नुशूर वहीदी'
नुशूर वहीदी (साँचा:lang-ur) के नाम से परिचित हफ़ीज़-उल-रहमान उर्दू भाषा के भारतीय कवि थे।
प्रारंभिक जीवन
1912 में उत्तर प्रदेश के शेख़पुर, बलिया ज़िले में पैदा वहीदी के सात भाई-बहन थे। उनहोंने अपने घर में ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की।
वहीदी ने छोटी उम्र में ही कविताएँ लिखनी शुरू की थी और 13 साल की उम्र में वे अपने इलाक़े में कवि के तौर पर विख्यात थे।[१]
कार्य जीवन
विख्यात कवि जिगर मुरादाबादी ने कविता वचन से थोड़ी देर विराम लेते समय नुशूर ने अपनी कविताएँ प्रस्तुत करने की अनुमति माँगी। उसी फ़ोरम में मोरादाबादी ने उनकी कविताओं की सराहना करने के बाद नुशूर ने साहित्यिक समूहों में ख्याति प्राप्त की।
नुशूर को उर्दू काव्य के अंतिम रूमानी कवियों में से एक माना जाता है। उनहोंने कई उर्दू कविता संग्रह और सबाह-ए-हिंद नामक दर्शन से संबंधित ग्रंथ प्रकाशित किया। साहित्यिक समूहों में विख्यात होने के बावजूद उनहोंने तत्कालीन उभरता हुआ भारतीय फ़िल्म उद्योग में उनकी कविताओं के उपयोग करने की अनुमति नहीं दी। शायद इसी वजह से उन्हें अपने समकालीनों की तरह ख्याति प्राप्त नहीं हुई।
निजी जीवन
नुशूर और उनकी पत्नी के दो बेटे और दो बेटियाँ थीं।
1983 में नुशूर की मृत्यु हो गई। वे कवि के तौर पर इतने विख्यात थे कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनके परिवार को उनकी श्रद्धांजलि का संदेश भेजा।
उनके सम्मान में कानपुर में एक पार्क का नाम रखा गया।