द्वितीय चीन-जापान युद्ध

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द्वितीय चीन-जापान युद्ध
द्वितीय विश्वयुद्धसाँचा:efn का भाग
Second Sino-Japanese War collection.png
तिथि July 7, 1937 – September 2, 1945
Minor fighting since September 18, 1931
(स्क्रिप्ट त्रुटि: "age" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।)
स्थान Mainland China and Burma
परिणाम Chinese victory as part of the Allied victory in the Pacific War
क्षेत्रीय
बदलाव
China recovered all territories lost to Japan since the Treaty of Shimonoseki, but lost Outer Mongolia.
योद्धा
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सेनानायक
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शक्ति/क्षमता
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मृत्यु एवं हानि
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Chinese civilian deaths:
17,000,000–22,000,000[१]
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द्वितीय चीन-जापान युद्ध चीन तथा जापान के बीच 1937-45 के बीच लड़ा गया था। 1945 में अमेरिका द्वारा जापान पर परमाणु बम गिराने के साथ ही जापान ने समर्पण कर दिया और युद्ध की समाप्ति हो गई। इसके परिणामस्वरूप मंचूरिया तथा ताईवान चीन को वापस सौंप दिए गए जिसे जापान ने प्रथम चीन-जापान युद्ध में उससे लिया था।

1941 तक चीन इसमें अकेला रहा। 1941 में जापान द्वारा पर्ल हार्बर पर किए गए आक्रमण के बाद यह द्वितीय विश्व युद्ध का अंग बन गया।

जापान में साम्राज्यावादी नीति का उद्भव : तनाका स्मरण-पत्र

अपै्रल 1927 ई. में बैरन तनाका जापान का प्रधानमंत्री बना। तनाका शक्ति के प्रयोग के द्वारा जापान के उद्योगों को विकास करना चाहता था। जापान की नीति क्या होनी चाहिए, इस विषय पर तनाका ने एक गुप्त सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें जापान के सेनाध्यक्षों तथा वित्त और युद्ध विभागों के अधिकारियों ने भाग लिया था। कहा जाता है कि इस सम्मेलन के निर्णय के आधार पर स्मरण पत्र तैयार किया गया। इस स्मरण पत्र को ‘तनाका स्मरण-पत्र’ कहा गया और सम्राट की स्वीकृति के लिए इसे 25 जुलाई, 1927 ई. को प्रस्तुत किया गया। इस स्मरण-पत्र में कहा गया था कि अगर जापान विकास करना चाहता है और अपने अस्तित्व की रक्षा करना चाहता है तो उसे कोरिया, मंचूरिया, मंगोलिया और चीन की आवश्यकता है। इतना ही नहीं, जापान को संपूर्ण एशिया और दक्षिण सागर के प्रदेशों को भी जीतना आवश्यक होगा। स्मरण-पत्र में आगे कहा गया था कि अगर जापान अपने उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहता है तो उसे ‘रक्त और लौह’ की नीति (आइरन ऐण्ड ब्ल्ड पॉलिसी) अपनानी पड़ेगी और इस नीति की सफलता के लिए चीन को पहले विजय करना आवश्यक है।

द्वितीय चीन-जापान युद्ध : प्रथम चरण

तनाका स्मरण-पत्र में कहा गया था कि अगर जापान एशिया को अपने नियंत्रण में लाना चाहता है तो उसे सबसे पहले चीन पर अधिकार करना होगा और चीन पर अधिकार करने का मार्ग मंचूरिया से आरंभ होता है।

मंचूरिया पर अधिकार के उद्देश्य

मंचूरिया चीन का प्रांत था लेकिन चीन की दुर्बलता के कारण रूस तथा जापान ने मंचूरिया में विशेष आर्थिक तथा सैनिक हितों का सृजन कर लिया था। जापान अपने राष्ट्रीय जीवन की सुरक्षा के लिए मंचूरिया पर अधिकार करना आवश्यक मानता था। इसके कई कारण थे -

  • (१) प्रथम राजनीतिक कारण थे। मंचूरिया में चांग हसूएस लियांग गवर्नर था।उसने 1925 में नानकिंग सरकार की सर्वाच्च सत्ता स्वीकार कर ली। वह आंतरिक मामालें में स्वतंत्र था लेकिन विदेश नीति का अधिकार नानकिंग की कोमिन्तांग सरकार को थे। जापान को यह स्थिति स्वीकार नहीं थी क्योंकि गवर्नर से वह मनमाना काम करा सकता था। इसके विपरीत, नानकिंग सरकार जापान की किसी अनुचित बात मानने को तैयार नहीं थी।
  • (२) दूसरा कारण आर्थिक विशेषाधिकारों से संबंधित था। जापान ने लिआओ तुंग प्रायद्वीप का पट्टा 99 साल के लिए 1815 में चीन की सरकार से प्राप्त किया था। इसके पहले यह पट्टा केवल 25 वर्षां के लिए था जिसकी मियाद 1923 ई. में समाप्त हो गयी थी। कोमिन्तांग सरकार 1915 ई. के समझौता को अवैध मानती थी। इसी प्रकार का विवाद दक्षिण मंचूरिया के रेलवे के बारे में था। जो जापान के आधिपत्य में थी। चीन का कहना था कि रेल की लीज भी 1923 में समाप्त हो गयी थी पर जापान इसे स्वीकार नहीं करता था।
  • (३) मंचूरिया में रेल और बंदरगाह निर्माण पर भी विवाद था। लाखों चीनी कृषक और श्रमिक मंचूरिया जाकर बसे गये थे। इससे मंचूरिया की चीनी जनता की शक्ति बढ़ गयी। दक्षिण मंचूरिया में जापान की रेल लाइन तथा दैरन का बंदरगाह था। चीन की सरकार मंचूरिया में एक रेलवे लाइन तथा अपना बंदरगाह बनाना चाहती थी जिसका जापान ने विरोध किया।
  • (४) जापान की सैनिक कार्यवाही का तात्कालिक कारण एक घटना थी। जून 1931 में दक्षिणी मंचूरिया में एक जापानी सैनिक अधिकारी की हत्या कर दी गयी। स्पष्ट था कि यह चीनी देशभक्तों का काम था। अब स्पष्ट हो गया था कि मंचूरिया पर जापान या चीन किसी एक का ही अधिकार रह सकता था। यह निर्णायक अवसर 18 सितम्बर, 1931 को आया अब दक्षिण मंचूरिया रेलवे पर, मुकदन के निकट, बम फेंका गया। इससे रेलवे लाइन को साधारण क्षति पहुँची। जापान का कहना था कि वह बम चीनी सिपाहियों ने फेंका था। जो कुछ भी हो, 18 सितम्बर, को ही क्वांतुंग सेना ने कुदमन नगर पर कब्जा कर लिया। कुदमन मंचूरिया की राजधानी थी। इस प्रकार जापानी साम्राज्यवाद का पहला चरण आरंभ हुआ।

मंचुकुओं राज्य की स्थापना

मुकदन पर कब्जा करने के बाद भी जापान की सैनिक कार्यवाही जारी रही। 3 जनवरी, 1932 तक संपूर्ण मंचूरिया पर जापान का अधिकार हो गया। 18 फरवरी, 1932 को मंचूरिया के स्थान पर एक नवीन राज्य ‘मंचूकुओ’ की स्थापना जापान ने की। जापान ने एक कठपुतली सरकार की भी स्थापना की। चीन के पदच्युत सम्राट् को राज्य का प्रमुख बनाया गया। यह सम्राट् चीन के जपानी राजदूतावास में जापानी संरक्षण में रह रहा था। जापान का कहना था कि मंचुकुओ को चीन की आधीनता से मुक्त करके एक स्वतंत्र राष्ट्रीय राज्य के रूप में स्थापित किया जा रहा था। 9 मार्च, 1932 को मंचुकुओं राज्य के संविधान का निर्माण किया। 15 सितम्बर, 1932 को जापान ने इस नवीन राज्य को विधिवत मान्यता प्रदान कर दी। Jai Shree ram

चीन-जापान युद्ध : द्वितीय चरण

अब जापान ने चीन के प्रदेशों पर अधिकार प्राप्त करना प्रारंभ किया जो निम्नलिखित हैं-

  • (1) नानकिंग पर अधिकार
  • (2) जेहोल पर अधिकार
  • (3) मंगोलिया पर अधिकार
  • (4) उत्तरी चीन-होयेई, शान्सी, शान्तुंग पर जापान का अधिकार

1934 ई. जापान ने घोषणा की कि अगर कोई देश चीन को युद्ध का सामान, हवाई जहाज आदि देगा तो जापान इसे शत्रुतापूर्ण कार्यवाही मानेगा। जापान ने 1933 ई. में नानकिंग सरकार से ऐसे समझौते किये जिनके द्वारा चीन की सरकार को होयेई प्रांत से अपनी सेनाओं को हटाना पड़ा और जापान ने वहाँ अपनी पसंद की सरकार बनवा ली। होयेई पर अधिकार हो जाने के बाद शान्सी और शान्तुंग पर अधिकार के लिए जापान ने प्रयास तेज कर दिये। इन्हीं के फलस्वरूप 1937 में चीन-जापान युद्ध औपचारिक रूप से आंरभ हो गया।

चीन-जापान युद्ध : तृतीय चरण

तात्कालिक कारण  : चीनियों तथा जापानी सैनिकों के मध्य स्थान-स्थान पर मुठभेड़ें हो रही थीं। इनमें सबसे गंभीर लुकचिआओ की मुठभेड़ थी जो 7 जुलाई, 1937 ई. को हुई। चीनी पुलिस और जापानी सैनिकों के मध्य गोलाबारी हुई। जापान ने इस घटना के लिए चीनी पुलिस को उत्तरदायी ठहराया और माँग की कि पेकिंग और तिन्वसिन क्षेत्रों से चीनी सैनिकों को हटा लिया जाये। चांग काई शेक ने इस माँग को अस्वीकार कर दिया जिससे दो पक्षों के मध्य युद्ध आरंभ हो गया।

युद्ध की घटनाएँ

युद्ध आरंभ होते ही 27 जुलाई को जापानी सेनाओं ने पेकिंग पर अधिकार कर लिया। चांग ने येनान की साम्यवादी सरकार से समझौता करके यह स्वीकार कर लिया था कि साम्यवादी सेनाएँ अपने सेनापतियों के नेतृत्व में जापानियों से युद्ध करेंगी। पेकिंग के बाद जापानी सेनाओं ने चहर और सुईयुनान पर अधिकार कर लिया। जब उन्होंने शान्सी पर आक्रमण किया, तब साम्यवादी सेनाओं ने डटकर मुकाबला किया। 1937 ई. में जापान ने नवविजित प्रदेशों में दो सरकारों का गठन किया - मंगोलिया की पृथक् सरकार और पेकिंग की सरकार। ये सरकार जपानी परामर्श से शासन करती थीं। इनके बाद जापानी सेनाओं ने शंघाई तथा नानकिंग पर कब्जा कर लिया। चांग की सेनाओं को पीछे हटना पड़ा। नानकिंग सरकार हैंको चली गयी। जापान ने सैनिक अभियान जारी रखा। उसने 1938 ई. में हैंको और कैण्टन पर भी अधिकार कर लिया। ऐसी स्थिति में चांग की सरकार चुंगकिंग चली गयी। जापान ने नानकिंग में एक कठपुतली सरकार गठित कर दी और घोषणा की कि जापान का उद्देश्य चीन में एक मित्र सरकार की स्थापना है। उसने चीन में अपनी व्यवस्था को ‘न्यू आर्डर’ कहा। इस प्रकार जपान का उत्तरी, पूर्वी तथा दक्षिणी चीन पर अधिकार स्थापित हो गया लेकिन वह पश्चिमी तथा उत्तरी-पश्चिमी चीन पर अधिकार करने में असफल रहा। इन क्षेत्रों पर कोमिन्तांग तथा साम्यवादी सरकारें स्थापित थीं। वे जापानी सेनाओं से निरंतर युद्ध कर रही थीं। जापान के अधिकृत प्रदेशों में चीनी देशभक्तों ने गोरिल्ला युद्ध छेड़ रखा था। इस बीच 1939 ई. में द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ हो जाने से चीन और जापान भी विश्वयुद्ध का भाग बन गये।

चीन-जापान युद्ध के परिणाम

1937 ई. में जब चीन-जापान युद्ध आरंभ हुआ, चीन ने राष्ट्रसंघ से अपील की। राष्ट्रसंघ ने इस पर विचार के लिए समिति नियुक्त की। समिति की अनुशंसा पर 9 देशों की सभा ब्रुसेल्स में हुई लेकिन सब व्यर्थ रहा। जापान के विरूद्ध राष्ट्रसंघ या इंग्लैण्ड, फ्रांस, अमेरिका ने कोई कार्यवाही नहीं की। राष्ट्रसंघ की असफलता का परिणाम यह हुआ कि विश्व के प्रमुख देश दो गुटों में विभाजित हो गये। एक ओर जर्मनी, जापान और इटली थे; दूसरी ओर फ्रांस के नेतृत्व वाला गुट था जिसमें पोलैण्ड, चेकोस्लोवेकिया, यूगोस्लाविया आदि थे। रूस भी इसमें शामिल हो गया। अंत में, इंग्लैण्ड भी इस गुट में शामिल हुआ। अमेरिका ने तटस्थता की नीति अपनायी। इस प्रकार जापान को चीन को परास्त करने की पूरी आजादी मिल गयी। जब 1939 ई. में विश्वयुद्ध आरंभ हुआ तब जापान को संदेह था कि भविष्य में अमेरिका भी इस युद्ध में सम्मिलित होगा। इसीलिए 1940 ई. में उसने जर्मनी तथा इटली के साथ सैनिक संधि की। इससे चीन में जापान की स्थिति सुरक्षित हो गयी।

इन्हेम भी देखें

  1. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Clodfelter नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।