवरी 1848 को गीजो एवं लुई फिलीप के विरूद्ध विद्रोह कर दिया।

यूरोप में 1848 की क्रांति की गूँज

1848 की फ्रांसीसी क्रांति का प्रभाव केवल फ्रांस तक सीमित नहीं रहा, इस क्रांति का प्रभाव संपूर्ण यूरोप पर पड़ा। 1848 में यूरोप में कुल मिलाकर 17 क्रांतियां हुईं। फ्रांस के बाद वियना, हंगरी, बोहेमिया, इटली, जर्मनी, प्रशा, स्विट्जरलैण्ड, हॉलैण्ड आदि में विद्रोह हुए। 1830 की फ्रांसीसी क्रांति की तुलना में 1848 की क्रांति का प्रभाव अधिक व्यापक और प्रभावशाली रहा। विशेष रूप से मध्य यूरोप इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वियना कांग्रेस ने जो प्रतिक्रियावादी राजनीतिक ढांचा खड़ा किया था उसकी नींव हिल उठी।

आस्ट्रिया की क्रांति

फ्रांस की 1848 की क्रांति से प्रभावित होकर आस्ट्रिया के देशभक्त काफी प्रभावित हुये। विद्यार्थी, मजदूर, अध्यापक ने जुलूस निकाला और मेटरनिक के मकान को घेर लिया। शहर में अनेक स्थानों पर मोर्चाबंदी हुई जनता और सरकार में झड़प हुई। निराश होकर मेटरनिक ने त्यागपत्र दे दिया और इंग्लैण्ड भाग गया। मेटरनिक का पलायन क्रांति की बहुत बड़ी विजय थी। आस्ट्रिया के सम्राट फर्डिनेंड प्रथम ने देशभक्तों की मांग को स्वीकार कर लिया। पे्रस, भाषण और लेखनी पर से प्रतिबंध उठा लिये गये लेकिन क्रांतिकारियों में मतभेद होने के कारण अंत में राजा ने क्रांतिकारियों का दमन कर दिया और पुनः आस्ट्रिया में निरंकुश शासन स्थापित हुआ।

बोहेमिया में क्रांति

आंदोलनकारियों ने आस्ट्रिया की अधीनता में बोहेमिया के लिए स्वतंत्र शासन की मांग की किन्तु कठोरतापूर्वक दमन कर क्रांति को दबा दिया गया।

हंगरी में क्रांति

वियना क्रांति से उत्साहित होकर हंगरी के देशभक्तों ने विद्रोह का झंडा बुलंद किया। उस समय हंगरी आस्ट्रिया की अधीनता में था। हंगरी में सामंतों का बोलबाला था जिनके अत्याचारों से जनता तंग आ गई थी। अतः फ्रांसीसी क्रांति और वियना क्रांति से उत्साहित होकर जनता ने लोकप्रिय नेता कोसूथ तथा डीक के नेतृत्व में उदारवादी सुधारों के साथ हंगरी के लिए पूर्ण स्वशासन की मांग की। हंगरीवासी अपनी मांग पूरी ने होने पर क्रांति के लिए कठिबद्ध हो गये। उस पर सम्राट ने शासन सुधार की मांगे स्वीकार कर प्रेस की स्वतंत्रता, कुलीनों के विशेषाधिकारों का अंत, धार्मिक स्वतंत्रता घोषित की। इस तरह हंगरी अब अर्द्धस्वतंत्र हो गया किन्तु हंगरी में भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी जातियों ने भी अपनी स्वतंत्रता के लिए आंदोलन आरंभ कर दिया। अतः आस्ट्रिया ने इस फूट से लाभ उठाया और रूस के साथ मिलकर हंगरी के विरूद्ध कार्यवाही की अतः पुनः हंगरी आस्ट्रिया का अधीनस्थ राज्य बन गया।

प्रशा में क्रांति

मेटरनिख के पतन से बर्लिन में खुशियां मनाई गई। प्रशा, जर्मनी का सबसे बड़ा राज्य था। क्रांति के समाचारों से उत्साहित होकर जनता ने जुलूस निकाला और प्रशा के राजा के महल को घेर लिया। राजा ने भीड़ पर गोली चलवा दी फलतः विद्रोह ने भयंकर रूप धारण कर लिया अंत में राजा को देशभक्तों की मांग माननी पड़ी। इस बीच जर्मन देशभक्तों ने फ्रंकफर्ट में सार्वभौमिक मताधिकार द्वारा संपूर्ण जर्मनी में चुनाव कराकर एक राष्ट्रीय संसद की स्थापना की। इसमें एक संविधान बनाया जिसके अनुसार संर्पूा जर्मनी के लिए प्रशा के राजा को राजा बनाया गया लेकिन प्रशा के राजा ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और क्रांतिकारियों के विरूद्ध कड़ा कदम उठाकर इसे कुचल दिया।

इटली में क्रांति

इटली अनेक वंशानुगत राज्य तथा बहुराष्ट्रीय हैब्सबर्ग साम्राज्य में बिखरा हुआ था। 19वीं सदी के मध्य में इटली 7 राज्य में बंटा हुआ था जिनमें से केवल एक सार्डिनिया पीमांट में एक इतालवी राजघराने का शासन था उत्तरी भाग आस्ट्रियाई हैब्सबर्गो के अधीन था। मध्य इलाकों पर पॉप का शासन था और दक्षिणी क्षेत्र स्पेन के बोर्बो राजाओं के अधीन थे इतालवी भाषा ने भी साझा रूप हासिल नहीं किया था और अभी तक उसके विभिन्न क्षेत्रीय और स्थानीय रूप मौजूद थे।

1830 के दशक में ज्युसेपे मेत्सिनी ने एकीकृत इतालवी गणराज्य के लिए एक सुविचारित कार्यक्रम प्रस्तुत करने की कोशिश की थी। उसने अपने उद्देश्यों के प्रसार के लिए यंग इटली नामक़ एक गुप्त संगठन भी बनाया था।1831 और 1848 में क्रांतिकारी विद्रोह की असफलता से युद्ध के जरिए इतालवी राज्यों को जोड़ने की जिम्मेदारी सार्डीनिया के शासक विक्टर इमैनुएल द्वितीय पर आ गई। इस क्षेत्र के शासक अभिजात वर्ग की नजरों में एकीकृत इटली उनके लिए आर्थिक विकास और राजनीतिक प्रभुत्व की संभावनाएं उत्पन्न करता था। मंत्री प्रमुख कावूर जिसने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया ना तो एक क्रांतिकारी था और ना ही जनतंत्र में विश्वास रखने वाला इतालवी अभिजात वर्ग के तमाम अमीर और शिक्षा सदस्य की तरह वह इतालवी भाषा से कहीं बेहतर फ्रेंच बोलता था। फ्रांस से सार्डिनिया की एक चतुर कूटनीतिक संधि, जिसके पीछे का काबूर हाथ था, से सार्डिनिय 1859 ऑस्ट्ररियाई बल को हरा पाने में कामयाब हुआ। नियमित सैनिकों के अलावा जियुसेपे गैरीबाल्डी के नेतृत्व में भारी संख्या में सशस्त्र स्वयंसेवकों ने इस युद्ध में हिस्सा लिया 1807 में वे दक्षिण इटली और 2 सीसीलियो के राज्य में प्रवेश कर गए और स्पेनिश शासकों को हटाने के लिए स्थानीय किसानों का समर्थन पाने में सफल रहे 18 सो 61 में इमैनुएल द्वितीय को एकीकृत इटली का राजा घोषित किया गया। किन्तु इटली के अधिकांश निवासी जिनमें निरक्षरता की दर काफी ऊंची थी अभी भी उदारवादी राष्ट्रवादी विचारधारा से अनजान थे। दक्षिण इटली में जिन आम किसानों ने गैरीबाल्डी को समर्थन दिया था, उन्होंने ईटालिया के बारे में कभी सुना ही नहीं था और वे मानते थे कि ला तालिया इमैनुएल की पत्नी थी।

इंग्लैण्ड पर प्रभाव

इंग्लैण्ड में 1832 में जो सुधार अधिनियम पारित हुआ था उससे केवल मध्यम वर्ग को ही संतोष मिला था, मजदूर और किसान अधिकारों से वंचित रह गए थे। अतः वहां चार्टिस्ट आंदोलन जोर पकड़ रहा था। 1848 की क्रांति का समाचार जब इंग्लैण्ड पहुंचा तो संसद के समक्ष 50 लाख व्यक्तियों के हस्ताक्षर कर मांगे प्रस्तुत की थी। हस्ताक्षरों की जांच करवाई गई तो उनमें अधिकांश जाली सिद्ध हुये। अतः चार्टिस्ट बदनाम सिद्ध हुये और आंदोलन समाप्त हो गया किन्तु आगे चलकर चार्टिस्टों की मांगे धीरे-धीरे स्वीकार की गई।

1848 की क्रांतियों के असफलता के कारण

1848 की फ्रांस की क्रांति ने संपूर्ण यूरोप को हिला दिया। यूरोप के लगभग सभी देश इससे प्रभावित हुए विशेषाधिकारों और शासन को जबर्दस्त चोट पहुंची फिर भी क्रांतियां अंत में उद्देश्यों में सफल नहीं हो सकी। लगभग सभी देशों में इन्हें अंत में असफलता का मुंह देखना पड़ा। इस असफलता के निम्नलिखित कारण थे-

  • 1. क्रांतिकारियों के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न उद्देश्य थे। क्रांतिकारी नेताओं में एकता का अभाव था। हंगरी में उदारवादी और राष्ट्रवादी परस्पर लड़ते रहते थे। मेजिनी, इटली में गणतंत्र चाहता था तो अन्य देशभक्त अलग-अलग राजाओं के नेतृत्व में एकीकरण का राग अलाप रहे थे। उद्देश्यों की भिन्नता के कारण क्रांतिकारी पूरी तरह सफल नहीं हो सके।
  • 2. क्रांतिकारियों ने राष्ट्रवाद के सिद्धांत को अवश्य स्वीकार किया परन्तु प्रत्येक देश में उनका ये नारा सफल नहीं हो पाया।
  • 3. क्रांतिकारियों के अधिकांश नेता केवल आदर्शवादी थे, व्यवहारिक नहीं। वे क्रांति के आदर्शों पर व्याख्यान दे सकते थे पर क्रांति का संचालन करने की क्षमता उनमें नहीं थी।
  • 4. क्रांतियां केवल नगरों तक सीमित रहीं, वे ग्रामीण जीवन को प्रभावित नहीं कर सकी। ग्रामीण पहले की तरह ही जमींदारो, पादरियों और राजकीय कर्मचारियों की आज्ञा का पालन करते रहे उन्होंने राजसत्ता का विरोध नहीं किया।
  • 5. नगरों में जहां क्रांति का प्रभाव था मध्यम वर्ग और श्रमिकों में फूट बनी रही। मध्यम वर्गीय पूंजीपति अपनी शोषण नीति से श्रमिकों के प्रति अन्याय करते रहे फलस्वरूप क्रांति की शक्ति क्षीण हुई।
  • 6. विद्रोह करने वाली विभिन्न जातियों में एक-दूसरे के प्रति संदेह था। बोहेमिया में चेक और जर्मन जातियों में उस समय भी कोई मेल नहीं हो सका जब उदार शासन की स्थापना का अवसर आया। इस फूट का लाभ उठाकर आस्ट्रिया के सम्राट ने वहां पुनः निरंकुश शासन की स्थापना कर दी।

1848 की क्रांति के परिणाम और महत्व

  • 1. फ्रांस तथा यूरोप के इतिहास में 1848 की क्रांति का अत्यधिक महत्व है। इसने जनता के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन में परिवर्तन लाने का प्रयास किया। 1848 की क्रांति में सामाजिक एवं आर्थिक समानता पर विशेष जोर दिया और मजदूरों तथा कारीगरों को अधिकाधिक सुविधाएं देने का प्रयत्न किया।
  • 2. क्रांति के फलस्वरूप यूरोप के राजनीतिक विचारों में परिवर्तन की एक लहर पैदा हुई। उदार एवं राष्ट्रीय विचारों के विकास के साथ अब गुप्त समितियों का स्थान संगठित आंदोलनों ने ले लिया।
  • 3. क्रांति के फलस्वरूप यूरोप भर में निरंकुश शासन की नींव हिल गई। राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक स्वतंत्रता के विचार पनपने लगे फलस्वरूप यूरोप के देशों में वैधानिक शासन का विकास हुआ। सार्डिनिया, स्विट्जरलैण्ड, फ्रांस, हॉलैण्ड में वैधानिक शासन की स्थापना के लिए जन आंदोलन हुआ और उन्हें सफलता भी मिली। इंग्लैण्ड में संसदीय निर्वाचन क्षेत्र अधिक व्यापक हुये।
  • 4. सामूहिक चेतना का युग आरंभ हुआ। क्रांति ने जनसमूह के महत्व को सामने रखा। जो चेतना पहले कुछ व्यक्तियों एवं नेताओं तक सीमित थी अब वह जनसमूह की चेतना बन गई। राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक अन्यायों के विरूद्ध खड़े होने के लिए जनता अब किसी नेता की प्रतीक्षा नहीं करती थी।
  • 5. क्रांति का एक महत्वपूर्ण परिणाम यह निकला कि "जनमत का अधिकार" अब केवल मध्यम वर्ग तक सीमित न रह कर पूरी जनता को मिल गया। आर्थिक लोकतंत्र के विषय में यह एक विशेष घटना थी।
  • 6. क्रांति ने वह मार्ग प्रशस्त कर दिया जिस पर चलकर प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का और सार्डिनिया के नेतृत्व में इटली का एकीकरण पूरा हुआ।
  • 8. सैनिक शक्ति का महत्व बढ़ा। क्रांतिकारियों ने सीख ली कि अब कोई भी क्रांति बिना सेना के सक्रिय सहयोग से सफल नहीं हो सकती। भविष्य में सरकारें अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए संगठित सैनिक शक्ति पर अत्यधिक निर्भर रहने लगी। बिस्मार्क द्वारा जर्मनी का और गैरीबॉल्डी द्वारा इटली का एकीकरण सेना की शक्ति पर आधारित था।
  • 9. यथार्थवाद का उदय हुआ। 1848 की क्रांति की सफलता ने क्रांतिकारियों की रोमांटिक आशाओं को नष्ट कर दिया। अब यूरोपीय साहित्यकार यथार्थवाद की ओर झुके। लोग अपने लक्ष्यों को आदर्शवादी रूप में देखने के बजाय उसको प्राप्त करने के लिए ठोस तरीकों का यथार्थवादी मूल्यांकन करने लगे।

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