दुलावत वंश
दुलावत वंश एक राजपूत वंश है।
इतिहास
सूरजवंश रघुकूल तिलक अवधनाथ रघुबीर
ताहि कुंवर लव खाँप मे अव्वल राण हम्मीर
लाखों हम्मीर रो पोतरो ता कुँवर दुल्हा
राणी लखमादे जनिया सहउदर चूण्डा
संवत् चैदह गुनचालीस नृप लाखा रजवाड
साख फटी सिसोदिया दुलावत मेवाड़
अयोध्या के सूर्यवंशी राजा जो रघुकुल के तिलक भगवान राम है उनके पुत्र लव के वंश में राणा हम्मीर बहुत अव्वल हुए तथा राणा लाखाजी उन्हीं राणा हम्मीर के पौत्र है तथा राणा लाखा के पुत्र कुँवर दुल्हा जी हुए जिन्हें रानी लखमादे ने जन्म प्रदान किया। उनके सहउदर( सगे) भ्राता चूण्डा जी है।
विक्रम सवंत् 1439 में राणा लाखा के राज्य के समय सिसोदया वंश में दुलावत शाखा फटी।
मेवाड़ के महाराणा लाखा (1382-1421) के चैथे पुत्र दुल्हाजी के वंशज दुल्हावत अथवा दुलावत कहलाए जिन्हें मेवाड़ की अपभ्रंश भाषा की वजह से “डुलावत“ भी कहा जाता है।
महाराणा लाखा के आठ पुत्र हुए
आठ कुँवर अखडे़त, बड़म चूण्डो जिणवारी।
अनमि रूघो दुल्हो अनुज, मल त्रहुं खींच्या भाणजा।
राणा लाखा की रानी गागरोन के खींची राजा राव आदलदेजी की पुत्र राव वीरमदेव जी की पुत्री लखमादे खींची(चैहान) जो मेवाड़ की पटरानी थी की कोख से चूण्डा जी, राघवदेव जी, दुल्हा जी ने जन्म लिया था।
1. चूण्डा जी - वंशज चुण्डावत कहलाए। ठिकाने- सलूम्बर, देवगढ़, आमेट, बेंगू, कुराबड़ सहित 100 से अधिक ठिकाने।
2. राघवदेव जी- सिसोदया वंश के पितृदेव हुए राठौड़ों द्वारा छल से मारे गए।
3. अज्जा जी- के पुत्र सांरगदेव के वंशज सांरगदेवोत कहलाए। ठिकाने - कानोड़ , बाठरड़ा
4. दुल्हा जी- वंशज दुलावत (डुलावत) कहलाए। ठिकाने- सामल, भाणपुरा, उमरोद, उमरणा, सिंघाड़ा, दुलावतों का गुड़ा।
5. डूंगर जी- के पुत्र भांडाजी से भांडावत कहलाए।
6. गजसिंह जी - गजसिंघोत कहलाए।
7. लुणाजी - वंशज लुणावत हुए। ठिकाने- मालपुर, दमाणा, कंथारिया खेड़ा।
8. मोकल जी- मेवाड़ के महाराणा बने। सबसे छोटे पुत्र।
9. बडवाजी की पोथी के अनुसार एक पुत्र रूदो जी बताए गए जिनके रूदावत सिसोदया हुए। थोरया घाटा क्षेत्र में।
दुल्हाजी - अपने भ्राता चुण्डाजी के साथ सभी भाइयों सहित माण्डू चले गए। वहा सुल्तान ने उनके सभी भाइयों को जागीर प्रदान की। तथा मेंवाड़ में उथल पुथल मचने पर चुण्डाजी के साथ मेंवाड़ आएं। तथा राव रणमल को मारने में सहयोग किया। तथा मेंवाड़ में सुशासन स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पिताजी के जीवनकाल मे दुल्हाजी ने विभिन्न युद्वों मे शौर्य दिखाया।
ये बड़े साहसी, वीर और पराक्रमी थे। इन्होंने बदनोर के मेंरों को हराने में वीरता दिखाई। भाइयों सहित जहाजपुर, मेरवाड़ा पर अधिकार किया । महाराणा कुम्भा कालीन विभिन्न युद्वों में भाग लेकर बम्बावदा, मांडलगढ़, खाटु, टोडा, जाहजपुर, मंडोर,आमेर, रणथम्भौर, गोड़वाड़ , मालवा और गुजरात पर मेवाड़ की विजय में बहादुरी दिखाई तथा शरीर पर कई घाव झेले।
महाराणा रायमल ने आपको रेंवंत घोड़ा प्रदान किया था
रेमल बख्शियों रेवत चढ़ियों गढ़ मांडू दुल्हो।
आपके कुछ पुत्र मंडोर की रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हुए।
आपने राणा जी के आदेश पर मांडू के सुल्तान खिलजी पर चढ़ाई कर दी। तथा उसके अधीनस्थ क्षेत्र खैराबाद को लूटा तथा सुल्तानी फौज को हरा दिया जिसमें आपके पुत्र दुल्हावत व भतीजे चूण्डावतों ने वीरगति प्राप्त की।
बड़वाजी की पोथी के अनुसार आपको सलूम्बर, भैसरोडगढ़ के पट्टे प्रदान किए गए पर अनन्त आपको महाराणा कुम्भा ने बदनोर की बड़ी जागीर प्रदान कि गई थी। जो जीवन पर्यन्त आपके पास रही थी। जिसे बाद में आपके वंशजो के हाथ से खालसे कर दिया गया था।
दुलावत - आपके वंशजों ने मेवाड़ महाराणाओं की ओर से होने वाले लगभग सभी युद्वों मे भाग लिया तथा दुश्मनों को धूल चटाते हुए वीरगति प्राप्त की जिनकी एवज में दुलावतों को राणाजी की ओर से जागीरें प्राप्त होती रही।ं
जागीरे
1. बदनोर- महाराणा कुम्भा ने दुल्हाजी को प्रदान किया था जो बाद में खालसे हुआ था।
2. कपासन- खानवा की लडाई में वीरता व बलिदान दिखाने पर महाराणा विक्रमादित्य ने प्रदान किया था जो बाद में राणा उदय सिंह की पुत्री जिसके शादी रामशाह तोमर के पुत्र से हुई के हथलेवा में देने से चली गई।
3. भूताला- राव बीकोजी( बीरमदेवजी) को राणा रतन की लड़ाई में भूताला की जागीर प्रदान की गई थी।
4. सामल- जानकारी उपलब्ध नहीं सम्भवत् परबत सिंह जी के पुत्र भाखर सिह दुलावत को मिलां जिसकां महाराणा अमर सिंह जी ने 1608 में पुनः पट्टा प्रदान किया था।
5. दुलावतों का गुड़ा- महाराणा अमर सिहं (द्वितीय) ने देवीदास जी दुलावत को पहाड़ी इलाका प्रदान किया जब उन्होनें लुटेरो को मारकर उनका सिर उदयपुर रावले में पेश किया था। जो कालान्तर में दुलावतो का गुड़ा कहलाया।
6. उमरोद- ठाकुर पृथ्वी सिंह जी दुलावत को महाराणा संग्राम सिंह (द्वितीय) ने बांधनवाड़ा की लड़ाई में शौर्य दिखाने पर उमरोद का पट्टा प्रदान किया था।
7.भाणपुरा- ठाकुर हिम्मत सिंह जी दुलावत को महाराणा राज सिंह ने युद्वों में लड़ने पर भाणपुरा प्रदान किया था
8. उमरणा-ठाकुर अनोप सिंह व उनके भाई मोपत सिहं जी को राणा राज सिंह जी ने उमरणा प्रदान की।
9. सिंघाड़ा- ठाकुर सबल सिंह जी दुलावत को सिंघाड़ा महाराणा जगत सिंह जी ने विक्रम संवत् 1703(सन् 1646) के आस पास प्रदान किया
10. इनके अतिरिक्त दुलावतों को और भी जागीर प्रदान की गई थी। जिनमें बोकाड़ा, ढिकोड़ो का मेवाड़ी ख्यातो में लिखित है
साथ रघुनाथ जी दुलावत को झाडोल के पास पट्टा प्रदान किया था परन्तु उनका वंश किसी लड़ाई में रणखेत रहा।
नोट -- सामल , भानपुरा , उमरोद , सिंघाड़ा , उमरना के ठाकुर मेवाड़ के तृतीय श्रेणी ( गोल ) के जागीरदार थे मेवाड़ महाराणा द्वारा इनको दरबार में बैठने की इजाजत थी।
वंशावली
1. दुल्हाजी- जानकारी उपर उपलब्ध है।
आपके पुत्र पृथ्वीराज जी, चाप जी, रणमल जी, सहसमल जी, भारमल जी, ओपजी , गोपजी जिनमें से सिर्फ चाप सिंह जी जीवित बचे बाकी विभिन्न युद्वों में वीरगति को प्राप्त हुए
शादी प्रथम अमर कंवर जैतमालोत -अबे सिंह की पोती- राम सिंह जी बेटी मारवाड़
दूसरा सायर कंवर चौहाण - रायदासजी की पुत्री
2. राव चाप सिंहजी- विभिन्न युद्वों में लड़े जिससे राणा ने जागीरी गाँव बढ़ा दिये।
3. राव परबत सिंह जी - खानवा (17 मार्च, 1527) में राणा सांगा की ओर से लड़ते हुए मुगलों को मारते हुए रणखेत रहें।
पुत्र बीरमदेव जी (बीकोजी/बाकजी), खेत सिंह जी, भाकर सिंह (सामल पधारे)। इन भाइयों में से किसी ने कपासन की जागीर प्राप्त की थी। जब इन्होंने बहादुरशाह के आक्रमण के बाद वापिस चित्तौड़ को जीतने में मदद की थी। तब राणा विक्रमादित्य ने कपासन की जागीर प्रदान की। खेत सिंह राणा विक्रमादित्य की वार(लड़ाई) में काम आए।
4. राव बीकोजी- महाराणा रतन सिंह जी वार (युद्व) में भूताला का पट्टा प्रदान किया था सन् 1528 में तथा चितौड़ के दूसरे शाके 1568 में वीरगति को प्राप्त हुए।
पुत्र 4.1 हेमराज(खेमराज)
4.2 धालुजी,
4.3 हरिदासजी(इनके वंशजों ने बाद में भाणपुरा, सिंघाड़ा, उमरणा प्राप्त किए।)
गोविन्दासजी , सहोजी, मानसिंह जी ये सभी भाई हल्दीघाटी युद्ध में लड़े तथा मायरा की गुफा में राणा प्रताप के हथियारों की सुरक्षा की तथा उनके वहाँ ठहरने पर पहरेदारी की उनकी सुरक्षा का पूर्ण ध्यान रखा कि क्योंकि ये इलाका इनका जागीरी क्षेत्र था जिससे यह भलीभाँति परिचित थे। इनमें हेमराज जी व हरिदास जी जीवित बचे बाकी गोविन्दास जी, मानसिंह जी , सहोजी महाराणा प्रताप कालीन हल्दीघाटी , दिवेर युद्धों में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
5. ठाकुर हेमराज(खेमराज/क्षेमकरण)
पुत्र कमुजी, पूरणमल, भोपत जी, सुदंरदास जी, सार्दुल जी, कान जी, नारजी इन भाइयों ने राणा अमर सिंह कालीन विभिन्न युद्वों भाग लिया तथा अपने काका हरिदास जी के पुत्र चुतुर्भज(चुत्रावत), कर्णसिंह, रूपसिंहजी के साथ राणा अमर सिंह के अंगरक्षक रहे।
6. ठाकुर कमुजी- बड़वाजी पोथी अनुसार कमुजी ने राणपुर की लड़ाई में वीरगति प्राप्त की। इनके भाई व उनके वशंज भी विभिन्न युद्धों में मारे गए उनका वंश नहीं मिला। कमुजी के साथ सांवत सिंह की पोती जेतमल सोलंकी की बेटी रूप कंवर सती हुए।
पुत्र मुणदासजी (मुणदासोत), किशनदास जी , जसोजी , नाहरखान जी ये सभी राणा जगत सिंह व राणा राजसिंह कालीन युद्वों में लड़े जिसमें मुणदास जी वीरता प्रदर्शन की जिससे वंशज को मुणदासोत कहा गया अन्य भाई सम्भवत वीरगति को प्राप्त हुए।
7. मुणदासजी
पुत्र - गोकुलदास, देवीदास, लक्ष्मणदास जी
8. देवीदास जी - लुटेरो को मारकर सिर उदयपुर रावले में हाजिर किए तब राणा अमर सिहं (द्वितीय) जी स्वयं भूताला पधारे तथा पास के पहाड़ी इलाके प्रदान किया जिसका नाम दुलावतों का गुड़ा रखा था।
पुत्र- सुर सिंहजी (सामल गोद गए), सुजान सिंह जी(खेतपाल का गुड़ा) जुजार जी ( पालेला गुड़ा), भाव सिंह जी( माताजी का खेड़ा)
9. सुर सिंह जी- आप महाराणा अमर सिंह जी (द्वितीय) के समय 800 रेख टका के जागीरदार थे।
पुत्र - नाथू सिंह जी,
गुमान सिंह जी( के पौत्र शिव सिंह मराठो से लड़ा और वीरगति को प्राप्त हुआ तथा उनकी पत्नी जैतमालोत राठौड आगरवा की साथ में सती हुई जिससे आपके द्वारा बसाया गाँव गुमान सिंह जी का गुड़ा कालान्तर में शिव सिंह जी का गुड़ा नाम से प्रसिद्ध हुआ।)
पृथ्वी सिंह जी( बांधनवाड़ा की लड़ाई में रणबाज खाँ के खिलाफ लड़ा तथा उमर खाँ की टुकड़ी पर हमला किया जिससे महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय ने उमरोद गाँव का पट्टा प्रदान किया।)
भोप सिंह जी- दुलावतों का गुड़ा रहे आपका परिवार कालान्तर में गोकड़ा वाला परिवार कहलाया।
दूसरी वंशावली राव बीकोजी(बाकजी/बीरमदेवजी) के पुत्र हरिदास जी के वंशज
1. हरिदास जी
पुत्र - चुतुर्भज( चुत्रावत कहलाए। आपके दो पुत्र मोहकम सिंह जी, व केसरी सिहं जी को 500 - 500 रेख टका की जागीर प्राप्त थी।
कर्णसिंह जी
रूपसिंह जी (रूपसिंघोत कहलाए।)
2. कर्णसिंहजी
पुत्र - सबल सिंह जी, ( आपने महाराणा जगत् सिहं की लड़ाई में सिंघाडा प्राप्त किया तथा आपके वंशज सबलावत दुलावत कहलाए।)
केशर सिंह जी, ( केसर सिंह जी का गुड़ा/ केरिग जी रो गड़ो)
3. केसर सिंह जी
पुत्र - हिम्मत सिंहजी ( महाराणा राज सिंह जी के युद्ध में भाणपुरा का पट्टा प्राप्त हुआ। इनके पुत्र लाल सिंह जी वीरगति को प्राप्त हुए जिससे ये लालसिंघोत दुलावत कहलाए।) तथा आपके वंशज में मुंकुंद सिंह जी दुलावत के साथ उनकी पत्नी कुंपावत राठौड़ सती हुई जिसका स्मारक भाणपुरा के पास बना हुआ है।
मोपत सिहं जी व अनोप सिंह जी ने को महाराणा राज सिहं जी ने उमरणा का पट्टा प्रदान किया था जिसमें अनोप सिंह जी का वंश चला।
महाराणा अमर सिंहजी के विक्रम संवत् 1761 में दुलावत जागीरदारों के नाम ( हुक्म सिंह भाटी कृत मज्झमिका मेवाड़ जागीरदारा री विगत के पृष्ठ संख्या 14 व 16 से प्राप्त नाम
1. दुल्हावत फतेसीघ भावसिंघोत 2000
2. दुल्हावत सुरसींघ देवीदासोत 800
3. दुल्हावत हेमंतसींघ केसरीसिंघोत 500
4. दुल्हावत नाथु सबलावत 1000
5. दुल्हावत मोहकमसींघ चुत्रावत 500
6. दुल्हावत केसरीसिंघ चुत्रावत 500
7. दुल्हावत रिणछोड़दास नइडोत 700
8. दुल्हावत फतेसींघ चोडावत में मंड्यो पृष्ठ संख्या 8 राणावतो की साख में जो शायद पृष्ठ संख्या 13 पर चोडावत फतेसींघ अमरावत 1300 रेख टका जागीरदार
था जो सम्भवत दुल्हावत ही था।
अन्य जानकारी दुलावतो के 6 जागीरदार कुल 5300 रेख टका के थे साथ ही 2 अन्य रिणछोड़दास व फतेसींघ सहित 7300 रेख टका की जागीर दुलावत सरदारो के पास थी।
इनके अतिरिक्त महाराणा भीम सिंह जी कालीन जागीरदारा ंरी सांख बही विक्रम संवत् 1880 (सन् 1823) के समय दुलावत जागीरदार
यह भी मज्झमिका मेवाड़ हुकम सिंह भाटी के पुस्तक पृष्ठ संख्या 68 के अनुसार
1 .गाम सीगाड़ो दुलावत कीरतसिघ 400
2 गाम भाणपुरो दुलावत डुगरसींघ जी 400
3. गाम उमरोणो 250
4. गाम सामल गुढा सुदी (अर्थात सामल गाम दुलावतो का गुड़ा सहित ) ठाकुर राजसींध दुलावत 1300 रेख टका
5. गाम उमरोद राज सिंह जी 100
घुड़सवार व पैदल सैनिक
1. सिघांडा(सींगाड़ो) के अस्वार 2 तथा पैदल सैनिक 3
2. भाणपुरो के अस्वार 2 तथा पैदल सैनिक 3
3. उमरोणो अस्वार 1 तथा पैदल सैनिक 1
4. सामल अस्वार 2 तथा पैदल सैनिक 2
5. दुलावतो का गुड़ा अस्वार 2 तथा पैदल सैनिक 3
6. उमरोद अस्वार 1 तथा एक पैदल सैनिक
ये फौज सन् 1823 के समय की है उससे पूर्व ज्यादा सैनिक रखने पड़ते थे तथा बाद में भी अस्वारों तथा पैदल सैनिक की संख्या बढ़ाई थी।
दुलावतो की उपशाखाएँ
1. देवीदासोत - सामल, उमरोद, दुलावतों का गुडा, शिव सिंह जी का गुड़ा, खेतपाल जी का गुड़ा, माताजी का खेड़ा, कुण्डा, खण्डावली, वीसमा, मकवाणा का गुड़ा तथा बोराणा का गुड़ा ( देवीदास ने लुटेरो का दमन कर उनका सिर राणा अमर सिंह को सौंपा था उनके वंशज देवीदासोत कहलाए।)
2. लालसिंघोत- भाणपुरा का भाइपा, पीपाणा, माल माउन्ट( राणा जी ने 1100 बीघा जमीन जमींदारी में दी।) भाखरतलाव।
और सम्भवत चौकड़ी , नान्दोड़ा, कोदवाडिया, भूरवाड़ा, अबजी का गुड़ा , करमेला, कलामतो का खेड़ा का भाइपा भाणपुरा, या उमरणा का नजदीकी भाईपा है।
3. सबलावत - ठिकाना सिंघाड़ा
4. चुत्रावत तथा रूपसिंघोत सम्भवत सायरा के आस पास गाँवों में जमींदार हुए।
5. भावसिंघोत
6. विजयसिंघोत
7. रूपसिंघोत
8. केसरीसिंघोत - केसर सिंह जी का गुड़ा
इनके अतिरिक्त आमली ठिकाने में रणधीर जी दुलावत के वंशज है
तथा ठिकाना अमरपुरा मेवाड़ (मेजा), तलाव (बम्बोरा), लोडियाणा, माल, पातलपुरा, करमेला , कालियास, कलामतों का खेड़ा में भी दुलावत परिवार मौजूद है।
वर्तमान में सामल, भाणपुरा, उमरोद, सिंघाडा, केसर सिंह जी का गुड़ा, माल माउन्ट, पीपाणा, उमरणा, तथा सायरा के पास के ठिकानो में दुलावत सीसोदिया ने राणावत उपनाम लगााना शुरू कर दिया है। 50 प्रतिशत दुलावत अब राणाावत उपनाम लगाते है तथा 50 प्रतिशत दुलावत उपनाम ही लिखते है
सम्भवत राणाजी के वंशज होने के कारण अन्य सिसोदिया सरदारो की भाँति दुलावत सरदाराने ने राणावत उपनाम लगाना शुरू कर दिया जिससे इनकी पहचान धूमिल होती जा रही है।
दोहे
1. यू केतो लालो आवल दुलावत दाढ़ाल।
जीवतड़ो गढ़ छोड़ दू तो गढ़पतिया ने गाल।
2. चलथमो भा्रत दूलो चबां, कुम्भलगढ़ रे तालखे।
जिन गाम नाम सामल जपै, अजय वंश अहवाल के ||
उपर्युक्त जानकारी में विशेष सहयोग
1. कुंदन सिंह जी दुलावत ठि. दुलावतो का गुड़ा
2. प्रोफेसर डाॅ. मनोहर सिंह जी दुलावत ठि. तलाव (बम्बोरा) द्वारा लिखित दुलावत वंश-सक्षिप्त परिचय का पत्र
3. प्रताप सिहं जी दुलावत ठि. शिव सिंह जी का गुड़ा
4. हुकम सिंह भाटी कृत चुण्डावत वंश प्रकाश तथा मज्झमिका मेवाड़ जागीरदारा री विगत
5. बडवाजी (टोकरा मध्यप्रदेश के)
6 रानीमंगाजी (खेडलिया के राव राजावत)
7. शिवपाल सिंह जी चूण्डावत ठि. भोपजी का खेड़ा
8. हेमेन्द्र सिंह दुलावत ठि. शिव सिंह जी का गुड़ा(सामल)