पथेर पांचाली (1955 फ़िल्म)

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पाथेर् पांचाली
चित्र:Pantherpanchali.jpg
पाथेर पाँचाली का टाइटल कार्ड
निर्देशक सत्यजित राय
पटकथा सत्यजित राय
आधारित साँचा:based on
अभिनेता सुबीर बैनर्जी
कानु बैनर्जी
करुणा बैनर्जी
उमा दासगुप्ता
चुन्नीबाला देवी
तुलसी चक्रवर्ती
संगीतकार रवि शंकर
छायाकार सुब्रत मित्रा
संपादक दुलाल दत्ता
स्टूडियो पश्चिम बंगाल सरकार
वितरक एडवर्ड हरीसन साँचा:small
मर्चेण्ट आइवरी प्रॉडक्शन्स
सोनी पिक्चर्स क्लासिक्स साँचा:small
प्रदर्शन साँचा:nowrap [[Category:एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"। फ़िल्में]]
  • August 26, 1955 (1955-08-26) (भारत)
समय सीमा 115 मिनट
122 मिनट (पश्चिम बंगाल)[१]
देश भारत
भाषा बांग्ला
लागत 150,000 (US$3000)[२]

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पाथेर पांचाली (साँचा:lang-bn, साँचा:IPA-bn, साँचा:lang-en) बंगाली सिनेमा की 1955 में बनी एक नाट्य फ़िल्म है। इसका निर्देशन सत्यजित

राय ने एवं निर्माण पश्चिम बंगाल सरकार ने किया था। यह फ़िल्म बिभूतिभूषण बंधोपाध्याय के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है।

पाथेर पांचाली (हिन्दी अनुवाद-पथगीत) 1955 मे बनी बंगाली भाषा की नाटक-फिल्म है, जिसे सत्यजीत रे द्वारा लिखित और निर्देशित किया गया है। इस फिल्म का प्रॉडक्शन पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा किया गया था। यह बिभूतिभूषण बंदोपाध्याय के 1929 के बंगाली उपन्यास पर आधारित है। रे ने इसी फिल्म से निर्देशन मे पदार्पण किया था। इसमें सुबीर बनर्जी, कानू बनर्जी, करुणा बनर्जी, उमा दासगुप्त और चुनिबाला देवी शामिल हैं। अपु-रचनात्रय में पहली फिल्म, पाथेर पांचाली मे नायक अपु (सुबीर बनर्जी), उनकी बड़ी बहन दुर्गा (उमा दासगुप्त) और उनके गरीब परिवार के कठोर गांव जीवन के बचपन को दर्शाया गया है।

प्रॉडक्शन का काम पैसो की कमी की वजह से कई बार रुका और फिल्म को पूरा होने मे लगभग तीन साल लगे। फिल्म सिर्फ कुछ ही जगहो पर फिल्मायी गयी। कम बजट होने के कारण ज्यादातर नए कलाकार और अनुभवहीन कर्मचारी थे। फिल्म का साउंडट्रैक मशहूर सितार प्लेयर रवि शंकर ने किया था। फिल्म का प्रीमीयर 3 मई 1955 को न्यू यॉर्क म्यूजियम मे एक प्रदर्शिनी के दौरान किया गया था। पाथेर पांचाली 1955 मे ही कलकत्ता मे बड़े उत्साह के साथ रिलीज़ की गयी और फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग मे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री और भारत के प्रधानमंत्री ने भी शिरकत की।

कहानी

फिल्म की कहानी ग्रामीण बंगाल के निश्चिंदीपुर गाँव मे सन 1910 से शुरू होती है। वहाँ हरिहर रॉय (कानू बनर्जी) नाम का आदमी पुजारी के रूप मे काम करता है, लेकिन वह अपना भविष्य एक कवि और नाटककार के रूप मे देखता है। घर पर उसकी पत्नी सर्बजाया(करुणा बनर्जी), बेटी दुर्गा और अपु हैं। घर पर उनके अलावा हरिहर की बड़ी चचेरी बहन इंदिर ठकरून भी रहती है। कमाई कम होने के कारण सर्बजाया नहीं चाहती कि इंदिर वहाँ रहे, जो अक्सर रसोई से खाना चुराती है।  

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