पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय इंदौर
पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय, इंदौर मध्य प्रदेश के सबसे पुराने पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों में से एक है। स्वतंत्रता के पूर्व यह ‘‘भील पल्टन’’ का प्रशिक्षण केंद्र था। वर्ष 2012 में इसे ‘‘महाविद्यालय’’ घोषित किया गया । आरक्षक स्तर पर प्रदेश का यह एकमात्र और देश के कुछ चुनिंदा पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों में से एक है, जिसमें महिलायें और पुरूष एक साथ और एक समान प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। पीटीसी प्रारंभ में ब्रिटिश सरकार द्वारा भील जनजाति को ट्रेनिंग देने हेतु बनाया गया था तब यह मालवा भील कॉर्प्स के नाम से प्रसिद्ध था, स्वतंत्रता प्रिय भील अंग्रजों से बगावत कर बैठे ,मालवा भील कॉर्प्स के सभी जवान साहसिक प्रवत्ति के थे। भील और अंग्रजो के मध्य विवाद हुआ तब युद्ध की स्थिति हुई इस समय मालवा भील कॉर्प्स के केवल 20 भील सैनिकों ने अंग्रजों को युद्ध में हरा दिया , मालवा भील कॉर्प्स के सभी जवानों ने अंग्रेजो के खिलाफ बगावत कर दी । आजादी के बाद यह मध्यप्रदेश के गठन के समय 1956 में पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र बना और 2012 में पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय बना । [१]
इतिहास
ब्रिटिशों का शासनकाल शुरू होने के बाद में मालवा और निमाड़ की कई रियासतें और जागीरें खत्म हो गईं। इनके सैनिकों ने टोलियां बनाकर लूटमार करना शुरू कर दिया। इन्हें पिंडारी कहा जाता था।
अंग्रेजों ने पिंडारियों के खिलाफ अभियान चलाने में तीरंदाज भीलों का सहारा लिया। कैप्टन औट्रम ने भीलों को नौकरी की पेशकश कर 1838 में मालवा भील कॉर्प्स (भील पलटन) स्थापित की। इंदौर का मौजूदा पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज उस समय भील पल्टन का प्रशिक्षण केंद्र था। यहां उन्हें युद्ध कौशल के साथ हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता था। भील पल्टन के सभी जवान साहसी प्रवृत्ति के थे। इसलिए अंग्रेज इनका उपयोग उपद्रवी टोलियों पर नियंत्रण करने के लिए करते थे। जंगल में स्वतंत्रता से रहने वाले भीलों को अंग्रेजों की नौकरी ज्यादा दिन तक रास नहीं आई। ज्यादातर भील अंग्रेजों से बेहतर ट्रेनिंग लेने के लिए पल्टन में भर्ती हुए थे। प्रशिक्षण पूरा होने पर पल्टन के 20 जवानों ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया। पल्टन के शेष जवानों ने भी अंग्रेजों का साथ छोड़ दिया।
इन जवानों ने प्रशिक्षण के दौरान जो कुछ सीखा था, वह अपने साथियों को सिखाना शुरू कर दिया। कुछ समय बाद प्रशिक्षण केंद्र स्टेट फोर्स में शामिल जनजातीय सैनिकों को ट्रेनिंग दी जाने लगी। आजादी मिलने के बाद 1948 तक इसे भील पल्टन ही कहा जाता था। [२]