ढोला लोककाव्य
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
ढोला राजस्थान, मालवा, ब्रज और उत्तर भारतीय हिन्दी भाषा-भाषी क्षेत्र का लोककाव्य है। वर्षा ऋतु में प्रायः चिकाड़ा पर इसे गाया जाता है। ढोलक और मंजीरे इसके साथ में बजाये जाते हैं। ढोला की कथा राजस्थान के ढोरा-मारू/ढोला-मारू पर आधारित है जिसमें युवा होने पर ढोला अपनी बालपन में ब्याही मरवण को अनेक कठिनाइयों के पश्चात प्राप्त करता है। ढोला मारू रा दूहा ग्रन्थ नागरी प्रचारिणी सभा काशी से प्रकाशित हुआ है।