फ़्रैंक लोग

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पश्चिमी यूरोप में रोमन साम्राज्य के अंत के बाद फ़्रैंकी तेज़ी से फैलने लगे
क्लोविस प्रथम (466-511), एकत्रित फ्रैंकों का पहला राजा
फ़्रैंकी राजा क्लोथार द्वितीय (584-628) द्वारा गढ़ा गया एक सिक्का

फ़्रैंक लोग (लातिनी: Franci) पश्चिमी यूरोप में बसने वाली और एक पश्चिमी जर्मैनी भाषा बोलने वाली जाति थी। तीसरी सदी ईसवी में इनके क़बीले राइन नदी के उत्तरपूर्वी भाग में रहते थे। उस समय इस पूरे क्षेत्र पर रोमन साम्राज्य का क़ब्ज़ा था और इनकी आपस में झड़पें होती रहती थीं। एक सालिया नामक फ़्रैंकी उपशाखा की रोमनों के साथ मित्रता थी और उनका अपना राज्य था। जब रोमन साम्राज्य का सूर्यास्त हो गया तो, लगभग पाँचवी सदी ईसवी में, सालियाई फ़्रैंकों का एक मेरोविंजी नामक राजकुल तेज़ी से आधुनिक फ़्रांस के अधिकतर क्षेत्र पर हावी हो गया और उनका राज्य आरम्भ हुआ।

समय के साथ-साथ फ़्रैंक शब्द का कोई विशेष जातीय अर्थ नहीं रह गया, लेकिन इन्ही फ़्रैंकों की वजह से ही "फ़्रांस" का नाम "फ़्रांस" पड़ा था। मध्य-पूर्व में रहने वाले लोगों (जैसे की अरबों) के लिए पश्चिमी यूरोप के सारे लोगों का नाम फ़्रैंक पड़ गया। धीरे-धीरे यही शब्द हिन्दी में भी प्रवेश कर गया, जिस वजह से भारतीय उपमहाद्वीप में यूरोप (विशेषकर पश्चिमी यूरोप) के लोगों को "फ़िरंकी" या "फ़िरंगी" बुलाया जाने लगा। अरबी भाषा में आज भी यूरोप को "फ़िरंजा" बुलाते हैं।

संक्षिप्त इतिहास

अन्य जातियों की तरह, फ्रैंकों ने भी अपनी जातीय उत्पत्ति के बारे में कुछ मिथ्याएँ बनाई जिन्हें सच नहीं माना जा सकता। सन् 727 में लिखे "लीबेर हिस्तोरिये फ़्रांकोरुम" (Liber Historiae Francorum) के अनुसार प्राचीन यूनान के क्षेत्र में, ट्रॉय की हार के बाद, लगभग 12,000 ट्रोजन (यानि ट्रॉय के लोग) वहाँ से कूच कर के उत्तरी यूरोप आ गए और फ़्रैंक जाति उन्ही से शुरू हुई। इसी कहानी का एक रूप "फ़्रेदेगार का वर्णन" (Fredegar) में मिलता है, जिसके अनुसार इस समूह में कभी एक फ़्रांकियो नाम का राजा हुआ, जिसपर इस जाति का नाम फ़्रैंक पड़ा। इसी तरह की कथा हमें दूसरी सभ्यताओं में भी मिलती हैं - जैसे रोम का नाम रोम्युलस नामक राजा पर पड़ा और भारत का नाम भरत नाम के राजा पर।

"ताब्युला पेउतिंगेरियाना" (Tabula Peutingeriana) नामक रोमन वर्णन में लिखा है के लगभग सन् 50 ईसवी में फ्रैंको का एक चमावी (Chamavi) नाम का क़बीला राइन नदी को पार कर के रोमन इलाक़े में दाखिल हो गया। यह इतिहास में फ्रैंकों का पहला ज़िक्र है। समय के साथ-साथ रोमन साम्राज्य कमज़ोर होता गया और फ़्रैंकी क़बीले अवसर पाकर अलग-अलग क्षेत्रों पर धावा बोलते रहते थे। सन् 250 में एक फ़्रैंकी दल रोमन क्षेत्र में घुसते-घुसते स्पेन तक जा पहुँचा और वहाँ पर उथल-पुथल मचने लगा। रोमन सेना को उन्हें हटाने में लगभग दस वर्ष लगे। सन् 357 में फ्रैंकों की सालिया उपशाखा का एक राजा रोमन-नियंत्रित धरती पर आया और बस गया। अगले साल ही (यानि 358 में), रोमन साम्राज्य ने सरकारी स्तर पर उन्हें अपना संधि-मित्र (लातिनी में Foederatus) मान लिया।[१]

मेरोविंजी राजकुल (481-751)

पाँचवी शताब्दी तक बहुत से छोटे-छोटे फ़्रैंकी राज्य बन चुके थे। क्लोविस प्रथम (Clovis I) नाम के फ़्रैंकी राजा ने इन सब को जीत लिया और सारे 509 में फ्रैंको का राजा बन गया। उसके दादा का नाम मेरोवेच (Merovech) था और उसी से इस कुल का नाम मेरोविंजी (Merovingian) पड़ा।[२] क्लोविस की पत्नी इसाई थी और क्लोविस ने उसका धर्म अपना लिया, जिस से फ्रैन्कियों का ईसाईकरण शुरू हो गया। क्लोविस के चार पुत्र थे और उसने उनमें अपना राज्य बाँट दिया। आगे चलकर उन पुत्रों ने भी अपने पुत्रों में अपने राज्य बाँटे। इन सब भाइयों में खींचातानी उभरी जिस से मेरोविंजी राजकुल खंडित हो गया। सन् 613 में, क्लोथार द्वितीय (Chlothar II) ने फिर से फ्रैन्कियों को एकत्रित किया और उसके पुत्र दागोबर्त प्रथम (Dagobert I) ने भी सैन्य सफलताएँ पाई।[३] लेकिन दागोबर्त के बाद के राजा कमज़ोर थे। 687 में लड़े गए तॅर्त्री के युद्ध (फ़्रांसिसी में Bataille de Tertry) के बाद तो यह नौबत आ गयी के राज्य वास्तव में राजा के महल का सेवाप्रमुख चला रहा था। यह सेवाप्रमुख बिलकुल राजाओं की तरह काम करने लगे।

कैरोलिंगी राजकुल (751-843)

737-743 के काल में सेवाप्रमुख शार्ल मार्टेल (Charles Martel) नाम का एक व्यक्ति था। उस समय स्पेन पर मुसलमानी राज था और वे फ़्रांस को अपने कब्जे में लेने की कोशिश कर रहे थे। 732 में शार्ल मार्टेल ने तूर के युद्ध (Battle of Tours या Bataille de Poitiers) में मुस्लिम सेना को हराकर ख्याति प्राप्त की। उसी के पेपैं नामक पुत्र ने (जिसे "नाटा पेपैं" या Pepin the Short कहा जाता है) सन् 751 में मेरोविंजी राज ख़त्म किया और स्वयं को राजा घोषित कर दिया। इस नए राजकुल को कारोलिंगी (Carolingian) कहा जाता है।[४] इस कुल का सब से प्रसिद्ध सम्राट शारलेमेन (Charlemagne) था। उसनें अपने साम्राज्य का नाम "पवित्र रोमन साम्राज्य" (Holy Roman Empire) रखा। इसका वैसे रोमन साम्राज्य से कुछ लेना-देना नहीं था। उसने केवल अपने आप को विशाल प्राचीन रोमन साम्राज्य का वारिस जतलाने के लिए ऐसा किया।[५]

फ़्रांस और जर्मनी

आगे चलकर, शारलेमेन के दो पोतों ने आपस में गृह युद्ध लड़ा, जिसका अंत में जाकर यह नतीजा हुआ के फ़्रैंकी साम्राज्य को दो हिस्सों में बाँटा गया: पश्चिमी फ्रान्किया (जो बाद में फ़्रांस बना) और पूर्वी फ्रान्किया (जो बाद में जर्मनी बना)। इन दोनों राज्यों में सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए लड़ाइयाँ होती रहीं। फ़्रैंकी पहचान समय के साथ-साथ लुप्त हो गयी, लेकिन फ़्रांसिसी और जर्मन पहचानों ने दो भिन्न राष्ट्रों और संस्कृतियों का रूप धारण कर लिया। पश्चिमी फ्रान्किया के फ़्रैंक वहाँ की स्थाई गैल्लो-रोमन जातियों में समा गए और उनकी भाषा समय के साथ फ़्रैंकी भाषा से भिन्न लातिनी की वंशज फ़्रांसिसी भाषा बन गई।[६] कुछ इतिहासकार फ़्रांस और जर्मनी की प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध में अपने सीमवर्ती इलाक़ों पर हुई लड़ाइयों को इसी पूर्वी और पश्चिमी फ्रान्किया की खींचातानी के सिलसिले की आधुनिक कड़ियाँ मानतें हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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