पंचकोशी

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साँचा:multiple image पंचकोशी नेपाल का एक प्रमूख हिन्दू तिर्थस्थल है। ईस स्थान के कइ मन्दिरों में ज्वालाएं बलते दिखाइ देते हें। ज्वालाएं होने के कारण पंचकोशीको ज्वाला क्षेत्र भी कहाजाता है। यह स्थान पश्चिम नेपाल के दैलेख जिले में अवस्थित है। स्कन्द पुराण के वैश्वानर खण्ड में ज्वाला क्षेत्र के बारे में वर्णन किया है। उक्त ग्रंथ में ईस क्षेत्र को बैश्वानर क्षेत्र कहागया है। ईस तिर्थ को अग्नि तिर्थ के नाम से भी जानाजाता है। प्राचिन काल के ओ राजाओं ने ईस तिर्थ को पंचकोशी कहकर नामांकन किया और तिर्थ यात्रा का प्रारारम्भ किया। ईस के बाद ईस तिर्थ का नाम पञ्चकोशी रहने गया, यह अनुमान है। पश्चिम नेपाल के सभी हिन्दू लोग ईस क्षेत्र में देव कर्म, पृती कर्म लगायत के सभी धार्मिक अनुष्ठान करने से सिद्धी प्राप्त होने का विश्वास करते हें। भौगोलिक विकटता के कारण ईस स्थानका उजागर नहीं हो सका, पर यह स्थान नेपाल के लिए धार्मिक, ऐतिहासिक, पर्यटकिय और आर्थिक महत्व का स्थान है।

आर्थिक महत्व

पंचकोशी नेपाल का एक मात्र ऐसा स्थान है, जहां प्रयाप्त मात्रा में पेट्रोलियम ग्यास पायाजाने की संभावना है। विसं 2072 के चैत्र महिना में नेपालचिन बीच द्विपक्षिय सम्झौता हुआथा। सम्झौते के अनुशार ईस पंचकोशी क्षेत्र में पेट्रोलियम ग्यास खानीबारे विस्तृत अन्वेषण करने देने के लिए बना परियोजना को नेपाल सरकारने स्विकार कर दिया था। अब नेपाल व चिन के खानी विभागस्तर से यह परियोजना सञ्चालन होरहा है। 2073 साल के बैशाख महिने में चिनियाँ टोली ने पेट्रोलियम उत्खनन के सम्भावना बारे प्रारम्भिक अध्यायन आरम्भ किया था। द्विपक्षिय सम्झौता के बाद चिनियां टोली नेपाल आकर सम्भाव्य क्षेत्र के चट्टान लगायत नमुना चिन लेकर गयाथा। ईसका रिपोर्ट आए दो साल बाद अन्वेषण के लिए तयार होकर परियोजना तयार हुआ है । [१] ईस लिए यह क्षेत्र नेपाल का एक आर्थिक महत्व का स्थान मानाजाता है।

ऐतिहासिक महत्व

नेपाली भाषा का उत्पत्ती स्थान जुम्ला स्थित सिंजा को मनाजाता है, पर नेपाली भाषा का सब से पुराना शिलालेख पञ्चकोशी क्षेत्र के दुल्लु में रहा है। अभी तक के अध्यायन अनुशार सब से पुराना मानागया दामुपालका शिलालेख, अढईपाल द्वारा शाक्य 903 तदानुशार विक्रमसंवत 1038 का शिलालेख ईसी क्षेत्र में रहा है। ईस के साथ हो विक्रम संवत 1414 का पृथ्वी मल्ल ने बनाया हुआ सातहाथ लम्बा कीर्तिखम्बा भी ईसी क्षेत्र में रहा है। [२] ईस के साथ साथ पादुका स्थित अशोक चल्ल का स्तम्भ शिरस्थान में रहा अभिलेख के साथही रास्ते भर जहां कहीं गडेहुए वीरखम्बाओं में लिखे अभिलेखों ने नेपाली भाषा तथा पश्चिम नेपाल के इतिहास ढुंढने में अति महत्व राखते हें। तसर्थ ईस क्षेत्रको नेपाल का एक ऐतिहासिक महत्व का स्थान के रुप में लियाजाता है।

धार्मिक तथा पर्यटकिय महत्व

ईस क्षेत्र का प्राकृतिक सौन्दर्यता, यहां की संस्कृति और ईस क्षेत्र में रहे अगण्य धार्मिक, ऐतिहासिक तथा प्राकृतिक सम्पदायें ईस क्षेत्र में आए कोई भी बाह्य तथा आन्तरिक पर्यटकों का मन लुभाने में सफल भूमिका निर्वाह करते हें। जीस के कारण ईस क्षेत्र ने पर्यटकिय महत्व को भी समेटा हुआ है। धार्मिक महत्व की बात करें तो ईस स्थान को संसार के सभी तिर्थों से उत्तम तिर्थ कहा गया है ।

वाराणस्याः प्रयागश्च मायापुर्याः विशेषतः ।
इदं क्षेत्रं महापुण्यं कलौ कल्मषनाशनम् ॥

अर्थात वाराणसी, प्रयाग, मायापुरी (हरिद्वार) से विशेष कर यह ज्वालाक्षेत्र महापुण्यदायक और ईस कलि युग में पाप नाशक भी है। [३] पादुका, नाभीस्थान, कोटीला, श्रीस्थानधुलेश्वर यह पांच स्थान को पंचकोशी का नाम दियागया है । कुछ लोग कोटिलास्थान को छोडकर डुङ्गेश्वर को पंचकोशी में समेटते हें, यह देखा गया है । होने को डुङ्गेश्वर भी दैलेख जिले का एक पिठ ही है। पंचकोशी शब्द (पंच + कोशी) का अर्थ पांच कोश होता है। धुलेश्वर मन्दिर को पंचकोशी क्षेत्र का केन्द्र मानाजाता है। धुलेश्वर मन्दिर के चारों ओर पांच कोश के परिधी के अंदर के क्षेत्र को पञ्चकोशी कहाजाता है। दुशरे शब्द में कहें तो धुलेश्वर मन्दिर से पांच कोश पूर्व, पांच कोश पश्चिम, पांच कोश उत्तर और पांच कोश दक्षिण भितर का सम्पूर्ण भुभाग पञ्चकोशी क्षेत्र कहाजाता है ।[४]

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ