तलवारबाजी

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सन् १९९३ में असिक्रीडा विश्व चम्पियन प्रतियोगिता का दृष्य

पहले जब तलवार से लड़ाई हुआ करती थी तब सभी योद्धाओं में तलवार से लड़ सकने की योग्यता आवश्यक थी। अब तलवार की नकली लड़ाई हो रही है जो भारत में मुहर्रम आदि त्योहारों पर दिखाई पड़ती है, परंतु विदेशों में यह नकली लड़ाई भी बढ़िया खेल के रूप में परिवर्तित हो गई है, जिसे अंग्रेजी में फ़ेसिंग कहते हैं और हिन्दी में असिक्रीडा कह सकते हैं।

यह शब्द वस्तुत: अंग्रेजी "डिफेंस" से निकला है, जिसका अर्थ है रक्षा। पहले दो व्यक्तियों में गहरा मनमुटाव हो जाने पर न्याय के लिए वे इस विचार से तलवार से लड़ पड़ते थे कि ईश्वर उसकी रक्षा करेगा जिसके पक्ष में धर्म है। इस प्रकार का द्वंद्वयुद्ध (डुएल) तभी समाप्त होता था जब एक को घातक चोट लग जाती थी। परंतु प्राय: सभी देशों की सरकारों ने द्वंद्वयुद्ध को दंडनीय घोषित कर दिया। इसलिए फ़ेसिंग में लड़ने की रीतियाँ तो वे ही रह गईं जो द्वंद्वयुद्ध में प्रयुक्त होती थीं, परंतु अब प्रतिद्वंद्वी को असि (तलवार) से छू भर देना पर्याप्त समझा जाता है। प्रतिद्वंद्वी को असि से छू दिया जाए और स्वयं उसकी असि से बचा जाए, फ़ेसिंग का कुल खेल इतना ही है। इन दिनों भी फ़ेसिंग बहुत अच्छा खेल समझा जाता है और ओलम्पिक खेलों में (उसे देखें) फ़ेसिंग प्रतियोगिता अवश्य होती है।

प्रकार

फ़ेसिंग में तीन तरह के यंत्रों का प्रयोग होता है। प्रत्येक की प्रतिद्वंद्विता अलग-अलग होती है और इनसे खेलने का ढंग भी बहु कुछ भिन्न होता है। प्रत्येक शस्त्र के लिए अलग शिक्षा लेनी पड़ती है और अभ्यास करना पड़ता है। इन यंत्रों के नाम हैं फ़्वायल (फ़ायल), एपे (epee) और सेबर।

फ़्वायल, किरच की तरह का यंत्र है जिसका फल पतला, लचीला और 34 इंच लंबा होता है। कुल तौल नौ छटांक होती है। यह कोंचने का यंत्र है, परंतु प्रतियोगिताओं में नोंक पर बटन लगा दिया जाता है, जिसमें प्रतिद्वंद्वी घायल न हो। खेल में चकमा देना (निशाना कहीं और का लगाना तथा मारना कहीं और), विद्युद्गति से अचानक मारना, बचाव और प्रतयुत्तर (रिपाँचस्ट, ऐसी चाल कि प्रतिद्वंद्वी का वार खाली जाए और अपना उसे लग जाए) ये ही विशेष दांव हैं। इस खेल में बड़ी फुरती और हाथ पैर का ठीक-ठीक साथ चलाना इन्हीं दोनों की विशेष आवश्यकता रहती है; बल की नहीं। इसलिए इस खेल में स्त्रियाँ भी मर्दों को हराती देखी गई हैं। फ़्वायल की नोक प्रतिद्वंद्वी को चौचक लगनी चाहिए। केवल धड़ पर चोट की जा सकती है। पाँच बार छू जाने पर व्यक्ति हार जाता है (स्त्रियों की प्रतियोगिता में चार बार पर्याप्त है)।

एपे (ए ह्रस्व, पे दीर्घ) तिकोना होता है, फ़्वायल से भारी होता है और इसका मुष्टिकासरंक्षक बड़ा होता है। इसकी नोकवाले बटन पर लाल रंग में डुबाई हुई मोम की कीलें लगी रहती हैं जिनके लगते ही कपड़ा रंग जाता है। इससे निर्णायकों को सुगमता होती है। प्रतिद्वंद्वियों का श्वेत वस्त्र धारण करना अनिवार्य होता है। अब बहुधा एपे में विद्युत् तार लगा रहता है जिससे प्रतिद्वंद्वी के छू जाने पर घंटी बजती है और बत्ती जलती है; धड़, हाथ, पैर, सिर कहीं भी चोट की जा सकती है। तीन बार चोट खाने पर व्यक्ति हार जाता है।

सेबर तलवार की तरह होता है। इससे कोंचते भी हैं, काटते भी हैं। यह फ़्वायल से थोड़ा ही अधिक भारी होता है। इससे सिर, भुजाओं और धड़ पर चोट धड़ पर चोट की जा सकती है। जो व्यक्ति पाँच बार प्रतिद्वंद्वी को पहले मार दे वह जीतता है, चाहे कोंचकर मारे, चाहे काटने की चाल से। इसका खेल अधिक दर्शनीय होता है। चौकन्ना खड़ा होना यह सेबर की लड़ाई है। दाहिनी ओर के प्रतिद्वंद्वी ने अपने सेबर का प्रयोग करके असपने को बचाना चाहा, परंतु बचा न सका। साफ बचा! प्रत्युत्तर बाई ओर के प्रतिद्वंद्वी ने अपने बाईं ओर के खिलाड़ी ने अपने को बचा तो लिया, परंतु प्रत्यु- को बचा ही नहीं लिया, बचाने त्तर न दे सका के साथ-साथ प्रतिद्वंद्वी को मार भी दिया।

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