डीएनए रिपेयर

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डीएनए टूटने के परिणामस्वरूप कई टूटे हुए गुणसूत्र

डीएनए रिपेयर एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत विशिष्ट कोशिकाएं डीएनए के क्षति ग्रस्त भाग की पहचान करती है और उसकी मरम्मत करती है ।[१] मानव कोशिकाओं को विकिरण, उपापचयी क्रियाओं और अन्य बाहरी वातावरण के कारण हानि पहुंचती है । परिणामस्वरूप प्रति कोशिका दस लाख आणविक स्तर पर घाव हो जाते हैं । इसके कारण डीएनए की संरचना को हानि पहुंचती है । इससे कोशिका की क्षमता कम या बदल सकती है । कुछ घाव हानिकारक उत्परिवर्तन को प्रेरित करते हैं ये समसूत्री विभाजन के बाद संतति को प्रभावित करते हैं । जब सामान्य मरम्मत की प्रक्रिया विफल हो जाती है तथा जब सेलुलर एपोप्टोसिस नहीं होता है तो इससे अपूरणीय डीएनए क्षति हो सकती है । [२][३] बाद में कुछ परिस्थितियों में यह कैंसर का रूप ले सकता है ।

डीएनए की मरम्मत की दर कोशिका के प्रकार, कोशिका की संरचना और बाह्य वातावरण सहित कई कारकों पर निर्भर करती है । एक कोशिका जिसमें बड़ी मात्रा में क्षतिग्रस्त डीएनए उपस्थित है या वह कोशिका जो प्रभावी ढंग से डीएनए की मरम्मत नहीं करती, निम्न तीन स्थितियों में प्रवेश कर सकती है-

  1. निष्क्रियता की अपरिवर्तनीय अवस्था, जिसे सेनेसीनेस के रूप में जाना जाता है ।
  2. कोशिका आत्महत्या, जिसे एपोप्टोसिस या प्रोग्राम्ड सेल डेथ भी कहा जाता है ।
  3. अनियमित कोशिका विभाजन जिसे कैंसर कहते हैं ।

किसी कोशिका की डीएनए मरम्मत की क्षमता उसके जीनोम की अखंडता और उस जीव की सामान्य कार्यक्षमता के लिए महत्वपूर्ण है । प्रारम्भिक अवस्था में कुछ जीन ऐसे होते हैं जो डीएनए की मरम्मत और सुरक्षा करने का कार्य करते हैं ।[४]

२०१५ में डीएनए की मरम्मत के आणविक तंत्र पर कार्य करने पर रसायन विज्ञान में टॉमस लिंडाहल, पॉल मोडरिच और अजीज संसार को नोबल पुरस्कार मिला ।[५][६]

डीएनए क्षति

कोशिका के अंदर पर्यावरणीय कारकों और सामान्य उपापचयी क्रियाओं के कारण डीएनए की क्षति, प्रति दिन प्रति कोशिका 10,000 से 1,000,000 आणविक घावों की दर से होती है । इससे जीनोम के लगभग ०.०००१६५ % भाग को ही क्षति पहुंचती है । किंतु ज्यादा क्षति होने से उत्परिवर्तन हो सकता है तथा कोशिका की कार्य क्षमता भी प्रभावित होती है ।

डीएनए क्षति का अधिकांश हिस्सा डबल हेलिक्स की प्राथमिक संरचना को प्रभावित करता है अर्थात् आधार स्वयं रासायनिक रूप से संशोधित होते हैं । प्रोटीन और आरएनए के विपरीत सामान्यतः डीएनए में तृतीयक संरचना का अभाव होता है और इसलिए उस स्तर पर क्षति या गड़बड़ी नहीं होती है । पैकेजिंग प्रोटीन के आसपास सुपरकोल्ड और घाव जिसे हिस्टोन कहा जाता है और दोनों सरंचनाएं घावों की चपेट में आ जाती है ।

स्त्रोत

डीएनए क्षति को दो मुख्य प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. सामान्य उपापचय उपोत्पाद (सहज उत्परिवर्तन) से उत्पन्न ऑक्सीजन द्वारा क्षति (विशेष रूप से ऑक्सीडेटिव डीमिनेशन की प्रक्रिया)
    1. प्रतिकृति त्रुटियां भी शामिल
  2. बाहरी कारणों से क्षति
    1. सूर्य से आने वाली किरणें (विकिरण 200-400 nm)
    2. एक्स-रे और गामा किरणों सहित अन्य विकिरण आवृत्तियों से
    3. हाइड्रोलिसिस और ताप के कारण
    4. कुछ पौधों के विष के कारण
    5. मानव निर्मित विभिन्न रसायनों से
    6. विषाणुओं से [७]

कोशिका विभाजन से पूर्व क्षतिग्रस्त डीएनए का प्रतिकृतिकरण हो सकता है । यह बाद में संतति कोशिकाओं में उत्परिवर्तन का कारण बन जाता है ।

प्रकार

अंतर्जात कोशिकीय प्रक्रियाओं के कारण डीएनए को कई प्रकार की क्षति होती है जो निम्न है-

  1. आधारों का ऑक्सीकरण
  2. आधारों का ऐल्किलीकरण
  3. आधारों का जल अपघटन
  4. डीएनए प्रतिकृति में त्रुटियों के कारण आधारों गलत स्थान पर जुड़ना या टूटना
  5. डीएनए के एकल नाइट्रोजनस बेस में परिवर्तन के कारण

बहिर्जात एजेंटों (बाहरी कारकों) के कारण नुकसान कई रूपों में आता है। कुछ उदाहरण निम्न हैं-

  1. यूवी-बी प्रकाश के कारण समीपस्थ साइटोसिन और थायमिन बेस के बीच क्रॉसिंग होती है जो कि पिरिमिडिन डाइमर बनाता है। इसे प्रत्यक्ष डीएनए क्षति कहा जाता है ।
  2. यूवी-ए प्रकाश ज्यादातर मुक्त कण बनाता है। मुक्त कणों से होने वाले नुकसान को अप्रत्यक्ष डीएनए क्षति कहा जाता है ।
  3. रेडियोधर्मी क्षय और आकाशीय विकिरण डीएनए क्षय का कारण बनती है ।
  4. उच्च ताप पर डीएनए depurination(डीएनए से प्यूरीन बेस का कम होना) की दर बढ़ जाती है । उदाहरण के लिए थर्मोफिलिक बैक्टीरिया (ऊष्मपसंदी) में हाइड्रोलाइटिक प्यूरीनिकरण देखा जाता है, जो 40-80 डिग्री सेल्सियस पर गर्म करने पर स्प्रिंग्स में बढ़ता है ।
  5. विनाइल क्लोराइड और हाइड्रोजन पेरोक्साइड जैसे औद्योगिक रसायन, धुआं, कालिख और टार में पाए जाने वाले पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसे पर्यावरणीय रसायन डीएनए एडिक्ट्स- एथेनोबेस, ऑक्सीडाइज्ड बेस, अल्काइलेटेड फॉस्फोट्रिएस्टर और डीएनए के क्रॉसलिंकिंग में बड़ा परिवर्तन कर सकते हैं ।

UV-क्षति, क्षारीकरण / मेथिलिकरण, एक्स-रे क्षति और ऑक्सीडेटिव क्षति प्रेरित क्षति के उदाहरण हैं ।

केन्द्रक की तुलना में माइटोकॉन्ड्रिया में डीएनए

सामान्य रूप से मानव कोशिकाओं और यूकेरियोटिक (सुकेन्द्रिक) कोशिकाओं में डीएनए दो सेलुलर स्थानों में पाया जाता है-केन्द्रक के अंदर और माइटोकॉन्ड्रिया के अंदर । केन्द्रकीय डीएनए कोशिका चक्र के कई चरणों में क्रोमेटिन के रूप में रहता है । कोशिका विभाजन में क्रोमोसोम के रूप में केन्द्रक में संघनित रहता है । इस अवस्था में डीएनए अत्यधिक संकुचित रहता है । यह एक सरंचना में रहता है जिसे हिस्टोन कहते हैं । हिस्टोन शब्द क्रोमेटिन में प्रोटीन के विशिष्ट समूह के लिए प्रयुक्त होता है । जब कोशिका को डीएनए में निहित आनुवंशिक जानकारी व्यक्त करनी हो तो तब गुणसूत्रीय क्षेत्र अदृश्य हो जाता है । उसमें स्थित जीन व्यक्त किए जाते हैं । फिर इस क्षेत्र को स्थिर करने के लिए संघनित किया जाता है । माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए माइटोकॉन्ड्रिया स्थित होता है । यह यहां कई प्रतियों में स्थित रहता है । यह कुछ जटिल प्रोटीनों जुड़ा रहता है न्यूक्लियॉइड जिसे कहते हैं ।माइटोकॉन्ड्रिया के अंदर क्रियाशील ऑक्सीजन स्पीशीज या मुक्त कण एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट के निरंतर उत्पादन के बायप्रोडक्ट्स ऑक्सीडेटिव फास्फारिलीकरण के माध्यम से एक अत्यधिक ऑक्सीडेटिव वातावरण बनाते हैं जो डीएनए को नुकसान पहुंचाने के के लिए जाना जाता है । इनसे सुरक्षा के लिए एक विशेष एंजाइम सुपरऑक्साइड डिसम्यूटेज होता है यूकेरियोटिक (सुकेन्द्रिक) कोशिकाओं के माइटोकॉन्ड्रिया और कोशिकाद्रव्य दोनों में होता है ।

उत्परिवर्तन

डीएनए क्षति और उत्परिवर्तन के बीच अंतर करना अत्यंत महत्वपूर्ण है । डीएनए क्षति और उत्परिवर्तन भिन्न होते हैं । डीएनए क्षति से डीएनए में शारीरिक असामान्यताएं उत्पन्न होती है । जैसे की एकल या द्वि रज्जुक का टूटना, 8-हाइड्रॉक्साइडोक्सीगैनोसिन और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन का बचना । डीएनए की क्षति को एंजाइमों द्वारा पहचाना जा सकता है । इससे इसकी मरम्मत की जा सकती है यदि आवश्यक जानकारी जैसे पूरक डीएनए रज्जुक में या एक समरूप गुणसूत्र में अप्रयुक्त अनुक्रम नकल के लिए उपलब्ध हो । यदि एक कोशिका डीएनए क्षति को ठीक नहीं करती तो एक जीन के प्रतिलेखन को रोका जा सकता है तथा प्रोटीन का अनुवाद (नए प्रोटीन के निर्माण के लिए डीएनए में उपस्थित सूचना का उपयोग अनुवाद कहलाता है) भी बाधित हो जाएगा । प्रतिकृति भी अवरुद्ध हो सकती है या कोशिका नष्ट भी हो सकती है ।

डीएनए क्षति के विपरीत, एक उत्परिवर्तन डीएनए के आधार अनुक्रम में परिवर्तन होने से होता है । यदि डीएनए के दोनों रज्जुकों का आधार परिवर्तित हो जाये तो एंजाइम द्वारा उसको नहीं पहचाना जा सकता और इस प्रकार एक उत्परिवर्तन की मरम्मत नहीं की जा सकती है । कोशिकीय स्तर पर, म्यूटेशन (उत्परिवर्तन) प्रोटीन फ़ंक्शन और विनियमन में परिवर्तन का कारण बन सकता है । जब कोशिका विभाजन होता है तब म्यूटेशन भी दोहराया जाता है । उत्परिवर्ती कोशिकाएं कोशिका के जीवित रहने और पुन: उत्पन्न करने की क्षमता पर उत्परिवर्तन के प्रभावों के अनुसार विभाजन की आवृति में वृद्धि या कमी करेंगी । डीएनए क्षति और उत्परिवर्तन संबंधित भी हैं क्योंकि डीएनए क्षति सामान्यतः प्रतिकृति में डीएनए संश्लेषण की त्रुटियों का कारण बनती है । ये त्रुटियाँ उत्परिवर्तन का एक प्रमुख स्रोत हैं ।

डीएनए क्षति एक विशेष समस्या है । डीएनए परिवर्तन होता जाता है । यदि डीएनए क्षति से किसी विशेष क्रिया पर प्रभाव कम हो तो यह स्थिति उत्परिवर्तन के लिए अधिक अनुकूल होगी । बहुत बड़ा उत्परिवर्तन कोशिका के लिए हानिकारक हो सकता है । ऊतक में संरचनात्मक कोशिकाओं का समूह जो प्रतिकृति करता है वो उत्परिवर्ती कोशिकाओं को खो जाएगा । असामान्य म्यूटेशन जो कोशिका को अनुकूल बनता है, निकट कोशिकाओं पर प्रतिरूपण के लिए आश्रित रहेगा । यह कोशिका के लिए हानिकारक होता है क्योंकि ऐसी उत्परिवर्ती कोशिकाएं कैंसर को जन्म दे सकती हैं । इस प्रकार विभाजित कोशिकाओं में डीएनए की क्षति म्यूटेशन को जन्म देती है, कैंसर का एक प्रमुख कारण है ।

क्रियाविधि

डीएनए क्षति यदि जीनोम में संचित आवश्यक जानकारी को प्रभावित करती है तो कोशिका सही तरह से कार्य नहीं कर पाती।


सन्दर्भ