द्वारिका प्रसाद पांडेय
जीवन परिचय
डॉ द्वारिका प्रसाद पांडेय पुत्र श्री नेपाल पांडे ग्राम जिंदापुर पोस्ट जंगल कौड़िया थाना पीपीगंज के निवासी थे
आजाद भारत के पहले आम चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस (INC) से फरेंदा (पुर्व ) से लगातार पहली, दूसरी और तीसरी बार विधायक चुने गए।[१]
निर्वाचन क्षेत्र फरेंदा पूर्व के विधायक के साथ-साथ मंत्री बी एन डब्ल्यू रेलवे मेंस यूनियन, मंत्री किसान मजदूर सभा, सीनियर वाइस चेयरमैन जिला बोर्ड, अध्यक्ष केन यूनियन, अध्यक्ष बापू विद्यालय पीपीगंज, जिला किसान मजदूर संघ रह चुके थे तथा मंडल तहसील तथा जिला कांग्रेस कमेटी में वरिष्ठ पदो पर रहते हुए[२]
आप अनेक राष्ट्रीय कार्य के संस्थापक और हरिजन उत्थान अध्ययन तथा खेल में खेल मंडल तहसील तथा जिला कांग्रेस कमेटी में पदाधिकारी रहे।
डॉ द्वारिका प्रसाद पांडे प्रांतीय तथा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे तथा कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड गोरखपुर के मैनेजिंग डायरेक्टर और डिस्टिक कोऑपरेटिव फेडरेशन गोरखपु[३][४]र के डायरेक्टर रहे
स्वाधीन भारत के आजादी के 25 वे वर्ष, रजत जयंती समारोह पर भारत सरकार की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इन्हें दिल्ली बुलाकर ताम्रपत्र से सम्मानित किया था।
सन 2006 में चौरीचौरा संग्रहालय में तत्कालीन सरकार के द्वारा इन की मूर्ति की स्थापना की गई थी।
डॉ द्वारिका प्रसाद पांडे अपने कारावास के कार्यकाल के दौरान होम्योपैथिक मे डॉक्टर की शिक्षा को भी ग्रहण किया तथा विधायक होते हुए तथा विधायक के उपरांत उन्होंने ताउम्र निशुल्क आम जनता की सेवा करते रहे।
डॉ द्वारिका प्रसाद पांडे का विवाह 1945 मे दर्शन देवी के साथ हुआ था, जो की अब इस दुनिया मे नही रही।
डॉ द्वारिका प्रसाद पांडे अपने पिछे 3 पुत्र: स्व ओम प्रकाश पाण्डेय, सुर्य प्रकाश पाण्डेय तथा चन्द्र प्रकाश पाण्डेय और 3 पुत्रीयो प्रकाशवती, कौलाशवती तथा नीलम
दिनांक 27 दिसंबर 1981 को छोड़कर इस दुनिया से चले गए जिसके उपरांत राजकीय सम्मान के साथ इनका अंतिम संस्कार किया गया।
इतिहास प्रसिद्ध चौरी चौरा कांड के महान सेनानायक डॉ द्वारिका प्रसाद पांडेय पुत्र श्री नेपाल पांडे ग्राम जिंदापुर पोस्ट जंगल कौड़िया थाना पीपीगंज के निवासी थे।
4 फरवरी दिन शनिवार सन् 1922, के चौरी चौरा कांड में द्वारिका प्रसाद पांडे जी धरना-प्रदर्शन के नेता थे, जिन्हे पंडित मोतीलाल के निर्देश पर चौरीचौरा मे विदेशी कपडो एवं विदेशी सामानो के बहिष्कार के आंदोलन की रूपरेखा को तैयार करने तथा उसका नेतृत्व करने के लिए भेजा गया था, आन्दोलन के दौरान इनके पैर में गोली लगने के बाद घायल अवस्था के बावजूद यह आन्दोलन का नेतृत्व करते रहे। इन्हे घायल अवस्था में ही अंगेजी फौज के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था।
गिरफ्तारी के उपरांत कोर्ट में सुनवाई के तत्पश्चात तत्कालीन जज के द्वारा इनको फांसी की सजा सुनाई गई थी जिस पर पंडित मदन मोहन मालवीय के अपील के दौरान यह पक्ष रखा गया कि अगर किसी व्यक्ति के पैरो में गोली लगी हुई हो तो वह आन्दोलन का नेतृत्व करते हुए आग कैसे लगा सकता है तथा इसी को साक्ष्य मानते हुए कोर्ट ने इनकी फांसी की सजा को (डामल) आजीवन कारावास, कालापानी की सजा में तब्दील कर दिया था।[५]
सुनवाई के दौरान इनको खूंखार श्रेणी के कैदी होने के नाते नैनी सेंट्रल जेल में बेडियो मे बाध कर लगभग 3 साल तक नजरबंद करके रखा गया तथा अनगिनत यातनाएं दी गई।
नैनी सेंट्रल जेल में रहते हुए इन्होंने पैर से आटा गूंथे हुए रोटीयो को भोजन मे परोसने के विरोध में 52 दिनों तक लगातार अनशन किया था जिसके बाद में नैनी सेट्ल जेल मे इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया था।[१]
नैनी सेंट्रल जेल के बाद इन्हें बेडियो में कडी सुरक्षा के बीच कलकत्ता ले जाया गया तथा वहा से काले पानी की सजा के लिए अंडमान भेज दिया गया जहां इन्हें काल कोठरी में लगभग 16 वर्षो तक बंदी बनाकर रखा रखा गया था।
भारत माता को बेडियो से मुक्त करवाने के लिए इन्होंने जीवन के बहुमुल्य 22 वर्षो तक गोरखपुर जेल, नैनी जेल तथा कालापानी अंडमान मे कठोर अंगेजी यातनाओ को सहन करते हुए आजाद भारत के अपने सपने अंजाम तक पहुंचाया, भारतीय स्वतन्त्रा संग्राम के इतिहास मे इनकी गणना सर्वाधिक जेल की सजा पाने वाले सेनानीयो में होती है।
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द्वारिका प्रसाद पांडेय | |
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कार्यकाल 1962 से 1967 | |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
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द्वारिका प्रसाद पांडेय,भारत के उत्तर प्रदेश की पहले विधानसभा सभा 1952 - 1957, दूसरी विधानसभा सभा 1957-62और तीसरी विधानसभा सभा में विधायक रहे। 1962 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के 199 - फरेंदा (पूर्व) विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया। [६]
सन्दर्भ[७]
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