फूलचंद गुप्ता
फूलचंद गुप्ता | |
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स्थानीय नाम | फूलचंद जगतनारायण गुप्ता |
जन्म | साँचा:br separated entries |
मृत्यु | साँचा:br separated entries |
मृत्यु स्थान/समाधि | साँचा:br separated entries |
व्यवसाय | कवि, कहानीकार, आल़़ोचक, अनुवादक, चिंतक |
भाषा | हिन्दी, गुजराती |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शिक्षा | एम.ए. , पीएच. डी. ,पत्रकारिता मेंं पी.जी. डिप्लोमा। |
उच्च शिक्षा | गुजरात विश्वविद्यालय, वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय |
विधाs | कविता, ग़ज़ल, कहानी,आलोचना । |
साहित्यिक आन्दोलन | गुजरातीमें दलित साहित्य |
उल्लेखनीय सम्मान |
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सक्रिय वर्ष | १९७३ - वर्तमान |
जीवनसाथी | साँचा:married |
सन्तान | ३ |
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फूलचंद गुप्ता (जन्म 30 अक्टूबर 1958) भारतीय हिंदी और गुजराती भाषा के कवि, लेखक और अनुवादक हैं। वह हिम्मतनगर, गुजरात, भारत से हैं । उन्होंने गुजराती दलित साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। राज्य हिंदी साहित्य अकादमीने उन्हें २०१३ में अपनी पुस्तक ख्वाबगाहों की सदी है के लिए सम्मानित किया है। उनको अपनी किताब इसी माहौल में के लिए शफदर हाशमी पुरस्कार से (2000) सन्मानित किया गया है।
प्रारंभिक जीवन
उनका जन्म भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के रुदौली शहर के एक गांव अमराईगांव में हुआ था । उनके माता-पिता जगतनारायण और सावित्रीदेवी थीं। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा १९६९ में अमराईगांव प्राथमिक विद्यालय से पूरी की।[१] १९७० में अहमदाबाद आकर उन्होंने १९७४ में जनता हिंदी हाईस्कूल नरोडा से अपनी स्कूली शिक्षा (ओल्ड एसएस.सी) पूरी की। उन्होंने १९७८ में सरदार वल्लभभाई पटेल कॉमर्स महाविद्यालय, अहमदाबाद से अपना बैचलर ऑफ कॉमर्स पूरा किया। अपनी करियरके शुरूआती सालोमे ३ साल तक वो साइकिल फैक्ट्री में काम करते थे।
१९८२ में उन्होंने अहमदाबाद के एचके आर्ट्स कॉलेज ज्वाइन किया और १९८५ में अंग्रेजी साहित्य में बैचलर ऑफ आर्ट्स प्राप्त किया। उन्होंने गुजरात विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ लैंग्वेजीज से १९८७ में मास्टर ऑफ आर्ट्स किया । उसी साल उन्होंने भवन के सेंटर अहमदाबाद से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा किया। फिर १९९३ में उन्होंने गुजरात विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में मास्टर ऑफ आर्ट्स प्राप्त किया। उन्होंने अपने शोध कार्य इक्कीसवी सदी के प्रथम दशम के हिंदी उपन्यासों मे दलित, नारी एवम वर्गिय चेतना के लिए वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय से २०१३ में पीएचडी की पदवी प्राप्त की। उन्होंने उत्तमभाई पटेल के नेतृत्व में यह शोध कार्य किया।[२]
करियर
गुप्ता ने अपने करियर की शुरुआत १९८० में अहमदाबाद की एक निजी ट्रांसपोर्ट कंपनी में क्लर्क के तौर पर की थी। १९८७ से १९८८ तक उन्होंने दैनिक 'यंग इंडिया' में पत्रकार के रूप में कार्य किया। १९८९ में उन्होंने अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर के रूप में सोनासन के साबरग्राम विद्यापीठ से जुडे।
उन्होंने अपने स्कूल के दिनों में कविताएं लिखना शुरू किया था। उनकी पहली कविता १९७३ में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद उनकी रचनाओं को 'हंसा', 'समकालीन भारतीय साहित्य', 'अंग्रेजी साहित्य', 'निरीक्षक', 'नवनीत समर्पण' और 'कुमार' सहित गुजराती और हिंदी साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया।[२]
लेखन-यात्रा
उन्होंने हिंदी और गुजराती में कविताएं, लघु कथाएं और निबंध लिखे हैं। उन्हें हिंदी साहित्य में क्रांतिकारी कवि के रूप में जाना जाता है।
हिंदी में कविताओं का पहला संग्रह 'इसी महौल में', १९९७ में प्रकाशित किया गया था, इसके बाद 'सांसत में है कबूतर' (२००३), 'कोई नही सुनाता आग के संस्मरण' (२००६), 'गांधी अंतरमन' (२००८) (गुजराती), ख्वाबख्वाहो की सदी है' (२००९), 'राख का ढेर' (२०१०), 'महागाथा' (२०११), 'कोट की जेब से झांकती पृथ्वी' (२०१२), 'दीनू और कौवे' (२०१२), 'झरने की तरहा' (२०१३), 'फूल और तितली' (२०१४) , 'आरझू-ए-फूलचंद' (२०१५), 'प्रथम दशक के उपन्यास और मुक्ति चेतना' (२०१६) और 'जेम्स ओन ग्रास टिप्स ' (२०१८) (अंग्रेजी) उनके अन्य प्रकाशित पुस्तक है। उन्होंने रघुवीर चौधरी के गुजराती उपन्यास 'लागणी' का 'लगाव' और 'इच्छावर का 'दरार' नाम से हिंदी में अनुवाद किया है।[१]
वस्तुतः फूलचंद के काव्य को पढ़ना काव्य के नए स्वर से जुड़ना है।उनका स्वर क्रांति का परिवर्तनधर्मी स्वर है।फूलचंद गुप्ता की कविता आंदोलनधर्मी कविता है।उसकी बानगी एक प्रतिबद्ध एवं प्रखर मार्क्सवादी क्रांतिकारी कवि की बानगी है,एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए प्रतिश्रुत।फूलचंद ने कविता, कविता के लिए नहीं लिखी, बदलाव के लिए लिखी है।सामाजिक बदलाव के लिए, बेहतर समाज के निर्माण के लिए।इसीलिए उन्होंने शब्दों को तराशा है।आज जब टूटन और बिखराव का दौर अपने सर्वोच्च शिखर पर है,फूलचंद की कविताएं आशा का स्वर उकेरती हैं।वस्तुतः वे कविता द्वारा चेतना की धार को तेज करना चाहते हैं।
पुरस्कार और सम्मान
उन्होंने २००० में अपनी पुस्तक इसी माहौल मे (१९९७) के लिए शफदर हाशमी पुरस्कार जीता । गुजरात राज्य की हिंदी साहित्य अकादमी ने उन्हें २०१४ में अपनी पुस्तक 'फूल और तितली' के लिए सम्मानित किया था।[३]
परिवार
उन्होंने १९८२ में शकुन गुप्ता से शादी की थी और उनकी एक बेटी पल्लवी और दो बेटे सिद्धार्थ और रुचिर हैं। वह गुजरात राज्य के साबरकांठा जिल्ले के मुख्यमथक हिम्मतनगर में रहते है।[१]
सन्दर्भ
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- ↑ अ आ साँचा:cite book
- ↑ साँचा:cite magazine