नर्वदेश्वर पाण्डेय एन. डी. देहाती
पूर्वाञ्चल की धरती पर अनेक ऐसे लाल हुये है जो देश के साहित्यिक क्षैतिज पर ध्रुवतारे की तरह चमके है | ऐसे ही माटी मे पैदा हुए खाटी देहाती जी ने बुलन्दियो को छूते हुये अपने गाँव देहात को हमेशा सुर्ख़ियो मे रखा | 1 अप्रैल 1960 को पूर्वाञ्चल के देवरिया जिले मे लार थाना क्षेत्र के हरखौली गाँव मे जन्मे नर्वदेश्वर पाण्डेय की प्रारम्भिक शिक्षा पास के गाँव रुच्चापार मे हुई | स्नातक तक की पढ़ाई पास के कस्बे लार के मठ डिग्री कॉलेज मे हुई | पढ़ाई के दौरान शौक से “देहाती” टाइटिल क्या लगाया देहाती बन कर रह गए | भोजपुरी साहित्य की सेवा मे उन्होने विभिन्न पत्र पत्रिकाओ के माध्यम से भूल रही लोक-संस्कृति, लोक-परंपरा, रीति-रिवाज,को समय-समय पर याद कराया है |
देहाती जी का सृजन क्षेत्र काफी समृद्ध है | आत्म प्रचार के इस युग मे वह गुमनाम सा जीवन जीते है | पूर्वाञ्चल मे भोजपुरी साहित्य के सृजन मे उन्होने अपनी परंपरावों व धरोहरों के बारे मे खूब लिखा है | भोजपुरी साहित्य के लेखन मे उन्होने खूब नाम भी कमाया | फिर भी मंच और मुकाम के मामलो मे वह काफी पीछे रह गए है | उन्हे जो सम्मान मिलना चाहिए, जिसके वह हकदार हैं वह नहीं मिला । इसके पीछे की वजह यह है की बाजारीकरण के इस दौर में वह मार्केटिंग से दूर रहते हैं। स्वाभिमानी देहाती जी ने भोजपुरी साहित्य रचना के साथ खेतीबारी को ही प्राथमिकता दी | भोजपुरी के प्रति उनके समपर्ण ने उन्हे लोक भाषा के महाकवि कबीर के मार्ग का राहगीर बना दिया।
श्री देहाती जी का रचना संसार व्यंग से आच्छादित है । उन्होने सामाजिक व राजनीतिक मुद्दो पर बहुत व्यंग लिखा । गोरखपुर से प्रकाशित होने वाले सभी समाचार पत्रों ने देहाती जी के व्यंगों को अपने यहाँ स्थायी कॉलम में स्थान दिया । ‘आज’ में “लखेदुआ के चिट्ठी”, ‘दैनिक जागरण’ में “देहाती जी के दिलग्गी”, ‘अमर उजाला’ में “देहाती के पाती” व ‘राष्ट्रीय सहारा’ में “देहाती क बहुबकी” उनके चर्चित कॉलम रहे हैं । यद्द्पि देहाती जी ने कोई खंडकाव्य या महाकाव्य नहीं रचा लेकिन उनकी चिंतन प्रधान रचनाओं को एकत्रित किया जाए तो किसी मोटे ग्रंथ से कम नहीं होगी । 1980 से लगातार भोजपुरी की धुन में रमे देहाती जी ने तीस वर्षो से साहित्य सेवा में भोजपुरी के प्रचार प्रसार के लिए खूब लिखा । भोजपुरी की अस्मिता के लिए, संस्कृति की रक्षा के लिए ‘भोजपुरी कला कोहबर’ से भी सम्मानित किया गया है | मगहर महोत्सव व सरयू महोत्सव मे भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सम्मानित किया हैं | होली समारोह, खेल कूद व विभिन्न कार्यक्रमों मे बतौर मुख्य अतिथि श्री देहाती जी को भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ व अन्य विभिन्न संगठनो द्वारा सम्मान पत्र व स्मृति चिन्ह से अनेकों बार सम्मानित किया जा चुका है | उत्तर प्रदेश सरकार के धर्मार्थ राज्य मंत्री राजेश त्रिपाठी ने सलेमपुर में आयोजित एक समहरोह में उन्हे ‘भोजपुरी रत्न’ से सम्मानित किया है ।
ब्राह्मण जाति मे जन्मे देहाती जी ने अपने धर्म को भी प्राथमिकता दी है | इन्होने जन्माष्टमी, होली, दीपावली, मकर-संक्रांति, नवरात्रि, आदि सभी त्यौहारो को बहुत है अच्छे ढंग से मनाया है | इन्होने अपने गाँव हरखौली मे फरवरी 1992 को ऐसा रुद्र माहयज्ञ का आयोजन कराया, जिसको लोग अभी तक भूले नहीं है | इन्होने गाय माता की रक्षा के लिए 1992 मे गोरक्षा समिति की स्थापना की | श्री देहाती जी ने अपनी कला को विरहा के रूप मे भी लोगो तक पहुचाया है | लोगो मे शांति, आस्था, भाईचारा, सहयोग की भावना बनाए रखने का संदेश 11 प्रान्तो मे अस्सी दिवसीय साइकिल यात्रा से दी है |
अपनी माटी से प्यार करने वाले संवेदनशील देहाती जी ने अपनी पूरी ऊर्जा भोजपुरी साहित्य सर्जना में लगाया | हम उनके बहुमूल्य योगदान को कभी भुला नहीं सकते, जिस छोटे स्थान से उन्होने पूर्वाञ्चल में इतना बड़ा नाम कमाया उनकी रचनाओ का सम्यक व संतुलित मूल्यांकन होना चाहिए था लेकिन भोजपुरी के लिए काम कर रही तमाम संस्थाओं में से किसी ने भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया । इसका कारण यह भी है की सभी संस्थाएं किसी न किसी की कृपा पर चलती हैं और देहाती ऐसा अक्खड़मिजाज रचनाकार किसी का कृपापात्र नहीं बनना चाहता । वह व्यवस्था विरोधी रचनकर हैं | मेहनतकशों के लिए संघर्ष उनका ध्येय है । चमक-दमक से दूर गाँव में बैठा यह रचनाकार कभी थका नहीं | लगातार तीस वर्षो से अधिक लिख रहा है । अपने लेखो में किसी को छोड़ा भी नहीं है । जो भी निशाने पर चढ़ा व्यंगवाण का शिकार हुआ | भोजपुरी के विद्वान देहाती जी को सरस्वती सिद्ध माना जाता है ।
पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से पूर्वाञ्चल के लोग देहाती के नाम व उनकी रचना से खूब परिचित हुए हैं । आकाशवाणी गोरखपुर से प्रसारित विभिन्न भोजपुरी कार्यक्रमों में उनकी आवाज़ भी सुनी गयी है । भोजपुरी के इस रचनाकार को गाँव में ही अच्छा लगता है । उनके लेखों में तेलवान, भतवान, साइत, नेवान, सतुआन आदि भूल रही परम्पराओं को कई बार याद दिलाया गया है । देहाती जी अपने साहित्य रचना के जरिये एक जंग लड़ रहे हैं । भोजपुरी की अस्मिता के लिए, संस्कृति की रक्षा के लिए, परम्पराओं व रीति-रिवाजों और भाईचारा को जीवित रखने की जंग ।