न्यायालयिक मनोविज्ञान
न्यायालयिक मनोविज्ञानप्रतिच्छेदन है मनोविज्ञान के बीच और न्याय प्रणाली के बीच न्यायालयिक विज्ञान की इस शाखा से अपराधी की मानसिक स्थिति अथवा विकृति का अध्ययन किया जाता है। यह शाखा मानसिक रूप से अस्वस्थ अपराधी को समझने के लिए होती है क्यूंकि अगर कोई व्यक्ति स्वस्थ नहीं है तो उसके विरुद्ध अभियोजन प्रस्तुत किया जाना न्याय संगत नहीं माना जाता इसलिए ऐसे व्यक्ति की मानसिक अवस्था का परीक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। न्यायालयिक मनोवैज्ञानिक वह इंसान होता है जो इस शाखा में काम करता है[१] उसे विशेषज्ञ कहते हैं क्यूंकि उसे न्याय प्रणाली और अपनी शाखा का सारा ज्ञान होता है और वह अदालत में अपनी बात साबित कर सकता है। न्यायालयिक मनोवैज्ञानिक को चिकित्सक मनोविज्ञान में, सामजिक मनोविज्ञान में, संघठन मनोविज्ञान में या फिर प्रयोगिक मनोविज्ञान में Ph.D या फिर Psy.D की डिग्री प्राप्त होनी चाहिए। न्यायालयिक मनोवैज्ञानिक एक अकादमिक शोधकर्ता, कानून प्रवर्तन के लिए सलाहकार, सुधारक मनोविज्ञानी, विश्लेषक, गवाह विशेषज्ञ, ट्रायल सलाहकार आदि इनमें से किसी भी व्यवसायी में हो सकते हैं। [२]