देवरानी जेठानी की कहानी
देवरानी जेठानी की कहानी हिन्दी का उपन्यास है। इसके रचयिता हिन्दी व देवनागरी के महान सेवक पंडित गौरीदत्त हैं। न केवल अपने प्रकाशन वर्ष (1870), बल्कि अपनी निर्मिति के लिहाज से भी पं॰ गौरीदत्त की कृति 'देवरानी-जेठानी की कहानी' को हिन्दी का पहला उपन्यास (डॉ. गोपाल राय के अनुसार) होने का श्रेय जाता है। किंचित लड़खड़ाहट के बावजूद हिन्दी उपन्यास-यात्रा का यह पहला कदम ही आश्वस्ति पैदा करता है।
अन्तर्वस्तु इतनी सामाजिक कि तत्कालीन पूरा समाज ही ध्वनित होता है, मसलन, बाल विवाह, विवाह में फिजूलखर्ची, स्त्रियों की आभूषणप्रियता, बंटवारा, वृद्धों, बहुओं की समस्या, शिक्षा, स्त्री-शिक्षा, - अपनी अनगढ़ ईमानदारी में उपन्यास कहीं भी चूकता नहीं। साथ ही 19वीं शताब्दी के मध्यवर्गीय बनिया समाज के जीवन का यथार्थ चित्रण भी प्रस्तुत किया गया है। लोकस्वर संपृक्त भाषा इतनी जीवन्त है कि आज के साहित्यकारों को भी दिशा-निर्देशित करती है। दृष्टि का यह हाल है कि इस उपन्यास के माध्यम से हिन्दी पट्टी में नवजागरण की पहली आहट तक को सुना जा सकता है।
इस उपन्यास का नायक सर्वसुख है। वह मेरठ शहर में रहनेवाला एक अग्रवाल बनिया था। इसको दो लड़कियाँ तथा दो लड़के हुए। उसने बड़ी लड़की तथा लड़के को बेपढ़ा रखा किंतु छोटी लड़की को नागरी पढ़ाकर चिटठी-पत्री लिखना और घर का हिसाब लिखाना सिखा दिया। छोटे लड़के को मदरसे में अंग्रेजी पढ़ने के लिए भेज दिया गया। बड़े लड़के को अपने रोजगार में लगा दिया। छोटे लड़के को पढ़ाई पूरी होते ही रेल विभाग में नौकरी मिली और महिना 60 रुपये पाने लगा। बड़े लड़के की बहू अनपढ़ थी,किंतु छोटे लड़के की बहू पढ़ी-लिखी थी। सर्वसुख का समधी सरकारी तहसीलदार होने के कारण अपनी बेटी को नागरी और बेटे को अंग्रेजी पढ़ाता है। आगरा कॉलेज में पढ़कर वकालत की परीक्षा पास करने के लिए उसके ताऊ के पास आगरा भेजता है। सर्वसुख का छोटा लड़का अपने लड़के को रुड़की कॉलेज भेजकर इंजीनियर बनाना चाहता है परंतु उसकी पत्नी उसे वकील बनाना चाहती है वह पति से कहती है कि- ‘‘नहीं इसकू तो तुम वकील बनाना मेरा ताऊ आगरे में वकील है हजारों रुपये महीने की आमदनी है और घर के घर है किसी का नौकर नहीं। इससे स्पष्ट होता है कि तत्कालीन समाज में शिक्षा को महत्व दिया जा रहा था। लड़कों को मदरसे में अंग्रेजी पढ़ाने का चलन धीरे-धीरे बढ़ रहा था। इसका प्रमुख कारण यह भी था कि अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोगों को सरकारी नौकरियाँ आसानी से मिलती थी।
कृति का उद्देश्य बारम्बार मुखर होकर आता है किन्तु वैशिष्टक यह कि यह कहीं भी आरोपित नहीं लगता। डेढ़ सौ साल पूर्व संक्रमणकालीन भारत की संस्कृति को जानने के लिए 'देवरानी जेठानी की कहानी' (उपन्यास) से बेहतर कोई दूसरा साधन नहीं हो सकता।
पात्र
- सर्वसुख-मेरठ का अग्रवाल बनिया
- मुंशी टिकत नारायण तथा हरसहाय काबली-शहर के अमीर
- सर्वसुख की संतान-बड़ी बेटी का नाम पार्वती छोटी का नाम सुखदेई,बड़े बेटे का नाम दौलत राम छोटे का नाम छोटे-छोटे पुकारने के कारण छोटे पड़ गया।
इन्हें भी देखें
- गौरीदत्त
- भाग्यवती उपन्यास (लेखक - श्रद्धाराम फिल्लौरी)