पश्चिमोत्तानासन

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पश्चिमोत्तानासन

पश्चिमोत्तानासन शब्द संस्कृत के मूल शब्दों से बना है “पश्चिम” जिसका अर्थ है “पीछे” या “पश्चिम दिशा”, और “तीव्र खिंचाव” है और आसन जिसका अर्थ है “बैठने का तरीका”। इसका सम्पूर्ण मतलब इस आसन में बैठ कर शरीर के बीच के हिस्से में तीव्र खिंचाव पैदा करना है ताकि शरीर की ऊर्जा को नियंत्रित किया जा सके।

यह आसन शिव संहिता में भी वर्णित है और साथ ही अष्टांग श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।

हठ योगियों द्वारा यह आसन शरीर में ऊर्जा के बहाव को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।

पश्चिमोत्तानासन व्यक्ति की lower back (कमर का निचला हिस्सा) के लिए रामबाण योगासन है। इस आसन के नियमित अभ्यास से कमर के निचले हिस्से में दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है। लेकिन इसका सिर्फ यही एक फायदा नहीं है।[१]

पश्चिमोत्तासन - लाभ

1. पृष्ठभाग की सभी मांसपेशियां विस्तृत होती है। पेट की पेशियों में संकुचन होता है। इससे उनका स्वास्थ्य सुधरता है।

2. हठप्रदीपिका के अनुसार यह आसन प्राणों को सुषुम्णा की ओर उन्मुख करता है जिससे कुण्डलिनी जागरण मे सहायता मिलती है।

3. जठराग्रि को प्रदीप्त करता है व वीर्य सम्बन्धी विकारों को नष्ट करता है। कदवृध्दि के लिए महत्वपूर्ण अभ्यास है।

4. यह आसन तनाव, चिंता, सिरदर्द और थकान को कम करने में सहायक है।

5. इस आसन से उच्च रक्तचाप, अनिद्रा, और बांझपन जैसे रोगों को आसानी से को ठीक किया जा सकता है।

6. इसे करने से कंधे, रीढ़ को खिंचाव उत्पन्न होता है जिससे इन हिस्से में उत्पन्न हुए दर्द से छुटकारा मिलता है।

बाहरी कड़ियाँ

  • पश्चिमोत्तानासन के फायदे और करने की विधि[२]
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