उत्प्रेरण
जब किसी रासायनिक अभिक्रिया की गति किसी पदार्थ की उपस्थिति मात्र से बढ जाती है तो इसे उत्प्रेरण (Catalysis) कहते हैं। जिस पदार्थ की उपस्थिति से अभिक्रिया की गति बढ जाती है उसे उत्प्रेरक (catalyst) कहते हैं। उत्प्रेरक अभिक्रिया में भाग नहीं लेता, केवल क्रिया की गति को प्रभावित करता है।
औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण रसायनों के निर्माण में उत्प्रेरकों की बहुत बड़ी भूमिका है, क्योंकि इनके प्रयोग से अभिक्रिया की गति बढ जाती है जिससे अनेक प्रकार से आर्थिक लाभ होता है और उत्पादन तेज होता है। इसलिये उत्प्रेरण के क्षेत्र में अनुसंधान के लिये बहुत सा धन एवं मानव श्रम लगा हुआ है।
परिचय
सर्वप्रथम सन् 1835 में, बर्जीलियस ने कुछ रासायनिक क्रियाओं की और ध्यान आकृष्ट किया जिनमें कतिपय बाह्म पदार्थो की उपस्थिति में क्रिया की गति तो तीव्र हो जाती थी किंतु बाह्म पदार्थ उस क्रिया में कोई भाग नहीं लेता था। उदारहरणार्थ यदि इक्षु शर्करा (केन शुगर) को अम्लों की उपस्थिति में गरम करें तो वह बड़ी शीघ्रता से ग्लूकोस तथा फ्रुक्टोस में परिवर्तित हो जाती है। इस क्रिया में अम्ल कोई भाग नहीं लेता। वह पुन: काम में लिया जा सकता है। बर्जीलियस ने इस क्रिया को "उत्प्रेरण" की संज्ञा दी तथा उन पदार्थो को "उत्प्रेरक" (कैटालिस्ट अथवा "कैटालिटिक एजेंट") के नाम से पुकारा जिनकी उपस्थिति में क्रिया वेग से होने लगती है। ओस्टवाल्ड ने उत्प्रेरक पदार्थो की परिभाषा इस प्रकार दी है: ""उत्प्रेरक उस पदार्थ को कहते हैं जो किसी रासायनिक क्रिया के वेग को बदल दे, परंतु स्वयं क्रिया के अंत में अपरिवर्तित रहता है, अत: उसे पुन: काम में लाया जा सकता है। अधिकांश क्रियाओं में उत्प्रेरक प्रतिक्रिया की गति को बढ़ा देता है। ऐसे उत्प्रेरकों को धनात्मक उत्प्रेरक कहते है; परंतु कुछ ऐसे भी उत्प्रेरक है जो रासायनिक क्रिया की गति को मंद कर देते हैं। ऐसे उत्प्रेरक ऋणात्मक उत्प्रेरक कहलाते हैं।
उत्प्रेरण की विशेषताएँ
उत्प्रेरण की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- 1. क्रिया के अंत में उत्प्रेरक अपरिवर्तित बच रहता है। उसके भौतिक संगठन में चाहे जो परिवर्तन हो जाएँ, परंतु उसके रासायनिक संगठन में कोई अंतर नहीं होता।
- 2. उत्प्रेरक पदार्थ की केवल थोड़ी मात्रा ही पर्याप्त होती है। उत्प्रेरक की यह विशेषता इस तथ्य पर निर्भर है कि वह क्रिया के अंत में अपरिवर्तित रहता है। परंतु कुछ ऐसी क्रियाओं में, जिनमें उत्प्रेरक एक माध्यमिक अस्थायी यौगिक बनता है, उत्प्रेरक की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है।
- 3. उत्प्रेरक उत्क्रमणीय प्रतिक्रियाओं में प्रत्यक्ष और विपरीत दोनों ओर की क्रियाओं को बराबर उत्प्रेरित करता है अत: उत्प्रेरक की उपस्थिति से प्रतिक्रिया की साम्य स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता, केवल साम्यस्थापन के समय में ही अंतर हो जाता है।
- 4. उत्प्रेरक नई क्रिया को प्रारंभ कर सकता है। यद्यपि ओस्टवाल्ड ने सर्वप्रथम यह मत प्रगट किया था कि उत्प्रेरक नई क्रिया प्रारंभ नहीं कर सकता, तो भी आधुनिक वैज्ञानिकों का यह मत है कि उत्प्ररेक नई क्रिया को भी प्रारंभ कर सकता है।
- 5. प्रत्येक रासायनिक क्रिया में कुछ विशिष्ट उत्प्रेरक ही कार्य कर सकते हैं। अभी तक वैज्ञानिकों के लिए यह संभव नहीं हो सका है कि वे सभी रासायनिक क्रियाओं के लिए किसी एक ही उत्प्रेरक को काम में लाएँ। यह आवश्यक नहीं कि किसी एक क्रिया का उत्प्रेरक किसी दूसरी क्रिया को भी उत्प्रेरित करे।
उत्प्रेरण क्रियाओं के प्रकार
प्राय: सभी उत्प्रेरित क्रियाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है: (1) समावयवी उत्प्रेरित क्रियाएँ (समावयवी उत्प्रेरण); (2) विषमावयवो उत्प्रेरित क्रियाएँ (विषमावयवी उत्प्रेरण)।
- समावयवी उत्प्रेरण
इन क्रियाओं में उत्प्रेरक, प्रतिकर्मक तथा प्रतिफल सभी एक ही अवस्था में उपस्थित होते हैं। उदाहरणर्थ, सल्फ़्यूरिक अम्ल बनाने की वेश्म विधि में सल्फर डाइआक्साइड, भाप तथा आक्सिजन के संयोग से सल्फ़्यूरिक अम्ल बनता है तथा नाइट्रिक आक्साइड द्वारा यह क्रिया उत्प्रेरित होती है। इस क्रिया में प्रतिकर्मक, उत्प्रेरक तथा प्रतिफल इसी गैसीय अवस्था में रहते हैं।
- विषमावयवी उत्प्रेरण
इन क्रियाओं में उत्प्रेरक, प्रतिकर्मक तथा प्रतिफल विभिन्न अवस्थाओं में उपस्थित रहते हैं। यथा, अमोनिया बनाने की हाबर-विधि में नाइट्रोजन तथा हाइड्रोजन की संयोगक्रिया की फ़ेरिक आक्साइड उत्प्रेरित करता है। सूक्ष्म निकल की उपस्थिति में वानस्पतिक तेलों का हाइड्रोजनीकरण इस प्रकार की क्रियाओं का एक अन्य उदाहरण है।
कुछ पदार्थ अपनी उपस्थिति से रासायनिक क्रिया के वेग पर प्रभाव नहीं डालते, परंतु कुछ दूसरे उत्प्रेरकों की क्रिया को प्रभावित करते हैं। इनमें से उन पदार्थो की, जो उत्प्रेरकों की क्रियाशीलता को बढ़ा देते हैं, उत्प्रेरकवर्धक तथा उन पदार्थो को, जो उत्प्रेरकों की क्रियाशीलता कम कर देते हैं, उत्प्रेरकविरोधी या उत्प्रेरक विष कहते हैं।
आत्म उत्प्रेरक-कुछ प्रतिक्रियाएँ ऐसी भी ज्ञात हैं जिनमें प्रतिक्रया से ही उत्पन्न कोई पदार्थ प्रतिक्रिया के लिए उत्प्रेरक का कार्य करता है। उदाहरणार्थ, एथिल ऐसिटेट के जलविच्छेदन में जो ऐसीटिक अम्ल प्राप्त होता है, वही एस्टर के जलविच्छेदन की क्रिया को उत्प्रेरित करता है।
उत्प्रेरण के सिद्धांत
यद्यपि उत्प्रेरण को समझने समझाने के लिए बहुत पहले से अध्ययन होते चले आ रहे हैं, तथापि इस विषय में अभी अंतिम निष्कर्ष नहीं निकला है। वैज्ञानिक इसपर एकमत हैं कि सभी उत्प्रेरक एक ही सिद्धांत के अनुसार क्रिया नहीं करते। उत्प्रेरण की व्यवस्था के लिए दो सिद्धांत काम में लाए जाते हैं- (1) मध्यवर्ती यौगिक सिद्धांत; (2) अधिशोषण सिद्धांत।
1. मध्यवर्ती यौगिक सिद्धांत- यह उत्प्रेरण की व्याख्या के लिए एक रासायनिक सिद्धांत है। इसके अनुसार उत्प्रेरक पहले प्रतिकर्मकों में से एक के साथ क्रिया करके एक मध्यवर्ती अस्थायी यौगिक बनाता है; फिर वह मध्यवर्ती अस्थायी यौगिक दूसरे प्रतिकर्मकों से क्रिया करके प्रतिफल देता है तथा उत्प्रेरक पुन: अपनी पूर्वावस्था में आ जाता है। इसके अनुसार प्रतिकर्मकों "क" तथा "ख" की संयोजनक्रिया उत्प्रेरक "ग" की उपस्थिति में निम्नलिखित प्रकार से प्रकट की जाती है:
- क + ग = क ग (अस्थायी मध्यवर्ती यौगिक);
- क ग + ख = क ख + ग;
- क + ग = क ग
क्रिया के अंत तक यही क्रम चलता रहता है।
मध्यवर्ती यौगिक सिद्धांत के द्वारा कुछ क्रियाओं के उत्प्रेरण की व्याख्या सरल है। परंतु अधिकांश विषमावयवी क्रियाओं तथा उत्प्रेरक वर्धकों अथवा विषों की क्रियाओं को समझाना कठिन या असंभव सा है।
2. अधिशोषण सिद्धांत- यह उत्प्रेरण की व्याख्या के लिए भौतिक सिद्धांत है। इस सिद्धांत के अनुसार प्रतिकर्मक उत्प्रेरक के तल पर घनीभूत हो जाते हैं। इस प्रकार उत्प्रेरक तल पर प्रतिकर्मकों की सांद्रता बढ़ जाने से मात्रा-अनुपाती-नियम के अनुसार क्रिया का वेग बढ़ जाता है।
अब उपर्युक्त दोनों सिद्धांतों को मिलाकर एक नया सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है। इसके अनुसार उत्प्रेरक पदार्थ के तल पर कुछ सक्रिय केंद्र होते हैं। इन केंद्रों में अणुओं या परमाणुओं को अधिशोषित करने की क्षमता होती है। अत: धातु के तल पर प्रतिकर्मकों के घनी भूत होने से साद्रंता तो बढ़ती ही है, जिसके कारण क्रियावेग में वृद्धि होती है, साथ ही इन सक्रिय केंद्रों पर प्रतिकर्मक इनके साथ अस्थायी यौगिक भी बना लेते हैं, जो मध्यवर्ती यौगिक सिद्धांत के अनुसार उत्प्रेरण का कार्य करते हैं।
प्रकिण्वों द्वारा उत्प्रेरण
प्रकिण्व जटिल जैविक पदार्थ होते हैं जो पौधों या प्राणियों से प्राप्त किए जाते हैं। ये अधिकांश प्रतिक्रियाओं में अत्युत्म उत्प्रेरक सिद्ध हुए हैं। पेड़ पौधों में होनेवाली लगभग सभी क्रियाओं में एंजाइम उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त हमारे शरीर में होनेवाली क्रियाओं, विशेषता भोजन के पाचन में भी प्रकिण्व उत्प्रेरक का काम करते हैं। or ek or
उपयोग
औद्योगिक तथा रासायनिक क्रियाक्षेत्र में उत्प्रेरक बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुए हैं। नाइट्रोजन का स्थिरीकरण उत्प्रेरित क्रियाओ का एक साधारण उदाहरण है। पेड़ पौधों के लिए स्थायी नाइट्रोजन की उपलब्धि नाइट्रेट या अमोनिया के रूप में होती है। नाइट्रोजन के ये दोनों ही रूप उत्प्रेरको की सहायता से निर्मित होते रहते हैं।
द्वितीय महायुद्ध के समय लगभग समस्त विश्व में मोटर आदि वाहनों को चलाने में जो ईधन काम में लाया जाता था वह सब उत्प्रेरकों की सहायता से ही तैयार किया जाता था। उत्प्रेरण द्वारा पेट्रोलियम से बहुत से ऐसे पदार्थ बनाए जाते थे जो ईधन के रूप में काम में लाए जाते थे। इसके अतिरिक्त उत्प्रेरित क्रियाओं का अन्य महत्व भी है, उदाहरणत: ब्यूटाडाईन तथा स्टाईरीन से संश्लिष्ट रबर बनाने, गंधकाम्ल के निर्माण, तथा सूक्ष्म खंडित निकल की उपस्थिति में वानस्पतिक तेलों के हाइड्रोजनीकरण द्वारा वनस्पति घी के निर्माण में, इत्यादि।
बाहरी कड़ियाँ
- Science Aid: Catalysts Page for high school level science
- W.A. Herrmann Technische Universität presentation [१]
- Inorganic Chemistry and Catalysis Group, Utrecht University, The Netherlands
- Centre for Surface Chemistry and Catalysis
- Carbons & Catalysts Group, University of Concepcion, Chile