डॉकयार्ड
शिपयार्ड (shipyard) या डॉकयार्ड (dockyard) उस स्थान को कहते हैं जहाँ जलयानों का निर्माण एवं मरम्मत की जाती है। ये जलयान विविध उपयोग के हो सकते हैं जैसे याच (yachts), सैनिक जलपोत (military vessels), क्रूस लाइनर (cruise liners) या अन्य कार्गो या यात्री जहाज। प्रायः शिपयार्ड में मरम्मत और ठहराने का काम होता है जबकि शिपयार्ड में प्रायः जहाज के निर्माण का काम अधिक होता है।
गोलाबारूद, ईंधन और माल की पूर्ति, कर्मिकों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं की व्यवस्था और जहाजों की मरम्मत करने के लिए प्रत्येक नौसेना के वास्ते स्थायी डॉकयार्ड तथा अड्डों का होना परमावश्यक है। व्यापारी बेड़ों के लिए भी ऐसे अड्डे आवश्यक हैं, यद्यपि उन्हें विश्व के सभी बड़े व्यापारी बंदरगाह और मरम्मती अड्डों की सेवा उपलब्ध हो सकती है। किंतु आधुनिक अर्थों में डॉकयार्ड रणपोतों का निर्माण और देखभाल करनेवाली राष्ट्रीय संस्था है। डॉकयार्ड में रणपोत का निर्माण, साजसज्जा और उसे डॉक में ले जाने की सारी सुविधाएँ होती हैं। यहाँ गोलाबारूद और शस्त्रास्त्रों के निर्माण तथा उनकी पूर्ति की ओर कर्मिकों के लिए बिसातबान, आहार, प्रशिक्षण, चिकित्सा आदि की व्यवस्थाएँ होती हैं। पूर्ण रूप से सुसज्जित डॉकयार्ड कम ही होते हैं और उनमें भी कुछ ही डॉकों में रणपोतों का वास्तविक निर्माण होता है। प्राय: सभी राजकीय डॉकयार्ड नए जहाजों को सुसज्जित करने, युद्धपोतों को युद्ध के लिए तैयार करने तथा जहाजी बेड़ों की देखभाल का काम करते हैं। प्राय: सभी देशों में तोप, कवच, इंजन, बॉयलर आदि का निर्माण व्यवसाय संघ करते हैं और अंतिम अवस्था तक जहाज का निर्माण कर समापन के लिए उसे सरकारी संस्थाओं को दे देते हैं। कुछ डॉकयार्डों में जहाज के निर्माण की कोई विशेष सुविधा नहीं रहती, पर उनमें बड़े-बड़े पोतों की देखभाल के लिए पूरी व्यवस्था रहती है। कुछ छोटे डॉकयार्ड साधारण मरम्मत, गोलाबारूद, इर्धंन और भंडार की पूर्ति करते हैं। ये वस्तुत: इर्धंन प्रदान करनेवाले सुदृढ़ नौसैनिक अड्डे होते हैं।
सभी राजकीय डॉकयार्ड नौसैनिक अड्डे होते हैं, किंतु सभी नौसैनिक अड्डे डॉकयार्ड नहीं होते। आधुनिक बेड़ों के लिए अड्डों का होना आवश्यक है, जहाँ से वह अपना कार्य कर सकें। निरापद बंदरगाह अड्डे की प्राथमिक आवश्यकता है, जहाँ जहाज का सहायक जलयान पहुँचकर बिना किसी छेड़छाड़ के इर्धंन, गोलाबारूद और आवश्यक भंडार का पुनर्भरण कर सके। वहाँ श्रमिकों के विश्राम और मनोरंजन की व्यवस्था भी रहनी चाहिए। डॉकयार्ड या अड्डे को पनडुब्बी, तारपीडो और हवाई आक्रमणों से बचाने के लिए पर्याप्त रक्षासेनाओं की स्थायी व्यवस्था रहती है। समुद्री प्रभुता की रक्षा के लिए नियुक्त बेड़े की क्षमता पर ही डॉक या अड्डे की सुरक्षा निर्भर करती है।
ग्रेट ब्रिटेन और राष्ट्रमंडल
इंग्लैंड के डॉकयार्ड और अस्त्रागार का इतिहास १६वीं शती से प्रारंभ होता है। प्रारंभ में बेड़े में कुछ ही राजकीय और कुछ सागरपत्तन नगरों के जहाज होते थे। ये नगर ही रणपोतों की देखभाल के लिए उत्तरदायी होते थे। सिंक (Cinque) बंदरगाह में १३वीं शती में ही डॉकयार्ड से मिलती जुलती व्यवस्था के होने का प्रमाण मिलता है। १२३८ ई० में जहाजों की अभिरक्षा के लिए विंचेलसी (Winchelsea) पर भवन बना। १२४३ ई० में इसे बड़ा बनाया गया और १० वर्ष बाद पुन: इसकी मरम्मत की गई। बड़े रणपोतों का निर्माण प्रारंभ होने पर साउथैप्टन और पोर्टस्मथ दोनों स्थानों पर जहाज और भंडार के लिए गोदाम बने और ब्रिटेन की समुद्री शक्ति के संस्थापक हेनरी सप्तम ने १४९५ ई० में पोर्टस्मथ में सूखे डॉकयार्ड का निर्माण कराया। १५०९ ई० में हेनरी अष्टम ने वुलिच (Woolwich) और डेटफर्ड (Deptford) में जमीन खरीदी, जिस पर पहले राजकीय डॉकयार्ड का निर्माण प्रारंभ हुआ। १५३० ई० में हेनरी सप्तम के सूखे डॉकयार्ड के आसपास पोर्टस्मथ में राजकीय डॉकयार्ड स्थापित हुआ। एलिज़ाबेथ प्रथम ने चैटैम (Chatham) और शीरनेस (Sheerness) में डॉकयार्ड चालू किया, जिसे चार्ल्स द्वितीय ने परिवर्धित किया। १६८९ ई० में प्लिमथ (Plymouth) डॉकयार्ड राजकीय संपत्ति हो गया। १८१४ ई० में पेंब्रोक का छोटा डॉकयार्ड स्थापित हुआ। हेनरी अष्टृम द्वारा १५४६ ई० में स्थापित नैवी बोर्ड राजकीय डॉकयार्डों का प्रशासन १८३२ ई० तक करता रहा। नौअधिकरण (admiralty) पर केवल समुद्री बेड़े का उत्तरदायित्व था। नौसेना के इस दोहरे नियंत्रण में कई दोष थे। भ्रष्टाचार, अपव्यय और अकुशलता से कई बार इंग्लैंड घोर राष्ट्रीय विपत्ति के किनारे पहुँच गया था। १८३२ ई० में दोनों के एकीकरण के बाद आधुनिक स्थिति आई। वाष्पयुग के आते-आते डॉकयार्डों में धीरे-धीरे अनेक परिवर्तन हुए। पोर्टलैंड, डोवर और जिब्रॉल्टर में रक्षात्मक बंदरगाह चालू हुए और जिब्रॉल्टर बंदरगाह को बड़ा बनाया गया। डेवन बंदरगाह में विस्तारण और हांगकांग तथा दक्षिण अफ्रीका के साइमंज़टाऊन (Simonstown) में नए कार्यों का प्रारंभ हुआ।
२०वीं शती के प्रारंभकाल में उत्तर सागर में जर्मनों के बढ़ते हुए संकट को रोकने के लिए, सुदूर उत्तर में पूर्वी तट पर, नया अड्डा बनाया गया, जहाँ पहुँचना चैटेम की अपेक्षा सरल था। १९०३ ई० में रोसाइथ (Rosyth) में नया अड्डा स्वीकृत हुआ, जो आगे चलकर प्रथम विश्वयुद्ध में वरदान सिद्ध हुआ। १९३९ ई० में इसका बड़ी श्घ्रीाता से अधिक विस्तार हुआ।
प्रथम विश्वयुद्ध में इंग्लैंड के अधीन रोसाइथ, पोर्टस्मथ, प्लिमथ, चैटेम और मॉल्टा अड्डे थे, जिनकी छोटी शाखाएँ शीरनेस, पोर्टलैंड, हॉलबोलिन (Haulbowline) और पेंब्रोक में थीं। जिब्रॉल्टर-हांगकांग, बरम्यूडा, साइमंज़टाउन और सिडनी के बड़े तथा कोलबों, वेहाइवे (चीन) और बंबई तथा कलकत्ते के छोटे अड्डे भी युद्ध में सहायक हुए।
द्वितीय महायुद्ध छिड़ जाने पर वेहाइवे चीन के और हॉलबोलिन आयरलैंड के अधिकार में चला गया। शेष सब अड्डे अंग्रेज़ों के अधीन रहे। जापान के आक्रमण को रोकने के लिए सिंगापुर में एक विशाल डॉकयार्ड स्थापित हुआ, किंतु वह शीघ्र ही हाथ से निकल गया। युद्धकाल में स्कॉटलैंड, मिस्त्र, पूर्वी और दक्षिण अफ्रीका, लंका और आस्ट्रेलिया में नए अड्डों का निर्माण हुआ तथा बंबई, कलकत्ता, विशाखपटणम्, केपटाउन और मैडागैस्कर के अड्डों में अधिक सुविधाओं की व्यवस्था हुई।
द्वितीय युद्धकाल में प्रशांत महासागर में तैरते अड्डों की स्थापना से अड्डों में नया विकास हुआ, जिससे बेड़ा महीनों तक समुद्र में रह सकता है। ऐसे अड्डों में तैरती कर्मशाला (workshop), भंडार, सब प्रकार के वाहक, छोटे जलयानों के लिए डॉक का काम करनेवाले लघु जहाज, स्नेहकयान, सुख सुविधा के सामानवाले जहाज, जिनमें सुराशालाएँ भी सम्मिलित हैं, आदि होते थे। युद्धसमाप्ति के बाद अनेक अस्थायी, अड्डे बंद हो गए, पर डोमिनियन नौसेना और राष्ट्रमंडल के अड्डों के विकास के लिए नए विकास प्रयास चलते रहे।
१९४५ ई० में कैनाडा ने अपने सभी अस्थायी अड्डे बंद कर दिए, केवल सेंट जॉन्ज़ स्थित अड्डा जहाज और वायुयानवाहकों के लिए उपलब्ध था। तीन प्रमुख अड्डे तो वास्तव में भरे हुए रहते थे। न्यूज़ीलैंड के ऑक्लैंड डॉकयार्ड को बड़ा करके आधुनिकतम किस्म के क्रूज़र जैसे बड़े जहाजों के योग्य बनाया गया। सिडनी डॉकयार्ड को आस्ट्रेलिया स्क्वॉड्रन का प्रधान अड्डा बनाया गया। ब्रिजवॉन बिना डॉकयार्ड का छोटा अड्डा रहा पर एडमिरैल्टी द्वीप का मानूस अड्डा १ जनवरी १९५० ई० से आस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय अड्डे की तरह कार्य करने लगा। १९४४ ई० में इस टापू से जापानियों के निष्कासन के बाद यह अमरीका के ७वें बेड़े के सैनिक अड्डे में परिणत हो गया और यहाँ दो विशाल तैरते डॉक, गोदाम, मशीनशॉप और निवासस्थल स्थापित हुए। जापानियों से सिंगापुर छीन लेने के बाद से उसके सुधार का क्रम चलता रहा है।
डॉकयार्ड प्रशासन
ब्रिटेन का डॉकयार्ड प्रशासन पूर्ण रूप से एक सा है। सभी अधिकार नौसेना नियंत्रक में निहित हैं। नौसेना निर्माण निदेशक (जो सभी जहाजों की अभिकल्पना करते हैं) तथा इंजीनियरी, आयुध, तारपीडो, विद्युत् और अन्य प्राविधिक विभाग (जो अपनी अपनी विभागीय वस्तुओं की अभिकल्पना करते हैं) नियंत्रक के ही अधीन हैं। नौअधिकरण से अनुदेश निकलते हैं और डॉकयार्ड के अधिकारी उन्हें सविस्तार कार्यान्वित करते हैं। व्यवहारत: अधिकारों का पर्याप्त विकेंद्रीकरण है।
प्रत्येक डॉकयार्ड ऐडमिरल या कप्तान अधीक्षक के अधीन रहता है। उनका सहायक अधिकारी पत्तन में जहाजों के चलाने और घाट लगाने का उत्तरदायी होता है। निर्माण-प्रबंधक, नौ सेना भांडार अधिकारी, विद्युत् इंजीनियर, सिविल इंजीनियर, खजांची, आय-व्यय लेखा अधिकारी और चिकित्सा अधिकारी, डॉकयार्ड के अन्य मुख्य अधिकारी हैं। तोप और तारपीडोकी प्राविधिक बातों का पर्यवेक्षण स्थानीय गनरी स्कूल के कप्तान करते हैं। विभिन्न अधिकारियों में परस्पर व्यक्तिगत संपर्क होते रहने के कारण कार्य का परिचालन सुचारु रूप से होता है और कार्य प्रगति करता रहता है।
फ्रांस -- संपूर्ण फ्रांसीसी तट को तीन विभागों में बाँटा गया है। शेयरवूर्ग, ्व्रोस्ट और टुलॉन बंदरगाहों पर इसके प्रधान कार्यालय हैं। इनमें यार्डों को सुसज्जित किया जाता है और उनका निर्माण होता है।
जर्मनी -- २०वीं शती के प्रारंभ में विलहेल्म्स हाफेन और कील में दो बड़े और आधुनिक डॉकयार्डों का निर्माण हुआ। कुक्सहाफेन, ब्रेमरहावेन, फ्लेंसबूर्क, स्वाइनमंड, डैनज़िग आदि स्थानों पर छोटे से संस्थापन थे। विश्वयुद्ध में बमबारी से इनकी भारी क्षति हुई।
इटली -- १९३९ ई० में इटली आधुनिक डॉकयार्डों से सज्जित था, जिनमें स्पेज़िया प्रधान था। नेपुल्ज़ में और भी डॉक थे तथा जहाज निर्माण का कार्य कास्टेल्लांमारे, टरांटों और वेनिस में होता था।
जापान -- १८६५ ई० में योकोसूका में पहला डॉकयार्ड बन जाने के बाद प्रगति का क्रम तेजी से चला। प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हो जाने पर आधुनिक जहाजों के निर्माण की सुविधाएँ उपलब्ध थीं। छोटे अड्डों के अतिरिक्त सासेबो और माइजुरू में दो नए डॉकयार्ड बने।
रूस -- प्रधान डॉकयार्ड लेनिनग्रैड और निकोलेयर में हैं, आर्केजिल, क्रोंस्टाट, सेवास्टोपॉल, ओडेसा और ब्लैडिवॉस्टॉक में छोटे संस्थापन हैं।
स्पेन -- २०वीं शती के मध्यकाल में फेरॉल, कार्टाजीना और काडिज़ के पुराने डॉकयार्डों के सुधार में विशेष प्रगति नहीं हुई, किंतु बेड़े का आधुनिकीकरण स्थिरता से हो रहा था।
अमरीका -- १७९८ ई० में नौसेना विभाग स्थापित होने के तीन वर्षों के अंदर पोर्टस्मथ, चार्ल्ज़टाउन, ब्रुकलिन, फिलाडेल्फ़िया, वाशिंगटन और गैसपोर्ट आदि छ: स्थानों में तटीय सैनिक सुविधाओं की स्थापना हो गई। नॉरफॉक यार्ड ब्रिटिशों ने गृहयुद्ध के पूर्व ही निर्मित कर दिया था। १८२६ ई० पेंसाकोला में एक और यार्ड बन गया। कैलिफोर्निया का समावेश होने पर १८५४ ई० में व्रोमरटन में और १९०१ ई० में चार्ल्ज़टन में यार्ड बने। एक सौ वर्ष की अवधि में डॉकयार्डों में जो उन्नति हुई वह नौसेना की उन्नति देखते हुए अपर्याप्त थी। इस अवधि में नौसेना फ्रगेट और छोटे-छोटे जहाजों के रूप से मुक्त होकर अनेक प्रकार के छोटे-बड़े, युद्धक रणपोत और उनके सहायकों से जटिल संगठन के रूप में प्रस्तुत हो चुकी थी। नौसेना-विस्तारण-योजना-काल (१९३८ ई०) में एक ही डॉकयार्ड अभिनव प्रकार के जहाजों के लिए उपलब्ध था।
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद सर्वप्रथम पनामा नहर कटिबंध और हवाई द्वीप में तीन बड़े विमान अड्डों की संस्तुति हुई, जिनके परिचालन अड्डे वेस्टइंडीज़, ऐलास्का और प्रशांत द्वीप के क्षेत्र में नहीं पड़ते थे। पानी के जहाज और विमानों की संख्या बढ़ने पर नए पनडुब्बी अड्डे और अनेक परिवर्तन आवश्यक हो गए।
भारत -- भारत का नाविक इतिहास वैदिक युग से प्रारंभ होता है। जातक कथाओं में साहसपूर्ण समुद्रयात्रा के अनेक रोचक प्रसंगों का विवरण मिलता है। पुराणों और महाकाव्यों में वर्णित अष्टांग सेना का जहाज एक अंग था। १६५७ ई० में शिवाजी ने मराठा नौसेना की स्थापना की। इसे कान्होजी ने विकसित किया और पुर्तगालियों पर अपनी नौसैनिक शक्ति की धाक जमा दी।
सूरत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना के बाद भारत में आधुनिक नौसेना की स्थापना हुई। प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारतीय नौसेना में कुछ ही जहाज थे। उन दिनों ब्रिटेन नौसैनिक शक्ति में सर्वश्रेष्ठ था और भारत की रक्षा का दायित्व वहन करता था। अत: भारत का नौबल बढ़ाना आवश्यक समझा गया। कराची, बंबई, विशाखपटणम तथा कलकत्ता द्वितीय महायुद्ध के समय प्रधान भारतीय अड्डे थे। १९४१ ई० में भारतीय डॉकयार्ड में निर्मित पहला जहाज पानी में उतारा गया। नौसेना के जहाज आस्ट्रेलिया के डॉकयार्ड में बनते थे, अत: डॉकयाडों की विशेष उन्नति नहीं हुई। १९४७ ई० में विभाजन के फलस्वरूप एक तिहाई नौसेना और तीन प्रधान नौसैनिक संस्थापन पाकिस्तान के अधिकार में चले गए। आजकल विशाखपटणम, कोचीन के अड्डे और बंबई के डॉकयार्ड की प्रगति तेजी से हो रही है। कांडला बंदरगाह बन जाने से प्रगति का पथ और भी प्रशस्त हो गया है।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- Drassanes at Barcelona - The Drassanes shipyard in Barcelona, with some original buildings dating to the 13th century.
- India based shipyards - India based shipyard.
- Sea Your History - Website from the Royal Naval Museum - Discover detailed information about Portsmouth Dockyard and the Royal Navy in the 20th Century.
- U.S. Shipyards - extensive collection of information about U. S. shipyards, including over 500 pages of U. S. shipyard construction records
- Trading Places - interactive history of European dockyards
- Shipyards United States - from GlobalSecurity.org
- Gold Coast City Marina & Shipyard