नलिनी बाला देवी
नलिनी बाला देवी (२३ मार्च १८९८ – २४ दिसम्बर १९७७) असमिया भाषा की प्रसिद्ध कवयित्री थीं।[१] वे अपनी राष्ट्रवादी तथा रहस्यवादी कविता के लिये प्रसिद्ध हैं।[२] उनके साहित्यिक योगदान के लिये भारत सरकार ने १९५७ में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया तथा १९६८ में उनकी काव्यकृति अलकनन्दा के लिये उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार (असमिया) प्रदान किया गया।[३]
साहित्यिक योगदान
पति की अकाल मृत्यु पर पाँच सन्तानों के साथ कष्टपूर्ण जीवन बिताना पड़ा। इसके बाद दुर्भाग्यबश उनके दो पुत्रों की भी अकाल मृत्यु हो गयी। इस वेदना से जर्जर उन्होने अपना जीवन ईश्वर को अर्पित कर दिया। उन्होने अपना समय वेद, गीता, उपनिषद और भागवत पुराण बके अध्ययन में लगाया। शैशव में अंकुरित सुप्त प्रतिभा अब जागृत हो उठी। विवाह के समय उनके श्वसुर ने उनको एक स्वर्ण कलम उपहार दिया था। बाद में उन्होने उस कलम का मान रखा। पिता के उपदेश और प्रेरणा ने उनके जीवन युद्ध में उनकी विजय सुनिश्चित की। मात्र दस वर्ष की आयु में 'पिता' नामक कवितार से उन्होने कवि जीवन में प्रवेश लिया।
- प्रकाशित काव्यग्रन्थः-
- सन्धियार सुर (१९२८)
- सपोनर सुर (१९४३)
- स्मृतितीर्थ (१९४८)
- परशमणि (१९५४)
- युगदेवता (१९५७)
- जागृति (१९६०)
- अलकानन्दा (१९६७)
- विश्वदीप(१९७०)
- अन्तिम सुर।
- आत्मकथा-
- एरि अहा दिनबोर (१९७६)[४]।
- प्रबन्ध -
- शान्तिपथ।
- जीवनीमूलक ग्रन्थः-
- स्मृति तीर्थ (पिता के जीवन के आधार पर रचित)
- सरदार बल्लभ भाई पटेल
- विश्वदीपा।
- अप्रकाशित ग्रन्थः-
- जोनाकीर स्वप्न सुरभि
- मन्दाकिनी
- सन्धियार सपोन परशमेघदूत इत्यादि।