पालतूकरण

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मनोरंजन के लिए जंगली पशुओं के पालन-पोषण की कला का पहले-पहल विकास हुआ। कब से इस कला का प्रारंभ हुआ, इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता। प्राचीनतम प्रस्तरयुग में कुत्तों को ही मनुष्य ने सर्वाधिक पालतू बनाया। उस समय के मनुष्य असभ्य, जंगली, बनजारे और शिकारी होते थे। शिकार में ये कुत्ते उन्हें मदद देने के काम में लाए जाते थे। उस समय बच्चों के मनोरंजन के लिए मनुष्य भेड़ियों के बच्चों को पकड़ लाते तथा उन्हें बाँधकर रखते होंगे। इसी से प्राणियों के पालतूकरण की नींव पड़ी। इसके बहुत समय बाद मनुष्य कृषक तथा चरवाहा बना और उसने नियमित रूप से पशुओं को पालना शुरू कर दिया। ऐसा समझा जाता है कि आज से करीब १०,००० वर्ष पूर्व दक्षिण रूस में पशुपालन शुरू हुआ। भेड़ बकरियों का पालन भी प्राय: इसी समय शुरू हुआ। सुअर का पालतूकरण ८,००० वर्ष पूर्व हुआ माना जाता है। घोड़ों का पालतूकरण ५,००० वर्ष पूर्व मध्य एशिया के जंगली प्रदेशों में हुआ माना जाता है। पहले इनका पालतूकरण मांस के लिए, किंतु बाद में सवारी करने, बोझ ढोने तथा अंत में गाड़ी खींचने के लिए होने लगा। गदहों का पालतूकरण भी लगभग ५,००० वर्ष पूर्व पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका में शुरू हुआ। बिल्ली का पालतूकरण उत्तरी अफ्रीका में संभवत: १२ हजार वर्ष पूर्व शुरू हुआ। पक्षियों का पालतूकरण ५,००० वर्ष पूर्व कबूतर से हुआ, फिर मुर्गियों, हाथियों, ऊँटों और याकों का पालतूकरण हुआ। मधुमक्खियों और रेशम के कीड़ों का पालतूकरण भी बहुत पुराना है।

पालतूकरण का उद्देश्य

मनुष्य अपने स्वार्थ और लाभ के लिए प्राणियों का पालन करता चला आ रहा है। शिकार के लिए कुत्तों, घोड़ों तथा बाद में चीता और बाज आदि का उपयोग शुरू हुआ। पीछे घोड़े, गदहे, ऊँट आदि को सवारी के काम में तो लाते ही रहे, पर साथ ही साथ इनके अनेक अन्य काम भी लेते रहे। बैल, बारहसिंगे, याक, घोड़े आदि सब गाड़ी खींचने, हल चलाने तथा सिंचाई के लिए पानी निकालने एवं बोझ ढोने में सहायता करते थे। इन कामों के अतिरिक्त मांस के लिए बैल, भेड़, सुअर, बकरी, खरगोश एव नाना प्रकर की चिड़ियाँ पाली जाने लगीं। मांस के अतिरिक्त, गाय, भैंस, बकरी आदि से दूध, घी, मक्खन और चिड़ियों से अंडे प्राप्त होते हैं। पशुओं की खालों से अनेक प्रकार की वस्तुएँ बनाई जाती हैं। अनेक पशुओं से ऊन भी प्राप्त किया जाता है। चिड़ियों के पंखों से, शृंगारप्रसाधन के अतिरिक्त, अन्य प्रकार की वस्तुएँ भी बनाई जाती हैं। पशुओं की हड्डियों से सजावट के अनेक सुंदर सामान, बटन, खाद आदि तैयार होते हैं। कुत्ते, बिल्ली, खरगोश, गिनीपिग, सफेद चूहे और अनेक प्रकार की चिड़ियाँ मनोरंजर के लिए पाली जाती हैं।

पालतू प्राणियों की नस्लों में मनुष्य ने अनेक सुधार किए हैं। ये अपने पूर्वजों से बिल्कुल भिन्न मालूम पड़ने लगे हैं। इनमें कुछ आवश्यक गुणों का बहुत अधिक विकास किया गया है। कुछ नसलों के प्राणी तेज दौड़नेवाले, कुछ अधिक दूध देनेवाले, कुछ कठोर परिश्रम करनेवाले तथा कुछ उत्कृष्ट कोटि का ऊन उत्पन्न करनेवाले होते हैं। मनुष्य के पालतूकरण का ससे अधिक प्रभाव कुत्तों पर पड़ा। मनुष्य ने छोटे से छोटे कुत्ते - खिलौने कुत्ते, जिन्हें जेब में भी रखा जा सकता है - तथा बड़े से बड़े कुत्ते - सेंट बर्नाडं कुत्ते, जिनका भार एक स्वस्थ युवक के भार से भी अधिक होता है और चालाक से चालाक कुत्ते, जो वस्त्रों तथा अन्य वस्तुओं को सूँघकर अपने मालिक, चोरों आदि का पता लगा सकते हैं, पैदा किए हैं।

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