ट्राइलोबाइट

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

ट्राइलोबाइट
Temporal range: 521–250 Ma
<div style="position:absolute; height:100%; left:0px; width:एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "["।px; padding-left:5px; text-align:left; background-color:साँचा:period color; background-image: linear-gradient(to right, rgba(255,255,255,1), rgba(254,217,106,1) 15%, rgba(254,217,106,1));">PreꞒ

साँचा:fossil range/bar साँचा:fossil range/bar साँचा:fossil range/bar साँचा:fossil range/bar साँचा:fossil range/bar साँचा:fossil range/bar साँचा:fossil range/bar साँचा:fossil range/bar साँचा:fossil range/bar साँचा:fossil range/bar साँचा:fossil range/bar

आरम्भिक कैम्ब्रियन से अंतकालीन पर्मियन
Kainops invius lateral and ventral.JPG
काइनोप्स इन्वियस, आरम्भिक डिवोनी कल्प
Scientific classification
गण

ट्राइलोबाइट (Trilobite) विलुप्त प्राणियों की एक श्रेणी है जो समुद्री सन्धिपाद (arthropod, अर्थोपोडा) थे। वे सबसे पहले कैंब्रियन कल्प के शुरुआती काल में आज से ५२.१ करोड़ वर्ष पहले उत्पन्न हुए और भी पुराजीवी महाकल्प (पैलिओज़ोइक) काल में फैले और विविध हुए। उसके बाद उनकी जातियों की धीरे-धीरे विलुप्ति होने लगी और डिवोनी कल्प (Devonian) में उनके प्रोटिड (Proetida) गण (order) को छोड़कर बाकी सभी प्रकार के ट्राइलोबाइट विलुप्त हो गये। फिर आज से लगभग २५ करोड़ वर्ष पूर्व की पर्मियन-ट्राइऐसिक विलुप्ति घटना में सभी ट्राइलोबाइट हमेशा के लिये विलुप्त हो गये। अपने अस्तित्व के काल में वे बहुत ही सफल प्राणी थे और २७ करोड़ सालों तक वे विश्व के सागरों-महासागरों में फैलते-फिरते रहे।[१][२]

ट्राइलोबाइटों का पुराजीव कल्प के प्रथम महायुग कैंब्रियन में साम्राज्य था। इस युग में इनकी संख्या इतनी अधिक थी कि यह साधारणतया 'ट्राइलोबाइटा का युग' कहलाता है। ये साधारणतया दो से तीन इंच तक लंबे होते थे, किंतु कुछ दो फुट से भी अधिक बड़े थे। यह अनुमान किया जाता है कि ये ऐरैक्जिडा (Arachnida) और क्रस्टेशिया (Crustacea) के पूर्वज थे। इनका शरीर दो भागों में विभाजित था : शीशवक्ष ( प्रोसामा, Prosoma) और उदर (ऑपिस्थोसोमा, opisthosoma)। शीशवक्ष में पाँच खंड होते हैं, जिनकी पृष्ठियों का समेकन हो जाता है इस प्रकार एक ढालाकार अंग (केरापेस, carapace) सा बन जाता है। इसी पर संयुक्त नेत्र भी रहते है, मुख इसी के नीचे की ओर लगभग मध्य में होता है। मुख के अगले सिरे की और लेब्रम (labrum) और पिछले सिरे पर लेबियम (labium) होता है। मुख के आगे की ओर एक जोड़ी लंबी अनेक खंडवाली श्रंगिका होती है। मुख के पीछे की ओर चार जोड़ी अवयव होते हैं, जिनके निकटतम खंड कॉक्सा (coxa) कहलाते हैं जो जबड़ों का काम करते हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक अवयव का शेष भाग दो शाखाओं में विभाजित रहता है- एक एंडॉपोडाइट (endopodite) कहलाता है और रेंगने का कार्य करता है तथा दूसरा एक्सोपोडाइट (exopodite), जिसपर ब्रैकियल फिलामेंट (branchial filaments) लगे होते हैं और श्वसन का कार्य करते हैं। उदरखंड़ों की संख्या में अनेक भिन्नताएँ पाई जाती हैं। प्रारंभिक ट्राइलोबाइटा में इनकी संख्या बहुत थी। ये खंड एक पंक्ति में क्रम से जुड़े रहते हैं। उदर के प्रत्येक खंड में, अंतिम खंड के अतिरिक्त, एक जोड़ी अवयव होता है। इनका आकार तथा कार्य शीशवक्ष के अवयवों जैसा ही होता है। उदर का अंतिम खंड टेलसन (telson) कहलाता है। इसी पर गुदा होती है और कभी एक पश्चगुदा काँटा भी होता है। प्रारंभिक ट्राइलोबाइटाओं के पश्चात् जिन ट्राइलोबाइटाओं का विकास हुआ, उनमें शरीरखंडों की संख्या केवल १८ या १९ ही थी, पश्च भाग के कुछ खंडों में अवयव भी नहीं थे तथा इन अवयवों के आकारों और कार्यों में भी कुछ अंतर आ गया था। शीशवक्ष के अवयवों ने बहुत कुछ श्वसन कार्य करना बंद कर दिया था, किंतु ये चलने, लटकने और भोजन को मुख में ले जाने के लिये अधिक उपयुक्त बन गए थे। उदर के अवयवों ने अपना श्वसन तथा चलन कार्य यथावत् रखा था।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

साँचा:reflist

  1. Fortey, R. A.; Owens, R. M. (1997), "Evolutionary History", in Kaesler, R. L., Treatise on Invertebrate Paleontology, Part O, Arthropoda 1, Trilobita, revised. Volume 1: Introduction, Order Agnostida, Order Redlichiida, Boulder, CO & Lawrence, KA: The Geological Society of America, Inc. & The University of Kansas, pp. 249–287, ISBN 0-8137-3115-1
  2. Jell, P. (2003), "Phylogeny of Early Cambrian trilobites", in Lane, P. D., Siveter, D. J. & Fortey, R. A., Trilobites and Their Relatives: Contributions from the Third International Conference, Oxford 2001, Special Papers in Palaeontology 70, Blackwell Publishing & Palaeontological Association, pp. 45–57