प्राक्कलन समिति
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यह समिति संसद के माध्यम से सरकार द्वारा प्राप्त किए गए धन के व्ययों के अनुमान की जांच-पड़ताल करती है। यह स्थायी मितव्ययिता समिति के रूप में कार्य करती है और इसके आलोचना या सुझाव सरकारी फिजूलखर्ची पर रोक लगाने का काम करते हैं।
प्राकलन समिति- यह बताती है कि प्राक्कलन में निहित नीति के अनुरूप क्या मितव्ययिता बरती जा सकती है तथा संगठन कार्यकुशलता और प्रशासन में क्या-क्या सुधार किए जा सकते हैं संसद की वित्तीय कार्यों में सहायता करने के लिए बनाई गई स्थाई समितियों में से एक प्रॉकलन समिति है इसका गठन 1950 में तत्कालीन वित्त मंत्री जॉन मथाई की सिफारिश से किया गया जिसमें 30 सदस्य हैं जिन का चुनाव लोकसभा सदस्यों में से एकल संक्रमणीय मत के द्वारा होता है और इसके अध्यक्ष का चुनाव लोकसभा अध्यक्ष इन सदस्यों में से करते हैं जो सत्तारूढ़ दल का होता है इसका कार्यकाल 1 वर्ष होता है मंत्री इस समिति के सदस्य नहीं होते हैं समिती काअध्यक्ष लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा मनोनीत होता है। प्राक्कलन समिति सबसे बडी सांसद समिति है। सदस्य– लोकसभा के 30 सदस्य होते हैं, इसमें राज्यसभा के सदस्यों को शामिल नहीं किया जाता है। कार्यकाल– सदस्यों का कार्यकाल 1 वर्ष का होता है। प्रत्येक वर्ष मई से अगले वर्ष 30 अप्रैल तक होता है।