नीति संहिता
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विभिन्न संगठन अपने-अपने नीति संहिता (Ethical codes) बनाते हैं ताकि उनके सदस्यों को आसानी से समझ आ सके कि सही और गलत में क्या अन्तर है तथा इस समझ का वे अपने निर्णयों में उपयोग कर सकें। नीति संहिता प्रायः तीन स्तरों पर लागू होने वाले दस्तावेज हैं-
- (१) व्यवसाय की नीति संहिता ( codes of business ethics),
- (२) कर्मचारियों के लिये आचार संहिता
- (३) व्यावसायिक आचरण की संहिता (codes of professional practice)
नीति संहिता उन आधारभूत सामान्य सिद्धान्तों को व्यक्त करती है जो उन केसो में निर्देश या दिशा देने का कार्य करती है जहां कोई विशेष नियम न हो या जहां नियम अस्पष्ट हों। कार्य संचालन की संहिता की तुलना में नीति संहिता निम्न विन्दुओं पर ध्यान देता है-
- ज्यादा सामान्यीकरण का होना,
- कम सिद्धान्तों को रखना,
- 'क्या होना चाहिए' या 'क्या कारना चाहिए' के रूप में निरूपित होना (बाध्यकारी के रूप में नहीं),
- उन केसों पर सामान्य दिशा निर्देशक का काम करना जहाँ कार्य संचालन की संहिता मौन, अस्पष्ट या दुहरावपूर्ण हो।
इन सभी का ध्यान रखते हुए, नीति संहिता को निम्नलिखित उपबन्धों का ध्यान रखना चाहिए या निम्नलिखित उपबन्धों को सम्मिलित करना चाहिए-
- हमारे कार्य द्वारा प्रत्येक व्यक्ति व सभी व्यक्तियों की मर्यादा को आवश्यक रूप से सम्मान व पहचान दी जानी चाहिए।
- हमे समुदाय और पर्यावरण की सक्रिय रूप से चिन्ता करनी चाहिए या समुदाय और पर्यावरण के विषय में सोचना चाहिए।
- लोग जहां कार्यरत हैं, हमे उनके लिए एक खुशहाल कार्य-स्थल उपलब्ध कराना चाहिए।
नीति संहिता के सामान्य सिद्धान्त
- (१) सच्चरित्रता (Integrity) : नीतिशास्त्र सच्चरित्रता जैसे सर्वोच्च आचरण व मानकों के द्वारा व्यक्ति व समाज की भलाई चाहता है।
- (२) वस्तुपरकता (ऑब्जेक्टिविटी ) : नीतिगत निर्णय लेते समय, मेरिट के आधार पर निर्णय किए जाने चाहिए, न कि व्यक्तिगत पसंद के आधार पर।
- (३) गोपनीयता ( Confidentiality ) : नीतिशास्त्र, लोकपद पर बैठे व्यक्ति या अन्य व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के गोपनीयता के सम्मान की वकालत करता है। यह संगठन, समुदाय या अन्य संदर्भ में गोपनीयता का पक्षधर है।
- (४) सक्षमता : नीतिशास्त्र सक्षमता के सामान्य सिद्धान्त को अपनाता है। यह तभी कार्य करने की सहमति देता है जब व्यक्ति उस पद के लिए पूर्णतया सक्षम है।
वस्तुतः नोलन सामान्य सिद्धान्त (Nolan Principles) नीतिशास्त्र के आधाभूत सिद्धान्त माने जाते हैं। ये निम्नलिखित हैं-
- (१) स्वार्थपरकता : लोकपद पर बैठे व्यक्ति को स्वार्थपरक रूप से कार्य करना चाहिए। उसे अपने निजी हित या अन्य व्यक्ति के निजी संदर्भ में कार्य नहीं करना चाहिए।
- (२) सत्यनिष्ठा : लोक पद बैठे व्यक्ति को बाहरी रूप से किसी भी व्यक्ति या संस्था के साथ अपने उत्तरदायित्वों के निर्वहन को प्रभावित करने वाले दावों या वचन को नहीं करना चाहिए।
- (३) वस्तुपरकता : लोक उत्तरदायित्वों के निर्वहन में यथा नियुक्ति, अनुबंध या व्यक्ति को पारितोषिक देने में वस्तुपरकता पर ध्यान देना चाहिए। व्यक्ति के मेरिट के आधार पर चयन होना चाहिए।
- (४) उत्तरदायित्व : लोक पद पर बैठे व्यक्ति को अपने कार्यों के लिए अनिवार्य रूप से उत्तरदायी होना चाहिए।
- (५) खुलापन : लोपपद पर बैठे व्यक्ति को जहां तक संभव हो अपने निर्णयों तथा कार्यों के लिए खुला व्यवहार व प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। उन्हें अपने निर्णयों के लिए कारण बताना चाहिए। सूचना तभी बाधित करनी चाहिए जब वृहद रूप से लोकहित में ऐसा आवश्यक है।
- (६) ईमानदारी : लोक पर बैठे व्यक्ति को अपने सम्पत्ति को सार्वजनिक रूप से घोषित करना चाहिए।
- (७) नेतृत्व : लोक पद पर बैठे व्यक्ति को इन नियमों के बढ़ाने व समर्थन में नेतृत्व व उदहारण के रूप में कार्य करना चाहिए।