डीआरडीओ स्मार्ट एंटी एयरफील्ड हथियार
डीआरडीओ स्मार्ट एंटी एयरफील्ड हथियार | |
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प्रकार | परिशुद्धता निर्देशित एंटी एयरफील्ड हथियार |
उत्पत्ति का मूल स्थान | साँचा:flag/core |
उत्पादन इतिहास | |
डिज़ाइनर | रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन |
निर्दिष्टीकरण | |
वजन | साँचा:convert |
परिचालन सीमा | साँचा:convert |
प्रक्षेपण मंच | सेपेकैट जगुआर सुखोई एसयू-३० एमकेआई |
डीआरडीओ स्मार्ट विरोधी एयरफील्ड हथियार (DRDO Smart Anti-Airfield Weapon or SAAW) एक लंबी दूरी की परिशुद्धता निर्देशित एंटी एयरफील्ड हथियार है। जो वर्तमान में भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित की जा रही है इसे 100 किलोमीटर (62 मील) की सीमा तक उच्च परिशुद्धता के साथ जमीन के लक्ष्य को मारने के लिए तैयार किया गया है।
विवरण
SAAW एक हल्के उच्च परिशुद्धता निर्देशित बम है जिसे मैदान के लक्ष्य को नष्ट करने के लिए डिज़ाइन किया गया है जैसे रनवे, बंकरों, विमान हैंगर और अन्य प्रबलित संरचना।[१][२][३] इसका 120 किलोग्राम (260 पाउंड) वजन है।[४] इसकी गहरी पहुंच क्षमता है[१][५] यह उच्च विस्फोटक लेकर 100 किलोमीटर (62 मील) की लंबी गतिरोध सीमा तक जा सकता है[५] जो भारतीय वायु सेना को पायलटों और विमानों को खतरे में डाले बिना दुश्मन के हवाई क्षेत्र में जाए बिना किसी सुरक्षित दूरी पर लक्ष्य को मारने की क्षमता देगा।[२][३] यह भारत का पहला पूर्ण स्वदेशी एंटी एयरफ़ील्ड हथियार है।जिसे पूरी तरह से डीआरडीओ द्वारा तैयार और विकसित किया जा रहा है।[५][६]
यह वर्तमान में SEPECAT जगुआर और सुखोई एसयू-३० एमकेआई विमान से लॉन्च किया जा सकता है। वहाँ राफेल विमान के साथ हथियार को एकीकृत करने की योजना बना रहे हैं। जब यह भारतीय वायु सेना में शामिल जायेगा।[५] जगुआर इस तरह के छह हथियार ले जाने में सक्षम है।[१]
विकास और परीक्षण
सितंबर 2013 में, भारत सरकार ने 56.58 करोड़ (565.8 मिलियन) के साथ SAAW परियोजना को मंजूरी दी थी।[२][३] इसका रक्षा मंत्रालय की रक्षा समिति को रक्षा मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत एक लिखित नोट ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड और डीआरडीओ को 2014-15 में 'अनुदान मांग' में उल्लेख किया गया है। इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के मिशन और कॉम्बैट सिस्टम अनुसंधान एवं विकास सेंटर (एमसीएसआरडीसी) के मौजूदा कार्यक्रमों की सूची में भी सूचीबद्ध किया गया है।[५]
टर्मिनल बैलिस्टिक रिसर्च लैबोरेटरी (टीबीआरएल), रामगढ़, हरियाणा में स्थित रेल ट्रैक रॉकेट स्लेज (आरटीआरएस) की सुविधा में 2015 के अंत में हथियार के कामकाज की सफलता के लिए परीक्षण सफलतापूर्वक आयोजित किए गए।[५]
हथियार का पहला परीक्षण 23 मई 2016 को बैंगलोर में जगुआर विमान से डीआरडीओ और एयरक्राफ्ट एंड सिस्टम्स टेस्टिंग एस्टाब्लिशमेंट (एएसटीई) द्वारा सफलतापूर्वक आयोजित किया गया था।[५] 24 दिसंबर 2016 को डीआरडीओ द्वारा एकीकृत परीक्षण रेंज (आईटीआर), ओडिशा में एक सुखोई एसयू-३० एमकेआई से सफलतापूर्वक हथियार का दूसरा परीक्षण सफलतापूर्वक आयोजित किया गया।[६][७][८][९] 3 नवंबर 2017 को एकीकृत परीक्षण रेंज (आईटीआर), ओडिशा में भारतीय वायुसेना के विमान से तीन परीक्षणों की एक श्रृंखला सफलतापूर्वक आयोजित की गई।[१०][११][१२]
सन्दर्भ
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