फेरान्ती प्रभाव
कम लोडित (loaded) लम्बी संचरण लाइन (ट्रांसमिशन लाइन) की प्रापक वोल्टता (receiving end voltage) उसके प्रेषित वोल्टता (sending end voltage) से कुछ अधिक होती है। इसे फेरान्ती प्रभाव (Ferranti effect) कहते हैं। इसका सबसे पहला अनुभव फेरान्ती (Sebastian Ziani de Ferranti) को सन् में १८९० में डेप्टफोर्ड (Deptford) जनन संयंत्र को चालू करते समय हुआ था और उनके ही नाम पर इस प्रभाव का नाम रखा गया है।
परिचय
लम्बाई | वोल्टता-वृद्धि |
---|---|
100 km | 0.6 % |
200 km | 2.3 % |
300 km | 5.4 % |
400 km | 9.9 % |
फेरान्ती प्रभाव के कारण प्रापक वोल्टता UE का मान प्रेषित वोल्टता US से अधिक होता है:
- <math>\frac{U_E}{U_S} = \left(1 + \frac{1}{2}\frac{R + X_L}{X_C} \right)^{-1}</math>
जहाँ
- <math>X_C = \frac{1}{\mathrm{j} \omega C' l}; \quad X_L = {\mathrm{j} \omega L' l}</math>
तथा C' = प्रति किमी लाइन धारिता, L' = प्रति किमी लाइन प्रेरकत्व, &omega = कोणीय आवृत्ति; तथा l = लाइन की लम्बाई है। इसमें लाइन का प्रतिरोध नगण्य (R=0) मानने पर हमे लगभग वोल्टता वृद्धि प्राप्त होती है-
- <math>\frac{U_E}{U_S} = \left(1 - \frac{L \cdot C \cdot \omega^2}{2} \right)^{-1}</math>
इस सूत्र से स्पष्ट है कि लाइन की लम्बाई जितनी ही अधिक होगी, C और L भी उतने ही अधिक होंगे और वोल्टता-वृद्धि उतनी ही गुना अधिक होगी। फेरान्ती प्रभाव अपेक्षाकृत कम लम्बाई के केबलों में भी देखने को मिलती है क्योंकि उनका प्रति किमी धारिता (कैपेसिटैंस) अधिक होता है।