नाइट्रोसेलूलोज

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नाइट्रोसेलूलोज[१]
Nitrocellulose-2D-skeletal.png
Nitrocellulose-3D-balls.png
नाइट्रोसेलुलोज से बने कॉस्मेटिक पैड
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Other names
Cellulose nitrate; Flash paper; Flash cotton; Flash string; Gun cotton; Collodion; Pyroxylin
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ChEBI साँचा:unbulleted list
ChEMBL साँचा:unbulleted list
ChemSpider साँचा:unbulleted list
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RTECS number साँचा:unbulleted list
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साँचा:longitem (साँचा:chem (mononitrocellulose)

(साँचा:chem (dinitrocellulose)
(साँचा:chem (trinitrocellulose, pictured in structures above)

Molar mass स्क्रिप्ट त्रुटि: "check for unknown parameters" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
Appearance Yellowish white cotton-like filaments
Melting point स्क्रिप्ट त्रुटि: "string" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।साँचा:convert (ignites)
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NFPA 704 (fire diamond)
2
3
3
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Flash point स्क्रिप्ट त्रुटि: "string" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।साँचा:convert
Lethal dose or concentration (LD, LC):

साँचा:Chembox Footer/tracking container onlyसाँचा:short description

सेलूलोज के नाइट्रिक अम्ल के ऐस्टरों को नाइट्रोसेलूलोज़ (Nitrocellulose) या सेलूलोज़ नाइट्रेट, कहते हैं।

इतिहास

सन् १८३८ ई. में टी.जे. पलूज (T.J. Pelouse) ने यह ज्ञात किया कि सेलूलोज पर नाइट्रिक अम्ल की क्रिया से प्राप्त पदार्थ बहुत ही तीव्र गति से प्रज्वलित हो जाता है। १८४५ ई. में सी.एफ. शॉनबाइन (C.F. Schonbein) ने इस पदार्थ के गुण प्रदर्शित किए तथा इसके बनाने की विधि में नाइट्रिक अम्ल के साथ सल्फ्यूरिक अम्ल मिश्रित करने की उपयोगिता बतलाई। १८६० ई. से श्लेषीकृत (gelatinised) नाइट्रोसेलूलोज प्रणोदी (propellant) बनने लगे। ई.ए. ब्राउन (E.A. Brown) ने इस बात का पता लगाया कि शुष्क (या कुछ गीली भी) नाइट्रोसेलूलोज़ को किसी विस्फोटप्रेरक (detonator) के द्वारा विस्फोटित किया जा सकता है। इसी अनुसंधान से इस पदार्थ को तीव्र विस्फोटप्रेरक पदार्थों के रूप में प्रयुक्त किया जाने लगा।

परिचय

नाइट्रोसेलूलोज एक अस्थायी पदार्थ है। इसके विघटन उत्पादों के द्वारा ही इसका उत्प्रेरित विघटन होता है। पहले इस तथ्य के न ज्ञात होने से अनेक दुर्घटनाएँ हुई। १८६८ ई. में फ्रेडरिक एबेल (Frederick Abel) ने यह ज्ञात किया कि इस पदार्थ की अस्थिरता, निर्मित पदार्थों के ठीक से न घुलने के कारण संलग्न अम्ल की उपस्थिति से होती है। इसके पश्चात्‌ पॉल ब्येय (Paul Vieille) ने स्थायीकारक पदार्थों (stabilizers) के द्वारा इसके विघटन को रोकने का प्रयत्न किया।

नाइट्रोसेलूलोज बनाने के लिए कर्पासिका (cotton linters), या काष्ठ की लुगदी, को नाइट्रिक तथा सल्फ्यूरिक अम्ल के मिश्रण के आधिक्य में डुबो दिया जाता है और क्रिया हो चुकने के पश्चात्‌ उत्पाद को अम्लमिश्रण से अपकेंद्रण (centrifuging) द्वारा पृथक्‌ कर लिया जाता है। फिर तत्काल इसे जल की अधिक मात्रा में डुबो देते हैं, जिससे अम्लों की बची हुई मात्रा भी इससे पृथक्‌ हो जाती है।

यह श्वेत रंग का अस्थायी पदार्थ है, जो लगभग १५० डिग्री सें. पर जल जाता है। जल में यह अविलेय है, परंतु ऐसीटोन या एथिलऐसिटेट में विलेय है। कोलोडियन या पाइरॉक्सलिन नामक नाइट्रोसेलूलोज का उपयोग प्रलक्षारस तथा सेलूलायड जैसे प्लास्टिकों के रूप में होता है। वि-नाइट्रीकरण करने के पश्चात्‌ इसे कृत्रिम रेशम के रूप में काम में लाया जा सकता है, पर अब इसके स्थान पर विस्कोज नामक कृत्रिम रेशम का उपयोग होने लगा है।

डाइनामाइट बनाने में भी इसका उपयोग होने लगा है।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ