प्रकाशीय अवयवों का निर्माण एवं परीक्षण

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प्रकाशीय अवयवों का निर्माण एवं परीक्षण का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। इसमें निर्माण के बहुत सी प्रक्रियाएँ एवं प्रकाशीय परीक्षण आते हैं।

परिचय

जी. बैटिस्टा डेल पोर्टा (G. Battista dell Porta) ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक मैगिया नेचुरलिस (Magia Naturalis) में काँच को घिसकर लेंस बनाने की विधि लिखी है। थोड़े सुधार के साथ अभी भी वही विधि काम में लाई जाती है। इच्छित काँच के टुकड़े को हथौड़ी, या सँड़सी से चारों तरफ से तोड़कर लेंस के आकार का बना लेते हैं। उत्तल लेंस बनाने के लिए प्याले के आकार का और अवतल लेंस बनाने के लिए गुंबद के आकार का यंत्र लोहे के एक छड़ के ऊपर लगा रहता है, जिसे बिजली के मोटर द्वारा घुमाया जाता है। इस यंत्रों की वक्रता-त्रिज्या लेंस की वांछित वक्रता-त्रिज्या (radius of curvature) के बराबर होती है। काँच के टुकड़े को इसी यंत्र में घिसा जाता है और घिसने के लिए काँच और यंत्र के बीच में रेत का उपयोग करते हैं। आजकल रेत के स्थान पर कार्बोरंडम का चूर्ण उपयोग में आता है। जैसे-जैसे लेंस घिसता है, अधिक शुद्ध यंत्र लगाते जाते हैं और चूर्ण भी पतला प्रयुक्त करते जाते हैं। घिसने के बाद लेंस पर फेरिक-ऑक्साइड की पॉलिश करते हैं। पॉलिश करते समय घिसनेवाले यंत्र पर मोम, या पिच (pitch) की पतली परत जमा देते हैं। लेंस के दोनों सतहों को घिसने के पश्चात् इसके किनारों को घिसकर गोल बना देते हैं।

आजकल हीरे का चूर्ण लगा यंत्र वक्रता पैदा करने के लिए प्रयुक्त होता है। यदि किसी गोलीय सतह पर उसकी वक्रता-त्रिज्या से कम त्रिज्या का वृत्ताकार वलय (ring) रखा जाए तो वलय गोलीय सतह पर ठीक बैठेगा। चक्कर लगाते हुए प्याले के आकार का यंत्र, जिसके किनारों पर हीरे का चूर्ण लगा रहता है इस तरह समंजित (adjust) किया जाता है कि इसका घूर्णन अक्ष (axis of rotation) लेंस के अक्ष को वांछित गोलीय सतह के वक्रताकेंद्र पर काटै। यंत्र इस तरह झुका रहता है कि उसका किनारा बनाए जानेवाले लेंस को बीच में काटता है। जब लेंस और यंत्र अपने अपने अक्ष पर चक्कर लगाते हैं, तब वांछित वक्रता-त्रिज्या का लेंस बनता है।

अच्छी घिसाई एवं पॉलिश के लिए बहुत ही शुद्ध वक्रता-त्रिज्या का यंत्र प्रयुक्त होता है तथा कार्वोरंडम चूर्ण भी बहुत बारीक लिया जाता है। घिसते समय चूर्ण के कण भिन्न भिन्न आकार के कणों में टूट जाते हैं। फिर से चूर्ण का उपयोग करते समय भिन्न-भिन्न आकार के कणों को अलग-अलग कर लेना आवश्यक है, क्योंकि पतले चूर्ण में बड़े आकार के एक कण की उपस्थिति भी लेंस में खँरोंच पैदा कर देगी। भिन्न भिन्न आकार के कण पानी की धारा प्रवाहित कर अलग किए जाते हैं, क्योंकि पानी में प्रवाहित करने पर समान आकार के कण एक स्थान पर एकत्रित होते हैं।

अवरोधन (Blocking)

अधिक शुद्ध वक्रता-त्रिज्या के लेंस बनाने के लिए पहले बताए ढंग से घिसे लेंसों को लोहे के एक यंत्र पर समूह के रूप में रखते हैं। लेंसों की ऊपरी सतह पर पिच का एक छोटा बटन बना दिया जाता है और निचली सतह को भिगोकर कुछ देर के लिए यंत्र से चिपका दिया जाता है। लोहे के एक दूसरे ढाँचे को गरम कर लेंसों पर बने बटनों के ऊपर रख देते हैं। गर्मी से बटन मुलायम हो जाते हैं और ऊपरी ढाँचे से चिपक जाते हैं। पूरे उपकरण को ठंडे पानी से ठंडा करते हैं, जिससे ऊपरी ढाँचे से लेंसों का समूह जुड़ जाता है। घिसते समय निचला यंत्र ऊर्ध्वाधर अक्ष के चारों ओर घूमता है, जब कि ऊपरी ढाँचा एक ओर से दूसरी ओर दोलन करता है।

पॉलिश करते समय नीचे के घिसनेवाले यंत्र के स्थान पर एक दूसरा यंत्र लगाते हैं, जिसकी सतह पर पिच की एक पतली परत लगी रहती है। पॉलिश करने के यंत्र पर लगे पिच की सतह की वक्रता की त्रिज्या, यंत्र को विपरीत वक्रता वाले यंत्र (opposite curved foot) से दबाकर ठीक करते हैं। इसी कारण पॉलिश करनेवाले यंत्रों के जोड़े बनाए जाते है, जोड़े के एक सदस्य की सतह उत्तल होती है और दूसरे की अवतल।

घिसने और पॉलिश करने की क्रिया के संबंध में लोगों के भिन्न भिन्न विचार है। परंतु इतना निश्चित है कि घिसते समय कार्बोरंडम के चूर्ण में उपस्थित कणों के किनारे काँच पर दबाव डालते हैं, जिससे काँच में से छोटे छोटे टुकड़े कटकर निकल जो है और काँच लेंस की आकृति का हो जाता है। इस समय काँच की सतह खुरदरी होती है। पॉलिश की क्रिया के संबंध में कुछ लोगों का विचार है कि यह क्रिया भी घिसने की क्रिया ही है। परंतु आजकल कार्बोरंडम के चूर्ण की जगह पर फेरिक ऑक्साइड का उपयोग होने से एमरी (emery) के कण बहुत छोटे होते हैं। दूसरी विचारधारा के अनुसार फेरिक ऑक्साइड के कण पिच की सतह पर जम जाते हैं और वे रेगमाल की तरह लेंस की सतह को घिसकर सभी जगह एक समान और चिकना कर देते हैं।

लेंस के केंद्र और किनारों को ठीक करना

लेंस का केंद्र उसके प्रधान अक्ष पर होना चाहिए। ऐसा करने के लिए इस्पात के दो समान प्याले लिए जाते हैं। प्यालों के किनारों के बीच लेंस का इस तरह से कस देते हैं कि दोनों प्याले समाक्ष (coaxial) हों। इस स्थिति में प्यालों का अक्ष ही लेंस का अक्ष होगा। इसके बाद प्यालों को घुमाते हुए लेंस के किनारों को घिसने के यंत्र पर घिस लेते हैं।

पृष्ठीय विलेपन (Surface Coating)

पॉलिश किए हुए काँच की सतह पर यदि प्रकाश की किरणें लंबवत् पड़ती है, तब कुल प्रकाश का भाग सतह से परावर्तित हो जाता है, जहाँ म्यू (m) काँच का अपवर्तनांक है। साधारण काँच के लिए यह भाग कुल प्रकाश का 4 प्रतिशत है, परंतु कैमरा लेंसों के लिए यह भाग लगभग 7 प्रतिशत होता है। इसके कारण अनेक कठिनाइयाँ उपस्थित हो जाती है। नई पालिश किए गए लेंस की अपेक्षा कुछ धुँधले सतहवाले लेंसों के लिए यह भाग कम होता है। सन् 1936 में जॉन स्ट्रॉंग (John Strong) ने देखा कि निर्वात में लेंस की सतह पर कैल्सियम फ्लुओराइड के वाष्प की पतली परत जमा देने पर, लेंस द्वारा परावर्तित प्रकाश की मात्रा कम हो जाती है। आजकल प्राय: सभी लेंसों की सतहों पर वाष्पीकृत मेग्नीशियम-फ्लुओराइड की हलकी परत जमा दी जाती है। इससे लेंस की सतह द्वारा प्रकाश का परावर्तित भाग घटकर कुल प्रकाश का 1 प्रतिशत से 2 प्रतिशत तक हो जाता है।

लेंसों को जोड़ना (Cementing)

गोलीय विपथन और वर्ण विपथन (chromatic aberration) को हटाने के लिए भिन्न पदार्थों के दो, या कई लेसों को पारदर्शक सीमेंट से जोडकर संयुक्त लेंस (compound lens) बनाते हैं। सन् 1940 तक कैनाडा बाल्सम सीमेंट के रूप में प्रयुक्त होता था। कैनाडा बाल्सम से जुडे लेंस बहुत निम्न ताप पर अलग हो जाते हैं, अत: आजकल प्राय: ब्युटिल मेथाक्रिलेट (butyl methacrylate) सीमेंट के रूप में प्रयुक्त होता है। लेंसों के जोड़े जानेवाली सतह पर गरम सीमेंट लगा दिया जाता है तथा लेंसों को रगड़कर अतिरिक्त सीमेंट हटा दिया जाता है। कैमरा, दूरदर्शक, सूक्ष्मदर्शी इत्यादि के अभिदृश्यक (objective) और नेत्रिका (eye-piece) लेंस संयुक्त लेंस होते हैं।

लेंसों का आरोपण (Mounting)

क्राउन काँच और फ्लिंट काँच का तापीय प्रसार असमान होने के कारण, तीन इंच से अधिक व्यासवाले लैंस सीमेंट द्वारा नहीं जोड़े जाते। ऐसे लेंसों को कुछ दूरी पर रखा जाता है, परंतु यदि उन्हें पास रखना आवश्यक हो तो भी वे इस तरह रखे जाते हैं कि एक दूसरे को न छुएँ। ऐसा करने के लिए उन्हें किसी धातु के फ्रेम में फँसाकर रखा जाता है। कभी कभी लेंसों के किनारों को फ्रेम में सीमेंट द्वारा जोड़ भी दिया जाता है।

अगोलीय (Nonspherical) सतहों वाले लेंस

प्राय: लेंसों की सतह गोलीय होती है, क्योंकि यही एक ऐसी ज्यामितीय आकृति है जिसे पूर्ण शुद्धता और आसानी से बनाया जा सकता है।

अगोलीय लेंस विपरीत वक्रता के वेलनाकार यंत्र पर घिसकर बनाया जाता है। घिसते समय यंत्र का घूर्णन अक्ष लेंस के अक्षके समांतर होना चाहिए। यदि लेंस भी चक्कर लगाने के लिए स्वतंत्र होगा, तो बेलनाकार के स्थान पर गोलीय हो जाएगा। अत: घिसते समय लेंस स्थिर होना चाहिए।

यदि किसी लेंस का अक्ष ही घूर्णन अक्ष हो, परंतु लेंस की सतह गोलीय न हो, तो ऐसे लेंस को अगोली (aspheric) लेंस कहते हैं। ऐसे लेंस को वांछित आकार के घिसने के यंत्र पर घिसकर बनाया जाता है। अगोली लेंस का प्रयोग संग्राही (condenser) लेंस के रूप में तथा द्विनेत्री की नेत्रिका एवं कुछ कैमरों में होता है।

काँच के सिवाय अन्य पदार्थों के लेंस

काँच पराबैंगनी (ultra-violet) और अवरक्त (infra-red) प्रकाश को अवशोषित कर लेता है। अत: स्पेक्ट्रम के पराबैगनी क्षेत्र में कैल्सियम फ्लुओराइड, लिथियम फ्लुओराइड, क्वार्ट्ज़ इत्यादि के लेंस प्रयुक्त होते हैं। स्पेक्ट्रम के अवरक्त क्षेत्र में पोटैशियम आयोडाइड, आर्सेंनिक सल्फाइड, सिल्वर क्लोराइड, थैलियम ब्रोमाइड-आयोडाइड सिलिकन और जर्मेनियम लेंसों का उपयोग होता है।

जब प्लास्टिक पदार्थों को ऊष्मा द्वारा गलाकर लेंस बनाया जाता है, तब वे सस्ते भी पड़ते हैं और हलके भी। आजकल दूरदर्शी और कैमरा के प्लास्टिक अभिदृश्यक लेंस को बनाने के प्रयत्न हुए हैं। एक समुचित मेथाक्रिलेट को क्राउन काँच और पॉलिस्टिरीन (polystrene) को फ्लिंट की जगह लगाया गया, परंतु आर्द्रता और ताप आदि के प्रभाव से प्लास्टिक पदार्थों में परिवर्तन होने के कारण बहुत सी समस्याएँ पैदा हो जाती है।

लैंसों का परीक्षण

लेंस घिसते समय बीच बीच में इस बात की जाँच की जाती है कि सतह गोलीय है और लेंस वांछित वक्रता की त्रिज्या का है या नहीं। पीतल की एक प्लेट के बाहरी किनारे के, जो गोल और वांछित लेंस की वक्रता त्रिज्या के बराबर त्रिज्या का होता है, लेंस की सतह पर रखते हैं और देखते हैं कि वह ठीक बैठता है या नहीं। यदि वह ठीक नहीं बैठता है, तो उसी के अनुसार लैंस को फिर घिसा जाता है। अधिक शुद्धता के लिए पालिश करते समय फिर जाँच की जाती है। इसके लिए काँच का एक परीक्षण पट्ट (plate) प्रयुक्त होता है, जिसकी वक्रता की त्रिज्या विपरीत चिह्न के साथ (with opposite sign) लेंस की वंछित वक्रता त्रिज्या के बराबर होती है, अर्थात् यदि लेंस उत्तल है और उसकी वक्रता त्रिज्या 25 सेंमी. है, तो परीक्षण पट्ट अवतल होगा और उसकी भी वक्रता त्रिज्या 25 सेमी. होगी। यदि लेंस ठीक होगा, तो लेंस और परीक्षण पट्ट की सतहों के बीच हवा का समांतर फिल्म (air film) बनेगा। प्रकाश की किरण फिल्म की दोनों सतहों से परावर्तन के पश्चात् केवल एक रंग की दिखाई देंगी (जैसा साबुन के बुलबुलों में होता है) और परावर्तित किरण का रंग फिल्म की मोटाई पर निर्भर करेगा। परंतु लेंस की सतह गोलीय न होने पर अथवा वक्रता त्रिज्या ठीक न होने पर, प्रत्येक बिंदु पर फिल्म की मोटाई भिन्न होगी और फिल्म में न्यूटन बलय (ring) बनेगा। लेंस को फिर से थोड़ा घिसकर ठीक किया जाता है।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ