दत्तात्रेय विष्णु आप्टे
दत्तात्रेय विष्णु आप्टे (जन्म संo 1880, मृत्यु संo 1943) महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पत्रकार एवं इतिहासकार थे। आपकी प्रारंभिक शिक्षा जमखिंडी में हुई। 1902 में पूना के फर्ग्युसन कालेज से बी. ए. की उपाधि प्राप्त की। राष्ट्रीय आंदोलन के समय आप बंगभंग की घटना से विशेष प्रभावित हुए। इस समय आपने अपने यवतमाल के राष्ट्रीय विद्यालय में अध्यापन का कार्य स्वीकार कर लिया जो आपकी राष्ट्रीय भावना के ही अनुकूल था। 'हरिकिशोर' साप्ताहिक में विचार प्रवर्तक लेख लिखकर आपने जनता में जागृति उत्पन्न करने का प्रयत्न किया। यह पत्र सरकारी दमन नीति के कारण अधिक चल न सका। इसके बाद आप बंबई के दैनिक 'राष्ट्रमत' के संपादकीय विभाग में रहे। इस पत्र के भी शीघ्र ही बंद हो जाने से आपने पुनः अध्यापन का कार्य शुरु किया, इस बार गोवा में। यहीं पर आपने पोर्तुगीज भाषा का अध्ययन किया। प्रथम महायुद्ध के समय वहाँ पर आपके लिए रहना असंभव हो जाने से आप पूना चले आए और मृत्युपर्यंत वहीं रहे।
पूना में आप कुछ दिनों तक 'चित्रमय जगत्' और 'शालापत्रक' के संपादक रहे। असहयोग आंदोलन के समय उक्त पत्रों के व्यवस्थापकीय विभाग से मतभेद हो जाने के कारण आपने त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद आप 'आनंदाश्रम' प्रेस के व्यवस्थापक रहे। इसी समय आपने 'मुधोलच्या राजघराण्या का इतिहास' लिखा1
अपने गुरु इतिहासाचार्य राजवाड़े की तरह आपकी भी राष्ट्रभक्ति ऐतिहासिक चिंतन और दर्शन पर आधारित थी। ऐतिहासिक अन्वेषण का उद्देश्य सत्य का दर्शन हो, ऐसा आप मानते थे। आप कहते थे कि ऐतिहासिक चिंतन का आधार शास्त्रशुद्ध होना चाहिए क्योंकि राष्ट्र की सच्ची संपत्ति वही है। इतिहास का अध्ययन इसी दृष्टि से आपने किया। इसके साथ ही साथ इसी दिशा में प्रयत्नशील अनेक विद्याव्यासंगियों को आपने प्रेरणा दी और उनका पथप्रदर्शन किया।
कृतियाँ
आपके ग्रंथों में इतिहासमंजरी, श्रीरंगमपट्टणची मोहीम, शिवचरित्र प्रदीप, घोरपड्ध्रेण्याचा इतिहास, पत्रसारसंग्रह आदि महत्वपूर्ण हैं। पूना के भारतीय इतिहास संशोधन मंडल ने आपके कार्य की महत्ता को समझकर आपको अपना आजन्म सदस्य बनाया तथा संस्था के उपसभापति के रूप में आपकी नियुक्ति कर आपको गौरवान्वित किया।
इतिहास के अतिरिक्त आप गणित और ज्योतिष में भी विशेष रुचि रखते थे। शिवाजी के समय ज्योतिष से संबंधित शोध कार्यों पर आपने प्रकाश डाला। खरे जंत्री (तालिका) का महत्व इतिहास के लिये आवश्यक बताया तथा करणकौस्तुभ, बीजगणित, लीलावती इत्यादि ग्रंथों का वितरण भी आपने ही किया। भास्कराचार्य के संस्कृत ग्रंथों का टीकासहित सुबोध मराठी अनुवाद आपका ही किया हुआ है।