नान्यदेव
नान्यदेव[१] कर्नाट वंश के संस्थापक और पहले राजा थें[२][३] और हरिसिंह देव के पूर्वज थें। उसने अपनी राजधानी सिमराँवगढ़ में स्थापित की और 50 वर्षों तक मिथिला क्षेत्र पर शासन किया।[४] वह अपनी उदारता, साहस और विद्वानों के संरक्षण के लिए जाने जाते हैं।[५] वह कर्नाट क्षत्रिय कुल से थे और 1097 ई. में सिमराँवगढ़ से मिथिला पर शासन करने लगे। सिमराँवगढ़ और नेपालवंशावली में पाए गए पत्थर के शिलालेख में स्पष्ट रूप से लिखा है[६] कि उन्होंने श्रावण माह में शनिवार को सिंह लग्न, तिथि शुक्ल सप्तमी, नक्षत्र स्वाति में और शक संवत 1019(10 जुलाई, 1097 ई.) में एक स्तंभ बनाया।[७][८]
साहित्यिक कार्य
उन्होंने कई धुनों को बनाया और संस्कृत के काम, सरस्वती हृदयालंकार और ग्रंथ-महर्षि में अपना ज्ञान दर्ज किया।[९][१०][११] मिथिला का शासक बनने के बाद उन्होंने यह काम पूरा किया।
वंशज
उत्तर बिहार (जो मिथिला क्षेत्र का हिस्सा है) के कई कुर्मी जमींदार, विशेष रूप से सहरसा जिले में नान्यदेव को अपना पूर्वज होने का दावा करते हैं।[१२]
सन्दर्भ
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- ↑ Kamal P. Malla (1985). Nepālavaṃśāvalī: A Complete Version of the Kaisher Vaṃśāvalī. CNAS Journal. Vol. 12 No. 2. Kathmandu: Tribhuvan University. pp. 75-101.
- ↑ Sahai, Bhagwant (1983). "Inscriptions Of Bihar".
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- ↑ Rajagopalan, N. (1992). "Another Garland (Book 2)". Carnatic Classicals,Madras. Archived from the original on 18 अक्तूबर 2018. Retrieved 23 सितंबर 2019.
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