प्रवेशद्वार:दर्शनशास्त्र/चयनित जीवनी/11

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नवयुवक जिद्दू कृष्णमूर्ति

जिद्दू कृष्णमूर्ति (१२ मई १८९५ - १७ फरवरे, १९८६) दार्शनिक एवं आध्यात्मिक विषयों के लेखक एवं प्रवचनकार थे। वे मानसिक क्रान्ति, मस्तिष्क की प्रकृति, ध्यान, मानवी सम्बन्ध, समाज में सकारात्मक परिवर्तन कैसे लायें आदि विषयों के विशेषज्ञ थे। वे सदा इस बात पर जोर देते थे कि प्रत्येक मानव को मानसिक क्रान्ति की जरूरत है और उनका मत था कि इस तरह की क्रान्ति किन्हीं वाह्य कारक से सम्भव नहीं है चाहे वह धार्मिक, राजनैतिक या सामाजिक कुछ भी हो।

जिद्दू कृष्णमूर्ति का जन्म एक तेलुगू ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जिद्दू कृष्णमूर्ति का जन्म 11 मई 1895 में आन्ध्र प्रदेश के चिन्तूर जिले के मदन पल्ली नामक स्थान पर हुआ था। बालक कृष्णमूर्ति की गहरी आध्यात्मिकता को देखकर उस समय के प्रमुख थियोसोफिस्ट,सी डब्लू लीड बीटर और श्रीमती एनी बेसेन्ट ने यह स्वीकार किया कि बालक का भविष्य एक महान् आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में विश्व का मार्गदर्शन कर सकता है। जनवरी 1911 में उडचार में जे. कृष्णामूति की अध्यक्षता में "ऑर्डर ऑफ़ द स्टार इन द ईस्ट" की स्थापना हुई। 1920 में वे पेरिस गये और उन्होंने फ्रेन्च भाषा में कुशलता प्राप्त की 3 अगस्त 1929 को श्रीमती एनी बेसेन्ट और 3000 से अधिक स्टार सदस्यों की उपस्थिति में उन्होंने 18 वषों पूर्व संगठन "ऑर्डर ऑफ़ द स्टार इन द ईस्ट" को भंग कर दिया था। द्वितीय विश्वयुद्व के अनन्तर वे ओहाई (केलिफोर्निया) में रहे। कृष्णमूर्ति पर प्रकृति का बहुत गहरा प्रभाव था। वे चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति प्राकृतिक सौन्दर्य को जाने और उसे नष्ट न करे। वे कहते थे कि शिक्षा केवल पुस्तकों से सीखना और तथ्यों को कंठस्थ करना मात्र नहीं है। उनके अनुसार शिक्षा का अर्थ है कि हम इस योग्य बने कि पक्षियों  के कलरव को सुन सकें, आकाश को देख सकें, वृक्षों तथा पहाडियों के अनुपम सौंदर्य का अवलोकन कर सकें। अधिक पढ़ें…