फरदूनजी नौरोजी
फरदूनजी नौरोजी, भारतीय समाजसेवक थे।
परिचय
वे १८१७ में भड़ोंच में उत्पन्न हुए। ये दादाभाई नौरोजी से आठ वर्ष बड़े थे। ये दोनों समाज के बहुमुखी सुधारों में अग्रणी थे। इंग्लैंड में दादाभाई का राजनीतिक क्रियाकलाप आरंभ होने पर नौरोजी ने उसमें अत्यधिक रुचि ली। इनके सहयोग से दादाभाई ने ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की बंबई शाखा की स्थापना की, जिसका उद्घाटन इंग्लैंड में भारत सरकार के अवकाशप्राप्त उच्चपदस्थ अधिकारियों की उपस्थिति में १८६६ में हुआ। इस संस्था ने (ब्रिटिश सरकार के) भारत सचिव से दादाभाई की इस माँग का समर्थन किया कि भारत की वित्तीय व्यवस्था का आधार सुदृढ़ करने के प्रयत्न किए जाएं। नौरोजी इंग्लैंड में भारतहितैषियों से इन सुधारों का समर्थन प्राप्त करने भेजे गए। शीघ्र ही भारत की वित्तीय व्यवस्था की जाँच करने के लिए एक संसदीय समिति नियुक्त की गई। दादाभाई और नौरोजी उसमें "ईस्ट इंडिया एसोसिएशन' के प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित हुए। भारत लौटने पर इन्होंने बंबई एसोसिएशन के सचिव का पद सँभालकर एसोसिएशन की गतिविधि को पुन: सक्रिय रूप दिया।
नौरोजी की स्मरणीय सेवाओं का केंद्र बंबई के म्युनिसिपिल कार्पोरेशन का विशाल कक्ष है। यद्यपि वे जनसेवा और समाजसुधार के मामलों में विशेष संलग्न रहते थे, फिर भी दादाभाई को अपने राजनीतिक कार्यों में भी उनका सहयोग प्राप्त होता था। जब नौरोजी स्वयं इंग्लैंड गए, उन्होंने एसोसिएशन के तत्वाधवान में भारतीयों और अंग्रेजों के पारस्परिक सौहार्द बढ़ाने के हेतु भाषण दिए, तथा भारत की शासन संबंधी समस्याओं के हल के लिए अंग्रेज जनता से सहयोग की अपील की। बंबई के म्युनिसिपिल प्रशासन से संबंधित ऐसा कोई प्रश्न नहीं था, जिसपर उन्होंने सूक्ष्म चिंतन न किया हो। जनहित का कोई ऐसा आंदोलन नहीं होता था, जिसमें वे प्रमुख भाग न लेते रहे हों। उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए सरकार ने उन्हें सी. आई. ई. की उपाधि से सम्मानित किया। एक सार्वजनिक भोज में उनका अभिनंदन करते हुए, उस समारोह के अध्यक्ष सर जमशेदजी जेजी भाई ने उनके स्वतंत्र चरित्र और उनकी सेवाभावना की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। वे स्वार्थपरता और भ्रष्टाचार को सहन नहीं कर पाते थे और निर्भीकतापूर्वक उसका विरोध और उद्घाटन किया करते थे। १८८५ में जब उनकी मृत्यु हुई, तो विशिष्ट नागरिकों और सार्वजनिक संस्थाओं में उनके जननेता रूप की स्मृति का सम्मान करने की होड़ सी मच गई।