पंडित हृषिकेश चतुर्वेदी

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हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार पंडित हृषिकेश चतुर्वेदी का जन्म २२ दिसंबर १९०७ को तदनुसार पौष कृष्ण ३ सम्वत १९६४ को हुआ।  पंडित चतुर्वेदी के संपूर्ण कृतित्व का प्रकाशन "हृषिकेश रचनावली " नाम से पुस्तक के रूप में हुआ।

चतुर्वेदी जी पारम्परिक देव वंदना के संस्कारों से जुड़े थे।  वे उस संस्कार से अपने कविता-काल के उदय से अंत तक जुड़े रहे।

सन १९२८ से वे चमत्कारपूर्ण कला -पक्षीय कविता से जुड़े। इस क्षेत्र में वे इतना आगे बढे कि ऐसे लेखन वाले किसी भी कवि को उन्होंने पीछे छोड़ दिया - सरस चित्रकाव्य , विलोम काव्य ," श्रीरामकृष्णकाव्य  " , यमक श्लेष युक्त सरस प्रबंध काव्य "श्रीरामकृष्णायन " तथा अनेक चमत्कारपूर्ण पद्य पंक्तियाँ लिखीं.

सन १९३६ हिंदी में हालावाद का शोर मचा और खुमारी के लिए उमर खय्याम  का बताया रास्ता सूझने लगा तब चतुर्वेदी जी ने भारतीय संस्कृति के अनुकूल भांग की खुमारी को ठीक ठहराया।  भांग और भंगड़ी पर उन्होंने १०१ रुबाइयाँ " विजय वाटिका " पुस्तक में लिखी जो शुद्ध हास्य की रचना है

चतुर्वेदी जी की कविता का चौथा सोपान है- हास्य व्ययंग।  सन १९४७ में विभाजन की विभीषिका ने उनमे पैने व्ययंग लिखने की संवेदनशीलता जाग्रत की और उन्होंने समाज सुधर के लिए हास्य व्ययंग युक्त कविता लिखी जो कवि सम्मेलनों के मंच से बहुत लोकप्रिय हुई।

उन्होंने संस्कृत, ब्रजभाषा , खड़ी बोली , उर्दू, अंग्रेजी में भी रचना की।

उन्होंने आस्तिक पाठक के और श्रोता के लिए " श्रीसत्यनारायण व्रत कथा " तथा "दुर्गा सप्तशती " के अनुवाद भी ऐसी भाषा में किये जिसे जन साधारण समझ सके। गीता और मेघदूत के भी उन्होंने अनुवाद किये।