परवीन शाकिर
सैयदा परवीन शाकिर | |
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जन्म | साँचा:br separated entries |
मृत्यु | साँचा:br separated entries |
मृत्यु स्थान/समाधि | साँचा:br separated entries |
व्यवसाय | सेंट्रल सुपीरयर सर्विस की अधिकारी |
राष्ट्रीयता | पाकिस्तानी |
विधा | कविता, गज़ल, मुक्त छंद |
विषय | उर्दू साहित्य |
साहित्यिक आन्दोलन | उर्दू शायरी में एक युग का प्रतिनिधित्व |
उल्लेखनीय कार्यs | खुली आँखों में सपना, ख़ुशबू, सदबर्ग, इन्कार, रहमतों की बारिश, ख़ुद-कलामी, इंकार(१९९०), माह-ए-तमाम (१९९४) |
जीवनसाथी | सैयद नसीर अली |
सन्तान | सैयद मुराद अली |
जालस्थल | |
http://parveenpoetry.blogspot.com/ |
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सैयदा परवीन शाकिर (उर्दू: پروین شاکر नवंबर 1952 – 26 दिसंबर 1994), एक उर्दू कवयित्री, शिक्षक और पाकिस्तान की सरकार की सिविल सेवा में एक अधिकारी थीं।[१] इनकी प्रमुख कृतियाँ खुली आँखों में सपना, ख़ुशबू, सदबर्ग, इन्कार, रहमतों की बारिश, ख़ुद-कलामी, इंकार(१९९०), माह-ए-तमाम (१९९४) आदि हैं।[२]
कम निगाही भी रवां थी शायद
आंख पाबंद-ए-हया थी शायद
सर से आंचल तो न ढलका था कभी
हां, बहुत तेज हवा थी शायद
एक बस्ती के थे राही दोनों
राह में दीवार-ए-अना थी शायद
हमसफर थे तो वो बिछड़े क्यों थे
अपनी मंजिल भी जुदा थी शायद
वे उर्दू शायरी में एक युग का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनकी शायरी का केन्द्रबिंदु स्त्री रहा है। फ़हमीदा रियाज़ के अनुसार ये पाकिस्तान की उन कवयित्रियों में से एक हैं जिनके शेरों में लोकगीत की सादगी और लय भी है और क्लासिकी संगीत की नफ़ासत भी और नज़ाकत भी। उनकी नज़्में और ग़ज़लें भोलेपन और सॉफ़िस्टीकेशन का दिलआवेज़ संगम है।
पाकिस्तान की इस मशहूर शायरा के बारे में कहा जाता है, कि जब उन्होंने 1982 में सेंट्रल सुपीरयर सर्विस की लिखित परीक्षा दी तो उस परीक्षा में उन्हीं पर एक सवाल पूछा गया था जिसे देखकर वह आत्मविभोर हूँ गयी थी।[३]
सन्दर्भ
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- ↑ कोमल एहसासों की शायरा परवीन शाकिर स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।(बीबीसी हिंदी, लेखक: रेहान फ़ज़ल)
बाहरी कड़ियाँ
- इंटरनेट मूवी डेटाबेस पर परवीन शाकिर
- परवीन शाकिर उर्दू शायरी
- कैफे आईना – उनकी कविताओं की ऑन लाइन पुस्तक
- परवीन शाकिर जखीरा में