तुम्बा शिल्प

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तुम्बा शिल्प- बस्तर, छत्तीसगढ़ की जनजातियों के द्वारा लौकी पर गर्म लोहे के चाकू से किये गये पारंपरिक चित्रांकन को तुम्बा शिल्प कहते है।

तुम्बा शिल्प
तुम्बा शिल्प

इतिहास

भारत में कृषि के बाद सबसे ज्यादा आय कला जगत से प्राप्त होती है। भारत मे लगभग ८६ लाख गांव है, जिसके हर गांव मै कोई-ना-कोई शिल्प प्रेक्टिस की जाती है, इनमे से तुम्बा शिल्प छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर जिले के कई गांवो में आदिवासी लोगों द्वारा प्रेक्टिस की जाती है, जो उनकी आम जिन्दगी में अहम भुमिका निभाती है। बस्तर की वनवासी संस्कृति में तुम्बा उनकी जीवन यात्रा का हमसफर है। ऐसा माना जाता है कि तुम्बा (लौकी) जो एक प्रकार की सब्जी या फल होता है, का जन्म अर्फिका में हुआ था। पहले लौकी का इस्तेमाल खाने से ज्यादा बर्तन के रूप में किया जाता था। यह लबें आकार के साथ ही कद्दू की तरह गोल आकार का भी होता है। बडी साइज की लौकी को पेड पर लगभग एक साल तक पक्कने अथवा सुखाने के लिए छोड दिया जाता है, इस दौरान लौकी को छेडा नही जाता, अत: बाद मै उसे तोडकर उसकी धुमिल उपरी परत को लोहे के चाकु की सहायता से छील दिया जाता है और अन्दर की मुलायम सामग्री को मुडे हुए चाकु की सहायता से बाहर निकाल दिया जाता है, क्योंकि यह बहुत पतली होती है जो हटाने की प्रक्रिया के दौरान नष्ट हो सकती है। इसके बाद इसे धूप मे सूखने के लिए रख दिया जाता है, सुखने पर विभिन्न प्रकार की पारम्परिक आकृत्तियां और पैटर्न लौकी की सतह पर गर्म लोहे के चाकू की सहायता से तैयार किये जाते है। ये लोग कभी भी लौकी के प्राकृतिक आकार को नही बदलते है। परन्तु ये लोग लौकी पर गर्म लोहे के चाकू से पारंपरिक चित्रांकन कर उसे एक अदभुत कलाकृति मे बदल देते है। लौकी की सतह पर डिजाइन का काम पूरा हो जाने के बाद लौकी को नरम साबुन एवं पानी से धो कर धूप मे सुखा दिया जाता है, सूखने के बाद वेक्स पाँलिश की जाती है जिससे कलाकृति चमक उठती है।

उत्पाद

  • बर्तन: तुम्बा (लौकी) का प्रयोग पहले बर्तन बनाने मै भी किया जाता था। आज भी भारत देश के कई राज्यों मै तुम्बा से बने बर्तनों का उपयोग किया जाता है, गोल आकार के तुम्बा (लौकी) का प्रयोग आंरभ मे पानी रखने के लिये किया जाता था।[१]
  • वाद्य-यंत्र: वाद्य यंत्र एक प्रकार का वातीवादी यंत्र है, जो आदिवासी लोगों द्वारा तुम्बा (लौकी) पर बनाया जाता है। इसका उपयोग धार्मिक स्थलो एवं कार्यों मै किया जाता है। पंश्चिम बंगाल में बाउल लोक गायक द्वारा तुम्बा (लौकी) से बनी डुगडूगी का प्रयोग बाउल लोक गायकी में किया जाता है।[२]

निबंध