धौलपुर
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धौलपुर में महाराणा उदयभान की छतरी | |
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ज़िला | धौलपुर ज़िला |
प्रान्त | राजस्थान |
देश | साँचा:flag/core |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | १,२६,१४२ |
• घनत्व | साँचा:infobox settlement/densdisp |
भाषा | |
• प्रचलित भाषाएँ | राजस्थानी, हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 328001 |
दूरभाष कोड | 05642 |
वाहन पंजीकरण | RJ-11 |
लिंगानुपात | 862 ♂/♀ |
वेबसाइट | dholpur |
धौलपुर (Dholpur) भारत के राजस्थान राज्य के धौलपुर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। धौलपुर चम्बल नदी के किनारे बसा हुआ है, जिसके पार मध्य प्रदेश राज्य आरम्भ होता है। राष्ट्रीय राजमार्ग २३ और राष्ट्रीय राजमार्ग ४४ यहाँ से गुज़रते हैं। इस पर जाट राजाओ ने शासन किया [१][२]
विवरण
धौलपुर चम्बल नदी के बाएं किनारे पर बसा हुआ है। धौलपुर दो राज्यों उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश की सीमाओं के बीच में अवस्थित है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 3 (आगरा से मुंबई) शहर के बीचों बीच से निकलता है एवम् शहर को दो भागों में बाँटता है। उत्तरप्रदेश में इसका निकटवर्ती शहर आगरा (54 कि॰मी॰) एवम मध्यप्रदेश में मुरैना (27 कि॰मी॰) है। यह राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली से 280 किलोमीटर व राज्यीय राजधानी जयपुर से 265 किलोमीटर की दूरी पर है। इसके निकटतम हवाई अड्डे उत्तरप्रदेश के आगरा (54 कि॰मी॰) व मध्यप्रदेश के ग्वालियर (65 कि॰मी॰) हैं। धौलपुर जिला विशेष रूप से बलुआ पत्थर के लिए जाना जाता है। यहाँ बनाई जाने वाली अधिकतर इमारतों का निर्माण इन बलुआ पत्थरों से ही किया जाता है। धौलपुर जिला राजस्थान की अरावली पर्वतमाला एवम मध्यप्रदेश की विंध्याचल पर्वतमाला तथा उत्तर भारत के विशाल मैदान का मिलन स्थल है। अपनी विशिष्ट भौगोलिक पहचान के लिए भी ये जिला प्रसिद्ध है। इस जिले के पूर्व व उत्तर पूर्व में चम्बल नदी के प्रसिद्ध बीहड़ हैं तो दक्षिण-पश्चिम में अरावली की पथरीली , चट्टानी श्रृंखलाएं। धौलपुर में कई मंदिर, किले, झील और महल है जहाँ घूमा जा सकता है।
इतिहास
धौलपुर एक पुराने ऐतिहासिक शहर के रूप में जाना जाता है। धौलपुर शिवि वंशी बमरोलिया जाटों की प्रसिद्ध रियासत है। धौलपुर के राजाओ का विरुद महाराणा है। धौलपुर का क्षेत्र प्रारम्भ में भरतपुर रियासत के अधीन था। सिंधिया, अंग्रेज़ और जाटों के मध्य हुए एक समझौते के बाद धौलपुर क्षेत्र गोहद के जाट राजाओ के अधीन आ गया था। धौलपुर के नामकरण के पीछे तीन मत प्रचलित है।
- प्रथम मत के अनुसार नागवंशी धौल्या जाटों ने इस नगर की स्थापना की थी यह आगे चलकर धौलपुर नाम से प्रसिद्ध हुआ
- द्वितीय मत के अनुसार यह नगर धवलदेव नामक शासक ने बसाया था।लेकिन इससे संबंधित कोई भी प्राचीन लेख अप्राप्त है।
- तृतीय मत के अनुसार जादौन शासक दवलराय ने इस जगह की स्थापना की है।
उपरोक्त सभी मतों में से नागवंश द्वारा इस जगह की स्थापना प्रामाणिक है। इसके निकट क्षेत पर सैकड़ों सालो तक नागवंश का शासन रहा है।
वर्तमान नगर मूल नगर के उत्तर में बसा है। चंबल नदी की बाढ़ से बचने के लिये ऐसा किया गया। पहले धौलपुर सामंती राज्य का हिस्सा था, जो 1949 में राजस्थान प्रदेश का हिस्सा बन गया था। धौलपुर से निकट राजा मुचुकुंद के नाम से प्रसिद्ध गुफा है जो गंधमादन पहाड़ी के अंदर बताई जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार मथुरा पर कालयवन के आक्रमण के समय श्रीकृष्ण मथुरा से मुचुकुंद की गुहा में चले आए थे। उनका पीछा करते हुए कालयवन भी इसी गुफा में प्रविष्ट हुआ और वहाँ सोते हुए मुचुकुंद को श्रीकृष्ण ने उत्तराखंड भेज दिया। यह कथा श्रीमद् भागवत 10,15 में वर्णित है। कथाप्रसंग में मुचुकुंद की गुहा का उल्लेख इस प्रकार है।[1] धौलपुर से 842 ई॰ का एक अभिलेख मिला है, जिसमें चंडस्वामिन् अथवा सूर्य के मंदिर की प्रतिष्ठापना का उल्लेख है। इस अभिलेख की विशेषता इस तथ्य में है कि इसमें हमें सर्वप्रथम विक्रमसंवत् की तिथि का उल्लेख मिलता है जो 898 है। धौलपुर में भरतपुर के जाट राज्यवंश की एक शाखा का राज्य था। भरतपुर के सर्वश्रेष्ठ शासक सूरजमल जाट की मृत्यु के समय (1764 ई॰) धौलपुर भरतपुर राज्य ही में सम्मिलित था। पीछे यहाँ एक अलग रियासत स्थापित हो गई।
धौलपुर के महाराजाओ की सूची
- राणा कीरत सिंह - (1805 -1835)
- राणा भगवंत सिंह - (1835 - 1873)
- राणा निहाल सिंह - (1873 - 1901)
- राणा राम सिंह - (1901 -1911)
- राणा उदयभानु सिंह - (1911 - 1949)
- राणा हेमन्त सिंह - (1949 - 1954)
तसीमों गोली काण्ड
देश को आजाद कराने के लिये देश के कितने ही लोगों ने अपनी जान की क़ुरबानी दी। ऐसे ही अपने धौलपुर के तसीमों गाँव के शहीदों का नाम आता है शहीद छत्तर सिंह परमार और शहीद पंचम सिंह कुशवाह। जिन्होंने देश के लिए अपनी जान की क़ुरबानी दी। धौलपुर के इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटना है। 11 अप्रैल 1947 को जब प्रजामंडल के कार्यकर्ता तसीमों गाँव में सभा स्थल पर एकत्रित हुये थे। तब झंडा फहराने पर रोक थी, लेकिन नीम के पेड़ पर तिरंगा लहर रहा था और सभा चल रही थी। उसी समय सभास्थल पर पुलिस के साथ सैंपऊ के तत्कालीन मजिस्ट्रेट शमशेर सिंह, पुलिस उपाधीक्षक गुरुदत्त सिंह तथा थानेदार अलीआजम पहुँचे और उन्होंने तिरंगे झंडे को उतारने के लिये आगे आए तो प्रजामंडल की सभा में मौजूद ठाकुर छत्तर सिंह सिपाहियों के सामने खड़े हो गए और किसी भी हालत में तिरंगा झंडा नहीं उतारने को कहा। इतने में ही पुलिस ने ठाकुर छत्तर सिंह को गोली मार दी। तब पंचम सिंह कुशवाह आगे आये तो पुलिस ने उन्हें भी गोली मार दी। दोनों शहीदों के जमीन पर गिरते ही सभा में मौजूद लोगों ने तिरंगे लगे नीम के पेड़ को चारों ओर से घेर लिया और कहा कि मारो गोली हम सब भारत माता के लिए मरने के लिए तैयार है। और भारत माता के नाम के जयकारे लगाने लगे जिससे मामला बिगड़ता देख पुलिस पीछे हट गयी। इसी कारण स्वतंत्रता सेनानियों की शहादत से तसीमों गाँव राजस्थान में ही नहीं बल्कि पूरे भारत वर्ष में इतिहास के पन्नों में दर्ज़ हो गया जो कि इतिहास में 'तसीमों गोली काँड' के नाम से जाना जाता है। जिन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए तिरंगे के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी। ऐसे थे हमारे धौलपुर के वीर सपूत शहीद छत्तर सिंह परमार और पंचम सिंह कुशवाह। घटना के साक्षी 83 वर्षीय पंडित रोशनलाल शर्मा बताते है कि राजशाही के इशारे पर पुलिस द्वारा चलाई गोलियों के निशान उनके हाथों पर आज भी धुंधले नहीं पड़े हैं वही साक्षी 86 वर्षीय जमुनादास मित्तल ने कहा कि तिरंगे की लाज के लिए उनके गाँव के दो सपूतों की शहादत पर उन्हें फक्र है।
पर्यटन स्थल
चौपड़ा-महादेव मन्दिर
यह एक ऐतिहासिक मंदिर है। इस मंदिर में की गई वास्तुकला काफी खूबसूरत है। यह शिव मंदिर ग्वालियर-आगरा मार्ग पर बाईं ओर लगभग सौ कदम की दूरी पर स्थित है। इसे चौपड़ा-महादेव का मंदिर कहते हैं। गुरु शंकराचार्य श्री श्री १००८ स्वामी श्री जयेन्द्र सरस्वती भी यहाँ अभिषेक कर चुके हैं।
मुचुकुन्द-सरोवर
अगर आप धौलपुर आएं तो मुचुकुंद सरोवर अवश्य घूमें। इस तालव का नाम राजा मुचुकुन्द के नाम पर रखा गया। यह तालाव अत्यन्त प्राचीन है। राजा मुचुकुन्द सूर्य वंश के 24वें राजाथे। पुराणों में ऐसा उल्लेख है कि राजा मुचुकुन्द यहाँ पर सो रहे थे, उसी समय असुर कालयवन भगवान श्रीकृष्ण का पीछा करते हुए यहाँ पहुँच गया और उसने कृष्ण के भ्रम में, वरदान पाकर सोए हुए राजा मुचुकुन्द को जगा दिया। राजा मुचुकुन्द की नजर पड़ते ही कालयवन वहीं भस्म हो गया। तब से यह स्थान धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता है। इस स्थान के आस-पास ऐसी कई जगह है जिनका निर्माण या रूप परिवर्तन मुगल सम्राट अकबर ने करवाया था। मुचुकुन्द सरोवर को सभी तीर्थों का भान्जा कहा जाता है। मुचुकुन्द-तीर्थ नामक बहुत ही सुन्दर रमणीक धार्मिक स्थल प्रकृति की गोद में धौलपुर के निकट ग्वालियर-आगरा मार्ग के बांई ओर लगभग दो कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। इस विशाल एवं गहरे जलाशय के चारों ओर वास्तु कला में बेजोड़ अनेक छोटे-बड़े मंदिर तथा पूजागृह पालराजाओं के काल 775 ई॰ से 915 ई॰ तक के बने हुए हैं। यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल ऋषि-पंचमी और बलदेव-छट को विशाल मेला लगता है। जिसमें लाखों की संख्या में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं, इस सरोवर में स्नान कर तर्पण-क्रिया करते हैं। ऐसी मान्यता भी है कि यहाँ लगातार सात रविवार स्नान करने से कान से सर का बहना बन्द हो जाता है। हर अमावस्या को हजारों तीर्थयात्री प्रातःकाल से ही मुचुकुन्द-तीर्थ की परिक्रमा लगाते हैं। इसी प्रकार हर पूर्णिमा को सायंकाल मुचुकुन्द-सरोवरकी महा-आरतीका आयोजन होता है, जिसमें सैकडों की तादाद में भक्त सम्मिलित होते हैं।
शेरगढ़ किला
यह किला धौलपुर से पाँच किलोमीटर की दूरी पर चम्बल नदी के किनारे खारों के बीच स्थित है। इस किले का निर्माण धौलपुर नरेश मालदेव ने 1532 ई॰ के आसपास करवाया था। इसके बाद इस किले को शेरशाह सूरीके आक्रमण का सामना करना पड़ा और इस किले का नाम शेरगढ़ किला कर दिया गया।[३]
मंदिर श्री राम-जानकी और श्री हनुमान जी, पुरानी छावनी
धौलपुर रेल्वे स्टेशन से ६ कि॰मी॰, धौलपुर-बाड़ी मार्ग से सरानी खेड़ा जाने वाले मार्ग पर स्थित है पुरानी- छावनी। मार्ग पर ऑटो-रिक्शा चलते रहते हैं। महाराज श्री कीर्त सिंह ने गोहद से आकर इस स्थान पर छावनी स्थापित की और यहाँ वि॰सं॰ १६४२(सन् 1699) में मन्दिर का निर्माण करवाया। मन्दिर में चौबीस अवतार युक्त मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामक अष्टधातुका मनोहारी विग्रह है, जो उत्तराभिमुख है। इस दुर्लभ मूर्ति की चोरी भी हो गई थी। अन्तर्राष्ट्रीय मूर्ति तस्करों के चंगुल से निकलवाने में तत्कालीन डी॰आई॰जी॰, केन्द्रीय पुलिस बल, श्री जगदानन्द सिंह की प्रमुख भूमिका रही। मन्दिर परिसर के सिंह द्वार के बाईं ओर, अपने आराध्य प्रभु श्री राम को निहारते हुए (दक्षिणाभिमुख) राम भक्त हनुमान की विशाल प्रतिमा है। प्रतिमा में रक्त-वाहिकाएं (नसें) नजर आती हैं।
खानपुर महल
इस किले का निर्माण मुगल शासन के दौरान शाहजहाँ ने करवाया था। इस महल की खूबसूरत बनावट पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। दूसरी तरफ खानपुर महल के निर्माण जाट राजाओ द्वारा किया गया बताया जाता है।
वनविहार वन्य जीव अभयारण्य
यह अभयारण्य शहर से 18 किलोमीटरकी दूरी पर स्थित है। यह अभयारण्य धौलपुर शासक का सबसे पुराना वन्यजीव-अभयारण्य है। इसका क्षेत्रफल करीबन 59.86 वर्ग किलोमीटर है। वनविहार विंध्य-पठार पर स्थित है। तालाब-ए-शाही का निर्माण मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने करवाया।
तालाब-ए-शाही
यह जगह धौलपुर - बाड़ी मार्ग पर धौलपुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तालाब-ए-शाही काफी खूबसूरत एवं ऐतिहासिक झील है। इस झील का निर्माण शाहजहाँ ने 1617 ईसवीं में करवाया था। इस झील को देखने के लिए काफी संख्या में पर्यटक यहाँ आते हैं। यहाँ राजा व रानी के दो महल है। रानी के महल को पर्यटकों हेतु होटल में परवर्तित कर दिया गया है जो आज भी आकर्षण का केंद्र है। ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण शाहजहाँ के मनसबदार साले खान ने उनके लिये बनवाया था।
रामसागर-अभयारण्य
यह अभयारण्य धौलपुर से 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह अभयारण्य रामसागर झील का एक हिस्सा है। इस झील में मगरमच्छ के साथ मछलियों एवं साँपों की प्रजातियाँ देखी जा सकती है। इसके अतिरिक्त पानी में रहने वाली पक्षी जैसे जलकौवा, बत्तख आदि भी देख सकते हैं। यह बाड़ी के निकट है।
निहाल टॉवर
धौलपुर शहर में स्थित घंटाघर जिसका नाम निहाल टॉवर है जो राजस्थान का सबसे बड़ा घण्टाघर है जो 7 मंजिला है। जिसका निर्माण धौलपुर के राजा निहाल सिंह ने करवाया था।
अन्य स्थानीय महत्वपूर्ण मंदिर
- श्री महंकाल (महाकालेश्वर) मन्दिर, सरमथुरा
- महादेेेव मंदिर , सैपऊ - धौलपुर शहर से 30 कि॰मी॰ दूर सैपऊ कस्बे से 7 कि॰मी॰ दूर सैपऊ बड़ी रोड पर स्थित महादेव मंदिर अपनी स्थापत्यकला तथा अलौकिकता के लिए प्रसिद्ध है। इसमें राजस्थान का सबसे बड़ा शिव लिंग स्थापित है।
लसवारी-
लसवारी एक ऐतिहासिक स्थल है। इसी स्थान पर लार्ड लेक ने दौलत राव सिंधिया की हत्या की थी। इसके अलावा यहाँ पुराना मुगल गार्डन, दमोह जल प्रपात और कानपुर महल भी हैं। यह सभी जगह लसवारी की खूबसूरत जगहों में से हैं। दमोह- सरमथुरा से २ कि॰मी॰ की दूरी पर है। यह एक सुन्दर जल-प्रपात है। इसकी ऊँचाई ३०० फुट है। सरमथुरा का महंकाल (महाकालेश्वर) मन्दिर प्रसिद्ध है।
उद्योग और व्यापार
यहाँ पर सबसे बड़ा रोजगार कृषि और पत्थर का है धौलपुर से 60 किलोमीटर दूर सर मथुरा है जहाँ पर लाल पत्थर अधिक मिलता है यहाँ लाल पत्थर रोजगार का साधन है
जनसंख्या
2011 के जनगणना के अनुसार जिला के कुल जनसंख्या 1206516 है। 2001 में हुए जनगणना के अनुसार धौलपुर नगर की कुल जनसंख्या 92,137 है; और धौलपुर ज़िले की कुल जनसंख्या 9,82,815 रही। जिसमें 22.71% की बढ़ोत्तरी हुई है। जिले का कुल क्षेत्रफल 3033 वर्ग कि॰मी॰ है। जिले का औसत जनसंख्या घनत्व लगभग 398 व्यक्ति प्रति वर्ग कि॰मी॰ तथा लिंगानुपात 846 और साक्षरता दर 69.08% हैं।
आवागमन
- हवाई मार्ग - सबसे नजदीकी एयरपोर्ट आगरा में है। आगरा से धौलपुर की दूरी 54 किलोमीटर है।
- रेल मार्ग - रेल मार्ग द्वारा धौलपुर से दिल्ली 240 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
- सड़क मार्ग - सड़क मार्ग द्वारा भरतपुर से धौलपुर 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
सन्दर्भ
- ↑ "Lonely Planet Rajasthan, Delhi & Agra," Michael Benanav, Abigail Blasi, Lindsay Brown, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012332
- ↑ "Berlitz Pocket Guide Rajasthan," Insight Guides, Apa Publications (UK) Limited, 2019, ISBN 9781785731990
- ↑ धौलपुर के प्रमुख तीर्थ