धर्म (पंथ)
यह लेख धर्म (पंथ) के विषय में है। भारतीय दर्शन धर्म के लिए धर्म देखें।
धर्म या पन्थ किसी एक या अधिक परलौकिक शक्ति में विश्वास और इसके साथ-साथ उसके साथ जुड़ी रीति, रिवाज, परम्परा, पूजा-पद्धति और दर्शन का समूह है।
धर्म और धार्मिकता में क्या फ़र्क हैं ? स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
इस प्रचलित धारणा के विरुद्ध स्वामी ओमा The अक् का दर्शन है कि धर्म को सम्प्रदाय या पन्थ से जोड़ कर देखना वास्तव में धर्म की समझ को सीमित करना है, चूँकि पश्चिमी-जगत का सम्बद्ध केवल सम्प्रदाय या "विश्वास" से है अतः वह भारतीय-दृष्टि से अनभिज्ञ रहते हुए "धर्म" को भी "मज़हब" बताता रहता है जो नितांत गलत है, वास्तव में विशुद्ध धर्म तो केवल "सनातन-धर्म" ही है बाकी सब उसकी शाखाएँ मात्र हैं यानी "सम्प्रदाय" और "पंथ"। ओमा The अक् के अनुसार धर्म कवक मनुष्यों तक ही सीमित नहीं वह तो अखिल-विश्व/ब्रह्माण्ड में व्याप्त है.. पशुओं और वृक्षों के अतिरिक्त पंच महाभूत भी धर्म से ही संचालित हैं वास्तव में धर्म प्रकृति की संचालिका-शक्ति है!
इस सम्बन्ध में प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन का अभिमत है कि आज धर्म के जिस रूप को प्रचारित एवम् व्याख्यायित किया जा रहा है उससे बचने की जरूरत है। वास्तव में धर्म सम्प्रदाय नहीं है। ज़िन्दगी में हमें जो धारण करना चाहिए, वही धर्म है। नैतिक मूल्यों का आचरण ही धर्म है। धर्म वह पवित्र अनुष्ठान है जिससे चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म वह तत्व है जिसके आचरण से व्यक्ति अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। यह मनुष्य में मानवीय गुणों के विकास की प्रभावना है, सार्वभौम चेतना का सत्संकल्प है।
मध्ययुग में विकसित धर्म एवम् दर्शन के परम्परागत स्वरूप एवं धारणाओं के प्रति आज के व्यक्ति की आस्था कम होती जा रही है। मध्ययुगीन धर्म एवं दर्शन के प्रमुख प्रतिमान थे- स्वर्ग की कल्पना, सृष्टि एवं जीवों के कर्ता रूप में ईश्वर की कल्पना, वर्तमान जीवन की निरर्थकता का बोध, अपने देश एवम् काल की माया एवम् प्रपंचों से परिपूर्ण अवधारणा। उस युग में व्यक्ति का ध्यान अपने श्रेष्ठ आचरण, श्रम एवं पुरुषार्थ द्वारा अपने वर्तमान जीवन की समस्याओं का समाधान करने की ओर कम था, अपने आराध्य की स्तुति एवं जय गान करने में अधिक था।
धर्म के व्याख्याताओं ने संसार के प्रत्येक क्रियाकलाप को ईश्वर की इच्छा माना तथा मनुष्य को ईश्वर के हाथों की कठपुतली के रूप में स्वीकार किया। दार्शनिकों ने व्यक्ति के वर्तमान जीवन की विपन्नता का हेतु 'कर्म-सिद्धान्त' के सूत्र में प्रतिपादित किया। इसकी परिणति मध्ययुग में यह हुई कि वर्तमान की सारी मुसीबतों का कारण 'भाग्य' अथवा ईश्वर की मर्जी को मान लिया गया। धर्म के ठेकेदारों ने पुरुषार्थवादी-मार्ग के मुख्य-द्वार पर ताला लगा दिया। समाज या देश की विपन्नता को उसकी नियति मान लिया गया। समाज स्वयं भी भाग्यवादी बनकर अपनी सुख-दुःखात्मक स्थितियों से सन्तोष करता रहा।
आज के युग ने यह चेतना प्रदान की है कि विकास का रास्ता हमें स्वयं बनाना है। किसी समाज या देश की समस्याओं का समाधान कर्म-कौशल, व्यवस्था-परिवर्तन, वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास, परिश्रम तथा निष्ठा से सम्भव है। आज के मनुष्य की रुचि अपने वर्तमान जीवन को सँवारने में अधिक है। उसका ध्यान 'भविष्योन्मुखी' न होकर वर्तमान में है। वह दिव्यताओं को अपनी ही धरती पर उतार लाने के प्रयास में लगा हुआ है। वह पृथ्वी को ही स्वर्ग बना देने के लिए बेताब है।
धर्म की अवधारणा
हिन्दू धर्म
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। हिन्दू धर्म समूह का मानना है कि सारे संसार में धर्म केवल एक ही है , शाश्वत सनातन धर्म। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से जो धर्म चला आ रहा है , उसी का नाम सनातन धर्म है। इसके अतिरिक्त सब पन्थ , मजहब , रिलीजन मात्र है।हिन्दुओं की धार्मिक पुस्तक वेद,अरण्यक,उपनिषद,श्रीमदभगवत गीता,रामायण,पुराण, महाभारत आदि हैं। वेद विशुद्ध अध्यात्मिक और वैज्ञानिक ग्रंथ हैं। वेद पश्चिमी धर्म की परिभाषा तथा पंथ, संप्रदाय के विश्वास तथा दर्शन से परे शाश्वत सत्य ज्ञान सागर हैं। वेदों की रचना मानव को सत्य ज्ञान से परिचित कराने के लिए की गई है। वेद पंथ, संप्रदाय, मजहब, रिलीजन आदि का प्रतिनिधित्व न करके मानव के लिए हैं।
जैन धर्म
जैन धर्म भारत का एक धर्म है। जैन धर्म का मानना है कि यह संसार अनादिकाल से चला आ रहा है वह अनंत काल तक चलता रहेगा एवं सभ्यता का निरंतर विकास होता रहेगा जो एक बिंदु है। जिन्होंने स्वयं को जीत लिया हो अर्थात मोह राग द्वेष को जीत लिया हो वो जैन अर्थात उनका अनुसरण करने वाले। जैन धर्म कहता है भगवान कोई अलग से नहीं होते वरन् व्यक्ति निज शुद्धात्मा की साधना से भगवान बन सकता है। भगवान कुछ नहीं करता मात्र जानता है सब अपने कर्मों के उदय से होता है। जैन धर्म कहता है कोई बंधन नहीं है तुम सोचो समझो विचारो फिर तुम्हें जैसा लगे वैसा शीघ्रातिशीघ्र करो। जैन धर्म संसार का एक मात्र ऐसा धर्म है जो व्यक्ति को स्वतंत्रता प्रदान करता है।जैन धर्म में भगवान को नमस्कार नहीं है अपितु उनके गुणों को नमस्कार है।
इस्लाम धर्म
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। इस्लाम धर्म क़ुरान पर आधारित है। इसके अनुयाइयों को मुसलमान कहा जाता है। इस्लाम केवल एक ही ईश्वर को मानता है, जिसे मुसलमान अल्लाह कहते है। हज़रत मुहम्मद अल्लाह के अन्तिम और सबसे महान सन्देशवाहक (पैग़म्बर या रसूल) माने जाते हैं। इस्लाम में देवताओं की और मूर्तियों की पूजा करना मना है।
इस्लाम शब्द अरबी भाषा का (सल्म) से उच्चारण है। इसका मतलब शान्त होना है। एक दूसरा माना (समर्पित ) होना है-परिभाषा;व्यक्ति ईश्वर कै प्रति समर्पित होकर ही वास्तविक शान्ति प्राप्त करता है|इस्लामी विचारों के अनुसार - ईश्वर द्वारा प्रथम मानव (आदम) की रचनाकर इस धरती पर अवतरित किया और उन्हीं से उनका 'जोड़ा' बनाया, जिससे सन्तानोत्पत्ति का क्रमारम्भ हुआ! यह सन्तानोत्पत्ति निर्बाध जारी है। आदम (उन पर शान्ति हो) को ईश्वर (अल्लाह) ने जीवन व्यतीत करने हेतु विधि-विधान (दीन, धर्म) से सीधे अवगत कर दिया!
उन्हें मानवजाति के प्रथम ईश्चरीय दूत के पद (पेगम्बर) पर भी आसीन किया। आदम की प्रारम्भिक सन्तानें धर्म के मौलिक सिद्धांतों जैसे -एक ईश्वर पर विश्वास, मृत्यु पश्चात पुन:जीवन पर विश्चास, स्वर्ग के होने पर, नरक के होने पर, फरिश्तों (देवताओं) पर विश्वास, ईश-ग्रन्थों पर विश्वास, ईशदूतों पर विश्चास, कर्म के आधार पर दण्ड और पुरस्कार पर विश्वास, इन मौलिक सिद्धांतों पर सशक्त विश्वास करते थे एवं अपनी सन्तति को भी इन मौलिक विचारों का उपदेश : अपने वातावरण, सीमित साधनों, सीमित भाषाओं, संसाधनों के अनुसार हस्तान्तरित करते थे। कालान्तर में जब मनुष्य जाति का विस्तार होता चला गया और वह अपनी आजीविका की खोज में, पृथक-पृथक जनसमूह के साथ सुदूरपूर्व तक चारों ओर दूर-दूर तक आबाद होते रहे। इस प्रकार परिस्थितिवश उनका सम्पर्क लगभग समाप्त प्राय: होता रहा। उन्होंने अपने मौलिक ज्ञान को विस्मृत करना तथा विशेष सिद्धांतों को, जो अटल थे; अपनी सुविधानुसार और अपनी पाश्विक प्रवृत्तियों के कारण अनुमान और अटकल द्वारा परिवर्तित करना प्रचलित कर दिया!
इस प्रकार अपनी धारणाओं के अनुसार मानवजाति प्रमुख दो भागो में विभक्त हो गई।
एक समूह ईश्वरीय दूतों के बताए हुए सिद्धांतों (ज्ञान) के द्वारा अपना जीवन समर्पित (मुस्लिम) होकर संचालित करते, दूसरा समूह जो अपने सीमित ज्ञान (अटकल, अनुमान) की प्रवृत्ति ग्रहण करके ईश्वरीय दूतों से विमुख (काफिर) होने की नीति अपनाकर जीवन व्यतीत करते।
एक प्रमुख वचन प्रथम पेगम्बर (आदम, एडम) के द्वारा उद्घोषित किया जाता रहा (जो ईश्वरीय आदेशानुसार) था!
ईसाई पन्थ
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। ईसाई पन्थ बाइबिल पर आधारित है। ईसाई एक ही ईश्वर को मानते हैं, पर उसे त्रिएक के रूप में समझते हैं -- परमपिता परमेश्वर, उनके पुत्र ईसा मसीह (यीशु मसीह) और पवित्र आत्मा।
धर्म और धार्मिकता में क्या फ़र्क हैं ? स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
सिख पन्थ
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। सिख पन्थ सिख एक ही ईश्वर को मानते हैं, बराबरी, सहनशीलता, बलिदान, निडरता के नियमों पर चलते हुए एक निराले व्यक्तित्व के साथ जीते हुए उस ईश्वर में लीन हो जाना सिख का जीवन उद्देश्य है। इनका ग्रन्थ गुरु ग्रन्थ साहिब है।
बौद्ध धर्म
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। बौद्ध धर्म एक सत्य अनादि धर्म हैै यह श्रमण परंपरा से निकला हुआ धर्म है बाकी के सब पन्थ मात्र है, और ईसी. सद्धम्म से सभी पंंथ, सम्प्रदाय, उत्पन्न हुये है, (एस धम्मो सनंतनो) यह धम्मपद मैं भी भगवान का उपदेश मिलता है, कि यही सनातन धर्म है, ईसे ही शुद्ध सत्यसद्धम्म मार्ग कहा गया है भगवान गौतम बुद्ध से पहिले भी बुद्ध हुए हैं, बौद्ध धर्म के संस्थापक स्वयं बुद्धत्व है, ना की भगवान गौतम बुद्ध इन्होंने तो धम्मचक्कपरिवर्तत करके महान उपदेश दिया है और बुद्धो की अनादि परंपरा आगे बढाई है, बौद्ध धर्म ईश्वर के अस्तित्व को नकारता और इस धर्म का केन्द्रबिन्दु मानव है। बौद्ध धर्म और कर्म के सिद्धान्तों को मानते है, जिनको तथागत भगवान गौतम बुद्ध ने प्रचारित किया था। बौद्ध भगवान गौतम बुद्ध को नमन करते हैं। त्रिपीटक बौद्ध धर्म ग्रंथ है
पन्थ और संप्रदाय
पन्थ और सम्प्रदाय में अन्तर करते हुए आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र मानते हैं कि पन्थ वह है जिसमें विचार भले ही प्राचीन हों किन्तु आचार नया हो। भक्तिकालीन सन्तों की शिक्षाओं को आचार से जोड़ते हुए पन्थ निर्माण की आरम्भिक अवस्था का वर्णन करते हुए वे लिखते हैं कि, "ये सन्त बातें तो वे ही कहते थे जो प्राचीन शास्त्रों में पहले ही कही जा चुकीं हैं, किन्तु पद्धति अवश्य विलक्षण थी। केवल आचार की नूतनता के कारण ही ये पन्थ कहलाते हैं, सम्प्रदाय नहीं।"[१] पंथ की स्थापना के लिए कुछ नियम उपनियम बनाये जाने भी आवश्यक होते हैं।[२]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ वाङ्मय विमर्श, विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, वाणी प्रकाशन, संवत २0३५, पृष्ठ- २४२-४३
- ↑ कबीर और कबीर पंथ, डॉ॰ केदार नाथ द्विवेदी, हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, प्रथम संस्करण, १९६५, पृष्ठ- १६१
बाहरी कड़ियाँ
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- धर्म के आंकड़े यूसीबी ग्रंधालय से.
- साँचा:dmoz
- Major Religions of the World Ranked by Number of Adherents by Adherents.com August 2005
- IACSR - International Association for the Cognitive Science of Religion