तन्त्रयुक्ति
तंत्रयुक्ति (६०० ईसा पूर्व) रचित एक भारतीय ग्रन्थ है जिसमें परिषदों एवं सभाओं में शास्त्रार्थ (debate) करने की विधि वर्णित है। वस्तुतः तंत्रयुक्ति हेतुविद्या (logic) का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। इसका उल्लेख चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता, अर्थशास्त्र ग्रन्थ आदि में भी मिलता है। किन्तु इसका सर्वाधिक उपयोग न्यायसूत्र एवं उसके भाष्यों में हुआ है। सुश्रुतसंहिता के उत्तरतंत्र में कहा गया है कि युक्तितंत्र की सहायता से कोई अपनी बात मनवा सकता है और विरोधी के तर्क को गलत सिद्ध कर सकता है।
तन्त्रयुक्ति एक उपकरण है जो किसी ग्रन्थ की रचना करते समय अत्यन्त उपयोगी होता है। निम्नलिखित श्लोक तन्त्रयुक्ति के ज्ञान का महत्व प्रतिपादित करता है-
- अधीयानोऽपि तन्त्राणि तन्त्रयुक्त्यविचक्षणः।
- नाधिगच्छति तन्त्रार्थमर्थं भाग्यक्षये यथा॥ (सर्वाङसुन्दरा पृष्ट ९२)
- (अर्थ : जिस प्रकार भाग्य के क्षय होने पर व्यक्ति को अर्थ (धन) की प्राप्ति नहीं होती है, उसी प्रकार यदि किसी ने तन्त्र (शास्त्र) का अध्ययन किया है किन्तु वह तन्त्रयुक्ति का उपयोग करना नहीं जानता तो वह शास्त्र का अर्थ नहीं समझ पाता है।)
चरकसंहिता में ३६ तंत्रयुक्तियाँ गिनाई गयीं हैं।[१]
- (१) अधिकरण (२) योग (३) हेत्वार्थ (४) पदार्थ (५) प्रदेश (६) उद्देश (७) निर्देश (८) वाक्यशेष
- (९) प्रयोजन (१०) उपदेश (११) अपदेश (१२) अतिदेश (१३) अर्थापत्ति (१४) निर्णय (१५) प्रसंग (१६) एकान्त
- (१७) नैकान्ता (१८) अपवर्ग (१९) विपर्यय (२०) पूर्वपक्ष (२१) विधान (२२) अनुमत (२३) व्याख्यान (२४) संशय
- (२५) अतीतावेक्षा (२६) अनागतावेक्षण (२७) स्वसंज्ञा (२८) उह्य (२९) समुच्चय (३०) निर्दर्शन (३१) निर्वचन (३२) नियोग
- (३३) विकल्पन (३४) प्रत्युत्सार (३५) उद्धार (३६) सम्भव
अष्टांगहृदय में भी इन ३६ तन्त्रयुक्तियों को गिनाया गया है। सुश्रुतसंहिता के ६५वें अध्याय में ३२ तन्तयुक्तियाँ गिनायी गयीं हैं। अर्थशास्त्र के १५वें अधिकरण में चाणक्य ने ३२ तन्त्रयुक्तियाँ गिनायीं हैं। वे कहते हैं कि उनके इस ग्रन्थ को समझने के लिए ये ३२ तन्त्रयुक्तियाँ बहुत उपयोगी हैं। कौटिल्य द्वारा गिनायी गयीं ३२ तन्त्रयुक्तियाँ अधिकांशतः सुश्रुत द्वारा गिनाए गये ३२ तन्त्रयुक्तियों से बहुत मिलतीं हैं।
इन्हें भी देखें
- न्यायसूत्र
- आन्वीक्षिकी (अर्थात् 'अन्वेषण विज्ञान')
- वाद-विवाद
- शास्त्रार्थ
- न्याय (दृष्टांत वाक्य)
बाहरी कड़ियाँ
- वैद्यनाथ नीलमेघ कृत तंत्रयुक्तिविचारः
- Computational Analysis of Tantrayukti
- The Role of Tantrayuktis in Indian Research Methodology
सन्दर्भ
- ↑ चरकसंहिता ८.१२.४१--४४
तत्राधिकरणं योगो हेत्वर्थोऽर्थः पदस्य च ४१
प्रदेशोद्देशनिर्देशवाक्यशेषाः प्रयोजनम्
उपदेशापदेशातिदेशार्थापत्तिनिर्णयाः ४२
प्रसङ्गैकान्तनैकान्ताः सापवर्गो विपर्ययः
पूर्वपक्षविधानानुमतव्याख्यानसंशयाः ४३
अतीतानागतावेक्षास्वसंज्ञोह्यसमुच्चयाः
निदर्शनं निर्वर्चनं संनियोगो विकल्पनम् ४४
प्रत्युत्सारस्तथोद्धारः संभवस्तन्त्रयुक्तयः