दिव्या काकरन
| व्यक्तिगत जानकारी | |
|---|---|
| राष्ट्रीयता | भारतीय |
| जन्म | साँचा:br separated entries |
| मृत्यु | साँचा:br separated entries |
| खेल | |
| खेल | कुश्ती |
| कोच | विक्रम कुमार सोनकर |
दिव्या काकरन (जन्मः 8 अक्तूबर 1998) भारतीय फ्रीस्टाइल कुश्ती खिलाड़ी हैं. वो एशियन कुश्ती चैंपियनशिप 2020 के 68 किलो भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीतने वाली देश की पहली महिला हैं।उन्होंने 2017 राष्ट्रमंडल कुश्ती चैंपियनशिप में भी स्वर्ण पदक जीता 2018 में इस पहलवान ने एशियन गेम्स और राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य पदक हासिल किया।[१] उन्हें उनके बेहतरीन प्रदर्शन के लिए 2020 में देश के प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया।
काकरन नोएडा कॉलेज ऑफ़ फिजिकल एजुकेशन से फिजिकल एजुकेशन और स्पोर्ट्स साइंस में स्नातक हैं और भारतीय रेलवे में सीनियर टीटीई के पद पर भी कार्यरत हैं।[२]
व्यक्तिगत जीवन और पृष्ठभूमि
दिव्या काकरन का जन्म उत्तर प्रदेश में मुज़फ़्फ़रनगर के पुरबालियन गाँव में 8 अक्तूबर 1998 को पहलवान पिता सूरजवीर सैन और माँ संयोगिता सैन के घर हुआ था। सैन सीमित संसाधनों की वजह से कुश्ती में गाँव स्तर से ऊपर नहीं जा सके लेकिन उन्होंने बच्चों को आगे बढ़ने में मदद की।[१] उन्होंने अपने बेटे देव को अखाड़े में खुद प्रशिक्षण दिया और बेटी दिव्या के लिए बेहतर सुविधाओं के लिए दिल्ली शिफ़्ट करने का फ़ैसला लिया। गाँव में सुविधाओं की कमी के साथ साथ, कुश्ती केवल पुरुषों का खेल है, जैसी सामाजिक सोच भी प्रचलित थी।[१] युवा पहलवान के रूप में काकरन दिल्ली और आसपास के कुश्ती प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगीं। यहाँ उनके प्रतिद्वंद्वी लड़के ही हुआ करते थे क्योंकि उनके ख़िलाफ़ लड़ने के लिए प्रतियोगिताओं में लड़कियाँ नहीं होती थीं। 2010 में 12 साल की उम्र में दिव्या ने एक लड़के को पछाड़ दिया।[१][३]
संसाधनों की कमी के चलते कुश्ती प्रतियोगिताओं के दौरान सूरज सैन लंगोट बेचा करते, जिसकी सिलाई उनकी पत्नी संयोगिता किया करती थीं। एक बार दिव्या की माँ को अपने गहने गिरवी रखने पड़े क्योंकि दिव्या को राष्ट्रीय खेलों (नैशनल गेम्स) में भाग लेने के लिए एक लाख रुपये की ज़रूरत थी। जब दिव्या ने अपने एक इंटरव्यू में यह बात कही कि वो इस कुश्ती के लिए महज 15 रुपये का ग्लूकोज पीकर उतरी हैं, उसके बाद उनके लिए मदद के कई हाथ बढ़े।[३] दिव्या अपने विचारों को लेकर काफी मुखर हैं। संडे गार्जियन को दिए अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि भारत में आज भी जातिवाद की गहरी जड़े हैं। एक बार उन्होंने मुख्यमंत्री के सामने यह कहा था कि जब खिलाड़ियों की मदद की सबसे अधिक ज़रूरत होती है तो वो उन्हें सरकार की तरफ से नहीं मिलती। तब उन्होंने कहा था कि अगर उन्हें मदद मिली होती तो भारत की झोली में स्वर्ण पदक होता।[४] 29 नवंबर 2020 को दिव्या काकरान कोरोना वायरस पॉजिटिव पाईं गईं थी।[५]
व्यावसायिक जीवन
दिव्या ने 2011 में हरियाणा में आयोजित स्कूल नेशनल गेम्स में पहली बार पदक हासिल किया था। तब उन्होंने कांस्य पदक जीता था। गुरु प्रेमनाथ अखाड़ा में दिव्या को कोच विक्रम कुमार ने कुश्ती सिखानी शुरू की थी।[१] मंगोलिया में 2013 में रजत जीतने के साथ ही दिव्या ने किसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में पहली बार भारत के लिए पदक हासिल किया।[१] काकरान ने 2017 में राष्ट्रीय चैंपियनशिप और ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदकहासिल करने के साथ ही राष्ट्रमंडल कुश्ती प्रतियोगिता में स्वर्ण और एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में रजत पदक हासिल किया।[६] 2018 एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों में वे कांस्य पदक जीतीं।[७] 2020 में दिव्या एशियन कुश्ती चैंपियनशिप के 68 किलो भारवर्ग में स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय महिला कुश्ती खिलाड़ी बनीं।[१]
पुस्कार
भारत सरकार ने दिव्या काकरान को कुश्ती में उनके बेहतरीन प्रदर्शन के लिए 2020 में अर्जुन पुरस्कार से नवाजा।[२]
पदक
| वर्ष | प्रतियोगिता | भारवर्ग | पदक |
| 2020 | एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप | 68 किलो | स्वर्ण |
| 2018 | राष्ट्रमंडल खेल | 68 किलो | कांस्य |
| 2018 | एशियन गेम्स | 68 किलो | कांस्य |
| 2017 | राष्ट्रमंडल कुश्ती चैंपियनशिप | 68 किलो | स्वर्ण |
| 2017 | सीनियर नैशनल चैंपियनशिप | 68 किलो | स्वर्ण |
| 2017 | ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप | 68 किलो | स्वर्ण |
| 2017 | एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप | 68 किलो | रजत |
संदर्भ
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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