पंजाबी सूबा आन्दोलन
पंजाबी सूबा आन्दोलन पंजाब क्षेत्र में पंजाबी "सूबा" (प्रदेश) बनाने के लिये 1950 के दशक में शिरोमणि अकाली दल के नेतृत्व में चला था। इसके कारण पंजाबी बहुसंख्यक पंजाब, हरियाणवी बहुसंख्यक हरियाणा और पहाड़ी बहुसंख्यक हिमाचल प्रदेश की स्थापना हुई।
पृष्ठभूमि
सन् १९५० में भारत के भाषाई समूहों ने राज्यत्व की मांग की जिस के परिणाम स्वरूप दिसम्बर १९५८ में राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की गई। उस समय पंजाब प्रदेश में वर्तमान पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्र तथा चंडीगढ़ मिले हुए थे। सिखों का विशाल बहुमत इसी हिन्दु बहुल पंजाब में रहता था। अकाली दल(एक राजनीतिक दल) जो कि मुख्य रूप से पंजाब में सक्रिय था, ने एक पंजाबी सूबा (प्रांत) बनाने की मांग की। सिखों के नेता फतेह सिंह ने भाषा को आधार बनाकर एक अलग राज्य की मांग की ताकि सिखों की पहचान को संरक्षित किया जा सके। भारतीय सरकार ऐसा करने के पक्ष में नहीं थी क्योंकि ऐसा करने का मतलब था धार्मिक आधार पर राज्य का विभाजन। १९४७ में हुए भारत के धर्म आधारित विभाजन की स्मृति से ताज़ा, पंजाबी हिन्दू भी एक सिख बहुल राज्य में रहने के बारे में चिंतित थे। जलन्धर के हिन्दी समाचार पत्रों ने पंजाबी हिन्दुओं से हिन्दी को अपनी "मातृभाषा" बनाने का आग्रह किया ताकि उनकी मांग को भाषाई न बताया जा सके। यह बाद में पंजाब के सिखों एवं हिन्दुओं के बीच दरार का कारण बना। इस मामले को राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया गया। राज्य पुनर्गठन आयोग ने पंजाबी को हिन्दी से अलग (व्याकरण की दृष्टि से) न मानते हुए इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इसका दूसरा कारण आन्दोलन में लोगों के समर्थन के अभाव को बताया। राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ (PEPSU) का पंजाब के साथ विलय कर दिया गया था। हालांकि, राज्य में अभी भी, एक बड़ा हिन्दी भाषी क्षेत्र होने के कारण एक स्पष्ट पंजाबी बहुमत नहीं था।
अकाली दल के आन्दोलन
अकाली दल के नेताओं ने पंजाब और् PEPSU के विलय के बाद भी एक "पंजाबी सूबे" के निर्माण के लिए अपने आंदोलन को जारी रखा। अकाल तख्त ने चुनाव प्रचार करने के लिए सिखों के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पंजाबी सूबा आंदोलन के दौरान, १९५५ में १२००० और १९६०-६१ में २६००० सिखों को उनके शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के लिए गिरफ्तार किया गया था।
परिणाम
सितम्बर १९६६ में इन्दिरा गांधी की सरकार ने सिखों की मांग को स्वीकार करते हुए पंजाब को पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार तीन भागों में बांट दिया।[१] पंजाब का दक्षिण भाग जहां हरियाणवी बोली जाती थी, बन गया हरियाणा और जहां पहाड़ी बोली जाती थी, उस भाग को हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया। शेष क्षेत्रों, चंडीगढ़ को छोड़कर, एक नए पंजाबी बहुल राज्य का गठन किया गया। १९६६ तक, पंजाब ६८.७% हिन्दुओं के साथ एक हिंदू बहुमत राज्य था। लेकिन भाषाई विभाजन के दौरान, हिंदू बहुल जिलों राज्य से हटा दिया गया। चंडीगढ़, जिसे विभाजन के बाद राजधानी (विभाजन पूर्व राजधानी लाहौर के बाद) के रूप में प्रतिस्थापित किया गया, पर पंजाब और हरियाणा, दोनों ने अधिकार जताया। परिणामनुसार चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया जो कि दोनों राज्यों के लिये राजधानी की तरह होगा। पर आज भी कई सिख संगठनों का यह मानना है कि पंजाब का त्रि-विभाजन सही रूप से नहीं किया गया क्योंकि विभाजनोपरांत कई पंजाबी भाषी जिले हरियाणा में चले गये।