झिलाय
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Rajawat Thikana-Jhilai झिलाय या झिलाई जयपुर स्टेट का प्रथम स्वतंत्र ठिकाना है जब जयपुर स्टेट में संतान उत्मन्न नहीं होती थी या वंश आगे नहीं बढ़ता था तब ठिकाना झिलाय से ही वंशज गोद ले कर उसका राज तिलक करा जाता था क्योंकि राजपुताना में सदियो से यह परंपरा है कि बड़े भाई के अगर पुत्र नहीं होता तो उनसे छोटे भाई के बड़े पुत्र को गोद लिया जाता था और जयपुर घराने का बड़ा ठिकाना झिलाय ही था और जब झिलाय में वंश नहीं बढ़ता था तब जयपुर स्टेट से वंशज को गोद लिया जाता था जो बड़ा भाई राजगद्दी पर विराजमान होता था उनके आगे संबोधन मैं महाराज और छोटे भाई को महाराजा लगता है बाद में ठि॰ झिलाय (झलाय) जागीरो के भाइयो में बटवारे हुए जिसमे बड़े भाई ने ठिकाना-झिलाय व दूसरे भाइयो ने ठिकाना-ईसरदा, ठिकाना-बालेर, ठिकाना-पिलुखेड़ा, शिवाड़ राजस्थान में व ठिकाना-मुवालिया नरसिंहगढ़ स्टेट मालवा में है नरसिंहगढ़ स्टेट के कुंवर चैनसिंह जी १८२७ का विवाह ठिकाना मुवालिया में हुआ था जो जयपुर स्टेट के ही rajawat राजावत परिवार में से है क्योंकि सवाई जयसिंह को तीन बार मालवा का सूबेदार बनाया गया था इसलिए अगली पीढ़ी के मालवा के सभी राजाओं से अच्छे सम्बन्ध थे इसीलिए आगे की पीढ़ी ने सन १८२० के लगभग में मालवा में जागीर ले ली। कुंवर चैन जी सन १८२७ में अग्रेजो से युद्ध करते हुए सिहोर छावनी में शहिद हो गए थे। कुंवर चैनसिंह को भारत का सर्वप्रथम युवा राजपूत शहीद भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने भारत की पहली स्वतंत्रता सग्राम की लड़ाई सन १८५७ से भी पहले सन २४ जुलाई सन १८२७ में लड़ी थी और शाहिद हो गये थे। कछवाहा वंश Rajawat Thikana Jhilai Nivai Jaipur Rajasthan :- राजावत का सबसे बड़ा ठिकाना झिलाई एक स्वतंत्र राज्य की तरह था झिलाय के खुद के स्टाम्प, मोहर सिक्के चलते थे। झिलाई महाराजा साहब को ट्रेन की आवाज से बहुत दिक्कत थी इसीलिए उन्होंने झिलाई से ट्रेन की पटरी को नहीं निकलने दिया था। उन्होंने उस पर रोक लगा दी थी बाद में लोगों के विशेष अनुरोध पर उन्होंने दूर से निकलने की अनुमति प्रदान की इसके पश्चात दूर से ट्रेन निकाली गई। झिलाई के महाराजा साहब के संतान नही होने पर उन्होंने गोद लेने के लिए अपने बड़वाहजी/ राव को बुलवाकर झिलाई से मालवा नरसिंहगढ़ राज्य गये हुए अपने परिवार के पास ठिकाना मुवालिया पहुचाया था की वे वहा जा कर बड़े भाई के बड़े पुत्र को यहाँ झिलाई ले कर आवे परंतु ठिकाना मुवालिया में उस समय गादी पर एक भाई ही थे उनके ही संतान थी दूसरे भाई को नही, इसलिए बड़वाहजी को खाली हात लौटना पड़ा महाराजा गोवर्द्धन सिंह जी झिलाई के स्वर्गलोक गमन के पश्चात जयपुर महाराज ब्रिगेडियर भवानी सिंह जी ने अपने छोटे भाई को ठिकाना झिलाई पर गोदनशीन करवाया जो अभी वर्तमान झिलाई की गादी पर विराजमान है व जयपुर विराजते हैं । ठिकाना झिलाई के भाई ठिकानेदार व जागीरदार
महाराजा झुंझार सिंह जी राजावत के पुत्र महाराजा संग्राम सिंह जी के पांच पुत्र थे 1.महाराजा गज सिंह जी ठिकाना झिलाई, 2. ठा.सा.आनंद सिंह जी राजावत ठिकाना शिवाड़ 3. ठा..सा.विजय सिंह जी ठिकाना बगड़ी (ठा.सा.मोहनसिंह जी ठिकाना ईसरदा). 4. ठा. सा. हिम्मतसिंह जी ठिकाना रणोखि, 5. ठाकुर साहब रूपसिंह जी राजावत ठिकाना मुंडिया ।
सिर्फ ठिकाना झिलाई के वंशजों को ही महाराजा लगता है बाकी सभी ठिकानों को को ठाकुर साहब की पदवी थी आमेर जयपुर के महाराज मान सिंह जी के पुत्र जगत सिंह जी हुए व जगत सिंह जी के दो पुत्र हुए प्रथम बड़े पुत्र महा सिंह जी जिनसे वर्तमान आमेर जयपुर वंश है एवं दूसरे पुत्र झुंझार सिंह जी है जिनसे ठिकाना झिलाई निवाई वंश है महाराजा जुझार सिंह जी रजावत के पुत्र महाराजा संग्राम सिंह जी इनके पांच पुत्रो में सबसे बड़े 1.महाराजा गज सिंह जी ठिकाना झिलाई के पुत्र दरबार कुशल सिंह जी ठिकाना झिलाई के 6 छै पुत्र थे सबसे बड़े 1. महाराजा कीरत सिंह जी झिलाई 2. महाराजा रघुनाथ सिंह जी ठिकाना बालेर 3. महाराजा त्रिलोक सिंह जी ठिकाना पीलूखेड़ा 4. महाराजा चतरसाल सिंह जी ठिकाना मसारना 5. महाराजा अमर सिंह जी ठिकाना देहलाल 6. महाराजा देवी सिंह जी ठिकाना बडागव आदि
ठिकाना बालेर के भाई ठिकाना बागड़दा राजस्थान से वर्तमान मध्यप्रदेश के ठिकाना कोलासर श्योपुर में भी है
राजावत कुल की सतीमाता निवाई में है जहां उनकी एक विशाल छतरी बनी हुई यह सती माता विशेषकर अपने पुत्र के लिए सती हुई थी इसलिए इनका पूरे राजपूत समाज में एक विशेष स्थान क्योंकि अधिकतर सती अपने पति के लिए ही हुई है निवाई छतरी पर राजवात के सभी ठिकाने से लोग पधारकर पूजन अर्चन करते हैं चूड़ी कंगन मेहंदी भेंट करते हैं अपितु जो छतरी के आसपास का सारा प्रांगण था वह जैन मंदिर के पास है। जैन भाई पूजन अर्चन करने में किसी को बाधा नहीं पहुंचाते हैं वह सभी को आज्ञा देते हैं कि जाकर पूजन करें।