फगुआ
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बिहार में वसंत पंचमी के बाद ही पूर्वांचल के जनपदों में होली के गीत गाए जाने लगते हैं और ये सिलसिला होली तक बरकरार रहता है। कुछ लोग इन गीतों को 'फाग' भी कहते हैं, लेकिन अंग प्रदेश में इसे फगुआ कहते हैं। फगुआ मतलब फागुन, होली। होली के दिन की परम्परा यह है कि सुबह सुबह धूल-कीचड़ से होली खेलकर, दोपहर में नहाकर रंग खेला जाता है, फिर शाम को अबीर लगाकर हर दरवाजे पर घूमके फगुआ गाया जाय। पर फगुआ और भांग की मस्ती में यह क्रम पूरी तरह बिसरा दिया जाता है। फगुआ का विशेष पकवान पिड़की (गुझिया) हर घर में बनता है और मेलमिलाप का समा बना रहता है।[१]